पीपल का पेड़
नदी के आसपास घनघोर अंधेरा छाया था। आसमान को काले बादलों ने चारो तरफ से घेरा हुआ था। नदी के बहाव की दिशा में किनारे पर एक साया तेज कदमों से चल रहा था। वह दौड़ नहीं पा रहा था। क्योंकि उसकी गोद में कोई और भी था। लेकिन तब भी वह साये की चाल दौड़ने जितनी थी। पीछ से रह रह कर गोलियां चलने की आवाजें आ रहीं थीं। वह साया नदी के किनारे स्थित पीपल के पेड़ की ओट में छुप गया। पेड़ के चारो तरफ एक पक्का चबूतरा बना था। वह साया काफी देर तक बिना हिले डुले वैसे ही पड़ा रहा। हवाएं इस कदर चल रही थीं मानो पेड़ की डालियां पेड़ से टूट कर गिर जाएंगी। बीच बीच में कुत्तों के भौंकने की आवाजें माहौल का और डरावना बना रही थीं। लेकिन साये पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा था। वह पेड़ के चबूतरे की तरह वहां से टस से मस नहीं हुई। आखिर कुछ देर बाद वह साया उठा। उसने गोद से उतारकर एक नवजात बच्चे को चबूतरे पर लिटा दिया। वह उसे अपने से अलग नहीं करना चाह रही थी। लेकिन कोई मजबूरी रही होगी तभी वह ऐसा कर रही थी। बच्चे को लिटाने के बाद उसे अच्छी तरह से कपडे से ढकने के बाद उसके माथे को चूमा और वहां से जाने लगी। साये के चलने से लग रहा था कि वह वहां से जाना नहीं चाह रही थी। आखिरकार थोड़ी दूर जाने के बाद उसने एक बार फिर मुड़कर बच्चे को देखा और अंधेंरे में खो गई।
गोलियों की आवाजें भी आनी अब बंद हो गईं थी। रात की खामोशी बहुत ही भयावह थी। बीच बीच में कुत्तों के भौंकने की आवाज से आसपास का परिदृश्य और डरावना हो जाता था।
उस पीपल के पेड़ पर बैठा बैठा कोई यह सब देख रहा था। उसे डर नहीं लग रहा था। वह बुधई का भूत था। चार साल पहले आई बाढ़ में वो अपनी मां को बचाते बचाते डूब गया था। वह और उसकी मां नदी के किनारे तरबूज और सब्जियां उगाकर अपना जीवन यापन करते थे। उसकी मां नदी के पास ही खेतों में एक झोपड़ी डालकर रहती थी। बुधई को अपनी मां से इतना प्रेम था कि उसकी आत्मा पिछले चार साल से इसी पेड़ पर रह रही है। वह वहीं से अपनी मां को देखा करता था। नदी के किनारे स्थित यह पीपल का पेड़ बीरक गांव की सीमा निर्धारित करता था। यह बीरक गांव के अंतिम छोर पर था। गांव वालों का मानना था कि इस पेड़ पर एक भूत रहता है। इसलिए डर के मारे गांव वाले अंधेरा होने के बाद इधर नहीं आते थे।
हवा और तेज चलने लगी। बुधई का भूत पेड़ से नीचे उतरता है। वह देखता है कि नवजात बच्चा सो रहा है। वह उसके पास जाता है। लगता है जैसे बच्चे को आभास हो जाता है कि उसके आसपास कोई है। बच्चा नींद में ही अपनी बंद पलकों को मीचता है सिर को बाईं तरफ करवट लेता है। वह नींद में अब भी है। बुधई उसको ध्यान से देखता है। उसे देखकर उसे अपनापन सा लगता है। वह वहीं बैठ जाता है।
