Monday 24 April 2017

बाढ़

September 13, 2014 ·

नदियों को देख लो बेवजह,
बहक जाती हैं किनारों से।
निगल जाती है बेवजह,
असंख्‍य अरमानों को।
अंधेरे भविष्‍य में असमय,
फेंक देती है अनाथों को।
लाैट आती हैं देख लो फ‍िर,
अपने जुदा हुए किनारों पर।

--राहुल

चुनावी तरकश

अच्छे दिन की खुल गई पोल
सौ दिनों में ही फट गई ढोल
पंचर साईकिल रॉक एंड रोल
अपने द्वार खड़ी मासूम नजर,
कुछ ढूंढ रही है इधर-उधर।
मन में बेचैनी है ठहर-ठहर,
पथ देख रही है पलट- पलट।
खुद से कह रही सजग होकर,
पिय आएंगे मेरे किस पहर।

चुनावी तरकश

महंगाई किये जा रही गोल पे गोल
मीडिया की नहीं जाग रही है सोल
सौ दिन के बाद भी पीट रही ढोल

नव वर्ष

नव वर्ष के मंगल पथ पर
आगे बढते जायेंगे हम।
फ़िक्र नहीं तुफानों की
रच ले सजिश बारिश भी
जीवन के मंगल पथ पर
आगे बढते जाएंगे हम।।
लांघकर उँचे पहाडों के शिखर
नित नये उजाले पाएंगे
हर दिन नये आयाम लिखेंगे
नव वर्ष के मंगल पथ पर
आगे बढते जाएंगे ।

मौसम (कविता)

अब बादलों ने डेरा डाला,
कर दिया है घनघोर अंधेरा।
नीचे देख धरा का नृत्य
आसमान भी मचल उठा।

--राहुल

शायरी

तेरे दर पर लगा दी है अर्जी
अब तू सोच तेरी जो हो मर्जी

--राहुल

कोट्स

दृश्य नहीं आज का परिदृश्य है,
ये आपातकाल अदृश्य है।

जीवन एक दरिया

दरिया हूँ मैं दरिया ही रहने दो,
मुझे दो किनारों में ही बहने दो।
मुश्किल रस्ता समन्दर का यारों,
मुझे मेरी औकात में ही बहने दो।

--राहुल

शायरी

अँधेरे ही चिरागों के रहगुजर होते हैं,
वरना, चिरागों का वजूद कहाँ होता।

--राहुल

शायरी

शाम- ए- गर्दा में पीए जा रहा था,
उल्फत के नाम किये जा रहा था।
आतिश भी ऐसी थी जहन में कि,
जश्न भी मैं मनाए जा रहा था।

--राहुल

शायरी

मुझे मालूम है कि, तू पत्थर है।
पर यकीं है कि इसी में देवता है।।

शायरी

जंगल मर रहा शहर सूख रहा
या खुदा ! तू क्युं सो रहा।

--राहुल

शायरी

कहानियाँ लिख रहें हैं वह अन्धेरों में,
चश्में खुद ही पहनाते हैं पढ़ने को।

--राहुल

शायरी

कुछ सोचते हुए वक्त जाया कर रहें हैं,
या जो चाहतें हैं उसके करीब हो गये हैं।।

--राहुल

असलियत

इंसान व ईंट की दास्तां में अजब का संयोग,
लहू लाल ईंट लाल दोनों ही मिट्टी के लाल ।
मंदिर-मस्जिद की या चाहे हो घर की दीवार,
एक बनाता, दूजे से बनता सपनों का संसार।

--राहुल

शायरी

आदम भींग रहा खुद के ही अश्कों से।
समंदर भी डूब रहा खुद की लहरों में।।

--राहुल

शायरी


 
आज कोई लफज ही नहीं निकल रहे,
खामोशी इस कदर छाई है।
आप सबको रुबरु देखकर तसल्‍ली है,
कारवां के साथ हूं।

--राहुल

दिवानों को यह नहीं पता कि वो मंजिल तक पहुँचेंगे की नहीं
पर मुकम्मल रुह मंजिल तक पहुँचने की जिद कर लेती है।

