Saturday 27 June 2020

सफ़र : नब्बे रूपये (तीसरा और अंतिम भाग)

सफ़र : नब्बे रुपये 
तीसरा और अंतिम भाग


लखनऊ से ट्रेन निकल पड़ी थी। ट्रेन की एसी 3 बोगी में लेटे लेटे अक्षय होली के चार दिन पहले की बात सोच रहा था। उसने कैसे छुट्टी ली थी। वह चार दिन पहले की बात याद करने लगा।...
वह घर पर ही छुट्टी का आप्लीकेशन लिख कर ऑफिस के लिए दोस्‍त के साथ निकला था। दोनों ऑटो के लिए चौराहे पर इंतजार कर रहे थे। अक्षय के अंदर होली पर घर जाने को लेकर उथल पुथल मची हुई थी। पिछली होली पर छुट्टी नहीं मिलने के कारण वह जा नहीं पाया था। उसने अपने भीतर चल रहे सवालों से थोड़ी सांत्वना पाने के लिए बगल में खड़े आदेश से पूछा ! 
आदेश ! छुटटी मिल जाएगी की नहीं ? 
मैंने आप्‍लीकेशन लिख लिया है। आज बास के पास से बात करूँगा। 
आदेश ने दिलासा देते हुए कहा, मिल जायेगी यार ! ज्यादा चिंता मत करो।
अक्षय को उसकी बात से थोड़ी सांत्वना मिली। अभी अक्षय कुछ और बोलने जा रहा था कि एक ऑटो आ गया। दोनों उसमें बैठ गए। 
बैठने के बाद अक्षय बोला छुट्टी मिल जाए तो टिकट करूँगा। आदेश ने फिर.. अक्षय को निश्चिन्त करने के लिए कहा, यार ! इस बार होली की छुटटी पर ज्‍यादा लोग नहीं जा रहे हैं। उम्मीद है बॉस तुम्हे छुट्टी दे देंगे।
अक्षय उसकी बात सुनकर बोला भगवान करे!... मिल जाए। 
ऑटो वाले ने 15 से 20 मिनट में ऑफिस पहुँचा दिया। ऑफिस पहुंचकर दोनों अपने अपने कंप्‍यूटर के सामने बैठ गए। कंप्‍यूटर खोलकर अक्षय ने बगल में बैठे साथी से पूछा बॉस आ गए हैं कि नहीं। उसने बताया कि बॉस अभी नहीं आए आए हैं थोड़ा लेट में आएंगे। अक्षय यह सुनने के बाद अपने काम में लग गया। लेकिन उसके मन में छुट्टी को ही लेकर प्रश्न घुमड़ रहे थे। मन में शंका हो रही थी वह सोच रहा था कि बॉस से किस तरह बोलू कि छुट्टी मिल जाए। वह मन ही मन निश्‍चय भी कर रहा था कि नहीं मिली तो भी घर तो जरूर जायेगा। फिर सोचता बास तो विनम्र हदय हैं और मेरे काम से खुश भी रहते हैं। मुझे छुट्टी मिल जानी चाहिए। 
वह यही सब सोच रहा था कि एक साथी ने कहा बास आ गए हैं सबको मीटिंग पर बुलाया है। यह सुनते ही अक्षय ने निश्‍चय किया मीटिंग के बाद जाकर इस बारे में बात करूंगा।
अक्षय बॉस से बात करने को इतना व्‍याकुल था... कि वह बास के केबिन के दरवाजे की तरफ सिर उठाकर हर पांच मिनट में देख लेता था। आखिरकर उसका इंतजार खत्‍म हुआ। आधे घंटे बाद मीटिंग खत्‍म हो गई। सब लोग बास के केबिन से बाहर आ रहे थे। 
....पांच मिनट बाद अक्षय आप्‍लीकेशन लेकर बॉस के के‍बिन का दरवाजे पर पहुंचा। उसने दरवाजे को थोड़ा खोलकर सकुचाते हुए पूछा सर ! क्‍या मैं अन्‍दर आ सकता हूं ?
बॉस ने अक्षय की तरफ देखते हुए कहा, अरे.. अक्षय ! आओ ...आओ। अक्षय कुर्सी खींचकर बास के सामने मेज पर बैठ गया। उस समय बॉस दा‍हिने तरफ कम्‍प्‍यूटर स्‍क्रीन पर कुछ देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वह मेरी तरफ मुड़े और बोले बताओ क्‍या बात है अक्षय ! ?