सुबह की पहली किरण धीरे- धीरे रात के अंधेरे को मिटा रही थी। पक्षियों का चहकना शुरू हो गया था। यह समय बीरक गांव के पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी जी के स्नान का था। उधर पंडित जी ने आवाज लगाई अरे सुषमा की अम्मा मेरा अंगोछा लाओ मुझे देर हो रही है। पंडित जी की दो संताने हैं। बड़ी बेटी चार साल की है जिसका नाम सुषमा है। उससे छोटा दो माह का एक बेटा है जिसका नाम परिमल है।
पंडित जी रोजाना सुबह चार बजे नित्य कर्म के बाद नदी के कबरी घाट पर स्नान करने के लिए आते हैं। कबरी घाट के बारे में भी एक दिलचस्प कहानी है। गांव वाले कहते हैं कि इसका असली नाम कबीर घाट है। कबीर घाट इसलिए पड़ा कि क्योंकि इस घाट के 10 किमी के दायरे में विभिन्न धर्मों के अलावा छोटी बड़ी जाति के सभी लोग स्नान करते हैं। वह बड़ी श्रद्धा से इस घाट पर मिलजुल कर यहां पर स्नान करते थे। बाद में धीरे धीरे इस़का नाम बिगड़ते बिगड़ते कबरी घाट पड़ गया।
अपने रोजाने के समय पर पंडित जी ने स्नान करने के बाद आचमन किया। साथ में वह मंत्र भी बुदबुदा रहे थे। वह पानी से बाहर आकर कपडे बदल कर जल्दी जल्दी घर की ओर चल दिए। रास्ते में ही पीपल का पेड़ पड़ता था। वह जब वहां से गुजर रहे थे कि बच्चे के रोने की आवाज उन्हें सुनाई दी। एक पल के लिए वह ठहरे। चबूतरे की तरफ देखा। बच्चे के रोने की आवाज लगातार आ रही थी। सामने से चबूतरे पर कुछ दिख नहीं रहा था। वह पीछे की तरफ गए। दूर से ही उन्होंने देखा कि कपड़े में लिपटा एक नवजात शिशु रो रहा था। वह जानते थे कि इस पीपल के पेड़ पर एक भूत रहता है। वह शकुन अपशकुन के भंवर जाल में डूबने उतराने लगे। डर के मारे उनकी हालत खराब हो गई। उन्होंने आसपास देखा कोई देख तो नहीं रहा है। उन्होंने वहां से तुरंत जाने की सोची।
घर पर पहुंच कर वह तुरंत पूजा पर बैठ गए। शंका और डर के मारे वह बीच बीच में मंत्र भूल जाते। वह दोबारा मंत्र पढ़ते। यह क्रम लगातार चलता रहा। तभी उनकी पत्नी की आवाज सुनाई दी सुनते हो जी पीपल के पेड़ के नीचे एक नवजात बच्चा मिला है। वहां सारे गांव के लोग इकट्ठा हैं। मुखिया ने संदेशा भेजकर आपको जल्दी बुलवाया है। पंडित जी को नवजात बच्चे के बारे में तो पता ही था। वह आधी अधूरी पूजा खत्म कर नदी के किनारे पहुंचे। नजर उठा कर एक बार पेड़ के आसपास नजर दौड़ाई। गांव के लगभग सभी वहां आए हुए थे। सब वहां आपस में बच्चे को लेकर बातें कर रहे थे और सवाल उठा रहे थे कि यह बच्चा कहां से आया इसे कौन लाया है कब आया है। कहीं इस पेड़ का भूत तो बच्चा बन कर नहीं आ गया है। अजीब सा माहौल बन गया था सब डरे हुए थे।