शायरी

तेरी निगाहों से बच कर निकलना
मुश्किल हो गया, ऐ जिन्दगी।
अब चांद को खुली छत पर जाकर
देखना मुअस्सर नहीं होता।।

-- राहुल

शायरी

इस कदर उलझा हुआ हूँ, घर के आँगन में,
फुर्सत ही नहीं मिलती,दिल्लगी करने की।

--राहुल

रंग सियासत का

वाह रे सियासत तेरे दो ही रंग,
सफ़ेद चोला, काम तेरा काला ।

--राहुल

बेटियाँ

नाजो से पली, नैनो में बसी
तुम ही हो हर घर की खुशी।
लक्ष्मी है तू, सरस्वती है तू
काली और माता अंबा है तू।
जननी तू, धन वैभव भी तू
ममता की धूप व छाँव भी तू ।

--राहुल
हवाओं को क्या पता
किधर जाना है,
जिधर रास्ता मिलता है
निकल पड़ते हैं.
नदियों को क्या पता
किधर जाना है,
धरा जिधर रास्ता देती है
निकल पड़ते हैं।
बस्तियों को क्या पता
किधर बसना है.
आदम जिधर बसाते हैं.
वहीं बस जाते हैं.

शायरी

तेरी निगाहों ने तेरे मेरे दरम्यान
जो लकीरें खिंची हैं,
मैं भी ताउम्र इसी के इर्द गिर्द
भटकना चाहता हूँ।

--राहुल
मैं भीड़ नहीं,
कि मुझे तुम गुमराह कर दोगे।
मैं प्रजा नहीं,
कि मुझे सीमाओं में बाँध लोगे।
मैं "लोकतंत्र" हूँ, "लोकतंत्र"
मुझे हिसाब आज नहीं 

तो कल जरूर दोगे।

शायरी

चाहे कितना भी नकाब ओढ ले,
तुझे तेरी अदा से पहचान लूँगा।

--राहुल

शायरी

तब फ़िक्र को अलहदा कर दिया,
जब हर शाम मयकदा हो गई।
(अलहदा-अलग रखना)

--राहुल

शायरी

बड़ी बेकरारी के बाद रात आयी,
कुछ पल बात किया बेदर्द ने,
और सुबह का बहाना बना लिया।

-- राहुल

वजूद

तुम हो तो मेरा वजूद है,
मेरे ख्‍वाब अभी जिंदा हैं।

--राहुल

वजह

मेरी मौत की वजह तुम नहीं
तुम्‍हारी मुस्‍कुराहट होगी ।

--राहुल

नेता और उनके मोहरे



जय जवान और जय किसान
राजनीति के प्रमुख हथियार
कोई अच्छे दिन का पासा फेंक
ठोंककर सीना चलता चाल
पुनर्जीवन को हैं भईया बेताब
किसान इनकी अढ़हिया चाल
छह शहतीरो की नाव बनाकर
छकड़ी ने तुम्हे बनाया पतवार
बाकी सब भी हैं धुरंधर खिलाड़ी
दांव चलेंगे तुम पर ही मेरे भाई
ममता की तो उम्मीद न रखना
रोटी तो पक्का सेकेगी अम्मा
चलाएगा तुम्हारे कंधे से गोली
"लाल" का अब नया सेनापति
"नये" ने मौका देख बनाया मोहरा
पांव फैलाते ही खा गया गच्चा

-----राहुल श्रीवास्तव

हे मानव तूने क्या कर डाला




हे मानव

हे मानव तूने क्या कर डाला
बदल दिया धरा का पैमाना
बदल दिया नदियों का रास्ता
बदल दिया बचपन को तूने
और बदल दिया किस्सों को
हे मानव तूने क्या कर डाला
बदल दिया किनारों का नक्‍शा
मिटा दिया जंगल को तूने
बदल दिया पक्षियों का डेरा
और मिटा दिया तालों को
हे मानव तूने क्या कर डाला

बदल दिया जज़्बातों को 
बदल दिया तस्वीरों को 



-- राहुल श्रीवास्‍तव