अक्षय ने बॉस को अप्‍लीकेशन देकर सकुचाते हुए कहा, सर ! होली पर घर जाना है छुटटी चाहिए थी। पिछली बार छुट्टी नहीं मिलने के कारण नहीं जा पाया था। 
बॉस ने पूछा.. कितने दिन की छुट्टी चाहिए ? अक्षय ने निवेदन करते हुए कहा, सर ! पांच दिन की...। बॉस ने बीच में रोकते हुए कहा, अक्षय ! तुम जानते हो.. कि त्‍योहार में कई लोग छुट्टी पर जा  रहे हैं। एक दो दिन की बात होती तो मैं मैनेज कर लेता। 
अक्षय को तो होली पर घर जाना था। उसने फिर निवेदन किया ..प्‍लीज....सर ! देख लीजिए। मुझे तीन दिन की छुट्टी दे दीजिए। बॉस ने कुछ सोचने के बाद कहा, ठीक है... मैं तीन दिन की छुट्टी दे रहा हू। साथ में हिदायत देते हुए कहा, लेकिन हाँ...समय पर आ जाना। फिर बॉस ने अक्षय के आप्‍लीकेशन पर कुछ लिखा और नीचे साइन कर दिया। आप्‍लीकेशन अक्षय को देते हुए बॉस ने विनम्रता से पूछा होली तो चार दिन बाद है। रिजर्वेशन करा लिए हो। अक्षय ने से कहा, सर छुट्टी कन्‍फर्म नहीं थी इसलिए अभी नहीं कराया था। मैं टिकट करा लूंगा। नहीं होगा तो तत्काल में करा लूंगा।
अक्षय खुशी...खुशी केबिन के बाहर निकला और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। तभी आदेश उसके पास आया। उसने अक्षय को बॉस के केबिन से निकलते हुए देख लिया था। उसने अक्षय के मुसकुराते हुए चेहरे को देखकर समझ गया कि उसे छुटटी मिल गई है। उसने अक्षय से पूछा? छुट्टी मिल गई। अक्षय ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा मिल गई। केवल तीन दिन की। बस तीन दिन आदेश ने हैरानी जताते हुए कहा ! हाँ, केवल तीन दिन । आदेश ने कहा, यार ! दो दिन तो आने और जाने में लग जाएंगे। अक्षय ने लंबी सांस लेते हुए कहा, कोई बात नहीं इस बार होली अपनों के साथ तो मना लूंगा। तभी आदेश को किसी ने आवाज़ लगाई। उसने आ रहा हूँ कहकर चला गया। 
इसके बाद अक्षय अपने कम में लग गया । जब काफी कम निपट गया तो उसने अपने एक दोस्‍त को फोन किया जो रेलवे में था। उसने उससे रिजर्वेशन कराने के लिए कहा। उसने फोन पर ही अक्षय को आश्‍वासन दिया कि तत्‍काल में वह रिजर्वेशन करा देगा। 
अक्षय को जब तसल्‍ली हो गई तो वह कंप्‍यूटर पर अपने काम में तल्‍लीन हो गया। 
दो दिन बाद उसके दोस्‍त का फोन आया कि जाने का रिजर्वेशन हो गया है लेकिन वापसी का अभी नहीं हो पाया है। अगले दिन रात में उसकी ट्रेन थी। यही सब सोचते सोचते अक्षय को नींद आ गयी। ट्रेन लुधियाना की तरफ धड़ धड़ करती चली जा रही थी।
सुबह के आठ बज गए थे तभी चाय..चाय की आवाज उसके कानों में पड़ी। वह मुँह से चादर हटा कर देखा। दिन निकल आया था। उसने घड़ी देखी। आठ बज रहे थे। उसने चाय वाले से एक चाय देने को बोला। फिर, उसने चाय वाले से पूछा कौन सा स्टेशन है। उसने बताया अम्बाला !....
अक्षय उठ के बैठ गया और चाय पीने लगा। वह निश्चिंत था कि वह समय पर ऑफिस पहुँच जायेगा। वह नब्बे रुपये के बारे में सोच रहा था। उसने दस रुपये का फटा नोट जेब से निकाला। थोड़ी देर देखता रहा। फिर उसने नोट को अपने पर्स में सहेज़ कर रख लिया।

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