बच्चा लगातार रोए जा रहा था। पीपल के पेड़ के भूत के डर से कोई भी उसके पास नहीं जा रहा था। सभी दूर से ही उसे देख रहे थे। पेड़ पर बैठा बुधिया का भूत भी यह सब देख रहा था। तभी उसने देखा कि उसकी मां उस बच्चे को गोद में उठा कर चुप कराने लगी। उसने जोर से कहा अरे बच्चा भूखा है कोई इसे दूध लाकर दो। लेकिन कोई वहां से हिला नहीं। वहां कुछ ऐसी महिलाएं भी खड़ीं थी। जिनकी गोद में दो चार महीने का बच्चा था। वह चाहती तो बच्चे को थोड़ा दूध पिला सकती थीं। लेकिन शंका और डर के मारे वो आगे नहीं आ रहीं थीं। बुढि़या ने देखा कि कोई बच्चे को दूध पिलाने के लिए आगे नहीं आ रहा है। वह गांव वालों को कोसने लगी। वह बहुत निराश हो गई। उसने बच्चे को चबूतरे पर लिटाते हुए बोली रोओ मत बेटा मैं अभी आ रही हूं। वह जल्दी से कुछ दूर स्थित अपनी टूटी झोपड़ी में गई। उसने जल्दी से गिलास में दूध डाला और एक साफ धोती का टुकड़ा फाड़ कर चबूतरे पर आई। उसने बच्चे को गोद में उठा लिया। तभी मुखिया और आसपास खड़े लोगों ने उसे रोका यह क्या कर रही हो बुधिया की माई। उसे मत छूओ पता नहीं कौन है कहां से आया है। आदमी है कि भूत है। लेकिन बुधिया की मां सबकी बातों को अनसुना करके चबूतरे पर बैठ गई। वह एक बच्चे को पाल चुकी थी उसे पता था कि नवजात बच्चे को दूध कैसे पिलाया जाता है। उसने कपड़े को दूध में भिगोया और बच्चे के होंठों पर बूंद बूंद करके दूध गिराने लगी। बच्चा छोटी सी जीभ निकालकर दूध को चाटने लगा। बच्चा चुप होकर इस तरह से दूध पीने लगा। बच्चे को दूध पिलाते पिलाते बुधिया की मां के आंसू निकल रहे थे। उसे बुधिया की याद आ रही थी। जब बुधिया पैदा हुआ था तो उसे दूध उतर नहीं रहा था। उसने उस समय अपनी बहन को बुला लिया था। उसका भी एक 6 महीने का बच्चा था। वह अपने बच्चे को पिलाने के बाद बुधिया को भी दूध पिला देती। कुछ दिन बाद उसके चले जाने के बाद वह कपड़े से दूध गारकर पिलाती।
तभी बुधिया की मां को पंडित जी की आवाज सुनाई दी। उन्होंने जोर से कहा बुधिया की मां तुम ये क्या कर रही हो तुम उससे दूर हटो। पता नहीं यह बच्चा किसका है। इस पीपड के पेड़ का भूत तो नहीं। सब जानते हैं कि इस पेड़ पर एक भूत रहता है। राजमती का आठ साल बेटा अभी साल भर पहले मरा है। बताते हैं नहाने के बाद वह इस पेड़ पर खेलत खेलते चढ़ गया था। उसके दो दिन बाद से वह बीमार रहने लगा था आखिरकार एक दिन मर गया। उन्होंने मुखिया जी को ओर दखते हुए कहा मुखिया जी हमारे गांव पर जरूर कोई बड़ा संकट आने वाला है। पंडित जी के मुख से संकट शब्द सुनकर वहां उपस्थित सभी लो सन्न हो गए। वह डर के मारे एक दूसरे को देख रहे थे।
पंडित जी : मुखिया जी इस आफत से गांव को जल्दी से छुटकारा दिलवाइये। इसे तुरंत गांव से दूर भेजने का प्रंबंध करिए। नहीं तो पूरा गांव ही परेशान रहेगा।
मुखिया जी सहमे हुए थे बोले मैं क्या कर सकता हूं मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आप लोग ही कोई सुझाव दीजिए।
