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नदियों को देख लो बेवजह,
बहक जाती हैं किनारों से।
निगल जाती है बेवजह,
असंख्य अरमानों को।
अंधेरे भविष्य में असमय,
फेंक देती है अनाथों को।
लाैट आती हैं देख लो फिर,
अपने जुदा हुए किनारों पर।
नदियों को देख लो बेवजह,
बहक जाती हैं किनारों से।
निगल जाती है बेवजह,
असंख्य अरमानों को।
अंधेरे भविष्य में असमय,
फेंक देती है अनाथों को।
लाैट आती हैं देख लो फिर,
अपने जुदा हुए किनारों पर।
--राहुल