कुछ लोगों ने कहा इसे नदी में फेंक देना चाहिए। कुछ ने कहा इसे दूर किसी अन्य जगह पर ले जाकर छोड़ देना चाहिए।
इतना सब सुनकर मुंशी जी आगे आए बोले नवजात बच्चे को मारकर तुम सब लोग अपने उपर पाप क्यों लेना चाहते हो। इस बच्चे को शहर के किसी अनाथालय को दे देना चाहिए।
मुंशी जी की बात सबको सही लगी। मुखिया जी मुंशी जी के सुझाव पर सहमत होते हुए बोले यह ठीक रहेगा। आप गांव वाले क्या सोचते हैं। गांव वालों ने भी हामी भर दी। मुखिया जी ने पंडित जी से पूछा आप क्या कहते हैं मुखिया जी।
पंडित जी ने भी हां में हां मिलाया और कहा यही ठीक रहेगा।
मुखिया जी कुछ अभी भी सशंकित दिख रहे थे। उन्होंने शंका मिटाने के लिए एक बार फिर पंडित जी की तरफ मुखातिफ होकर पूछा यह बताइये पंडितजी बच्चे के जाने के बाद गांव पर जो आफत आने वाली थी वह पूर्ण रूप से टल जाएगी न।
मुखिया की बात सुनकर वहां उपस्थित सभी गांव वाले भी एक सुर में बोले हां पंडित जी आफत टल जाएगी न।
पंडित जी भी होशियार थे। उन्होंने कहा बच्चे के जाने के बाद शैतान का प्रकोप तो टल जाना चाहिए। लेकिन यदि संशय है तो उसका भी उपाय है।
सब पंडित जी की ओर देखने लगे। मुखिया जी भी पंडित जी के मुख को निहारने लगे।
तभी किसी ने भीड़ में से बोला पंडित जी क्या उपाय है जल्दी बताइये। मुखिया जी भी भीड़ की ओर देखने के बाद पंडित जी से बोले क्या उपाय है। पंडित जी कपा कर के बताए जिससे गांव पर कोई संकट नहीं आए।
पंडित जी बोले गांव में तीन दिन तक हवन करवाना पड़ेगा। उसके बाद यह बला टल जाएगी। हां खर्चा बहुत आयेगा।
मुखिया जी सोच में पड़ गए। तभी गांव के कुछ लोग आए और बोले मुखिया जी आप चिंता न करें। पूरे गांव पर से संकट टल जाए यही हम सब की कोशिश होनी चाहिए। आप से जितना हो सके आप मदद करिए बाकि गांव वाले मिल कर मदद करेंगे।
मुखिया जी ने कहा तो ठीक है। मैं अभी सभी गांव वालों से पूछ लेता हूं। सब यहीं पर हैं।
तभी बुधिया की मां मुखिया के पास आई। वह बच्चे को दूध पिलाकर गोद में लिए हुए थी। उसने मुखिया से कहा मुखिया जी आप और गांव वाले इस बच्चे की चिंता न करें। मैं इस बच्चे को अपने पास रखूंगी। मैं इसे पालूंगी।
मुखिया और सभी गांव वाले बुधिया की मां बात बात सुनकर उसे आश्चर्य से देखने लगे। कुछ देर वहां शांति छाई रही। फिर मुखिया जी ने कहा बुधिया की मां तुम यह क्या कह रही हो। इस बच्चे के कारण सारा गांव संकट में आ जाएगा।
पर बुधिया की मां की आंखों में ममता भरी हुई थी। उसे लग रहा था उसका बेटा बुधिया लौट आया है। उसकी आंखों से लगातार आंसू गिर रहे थे। उसने फिर दढ़ होकर कहा कोई संकट या आफत नहीं आएगी। यदि कोई संकट आएगा तो उसकी जिम्मेदारी मैं उठाती हूं। मैं इस बच्चे को किसी को नहीं दूंगी। ईश्वर ने मेरे बुधिया को इस बच्चे के रूप में वापस भेजा है। इतना कहते ही वह फूट फूट कर रोने लगी। बुधिया का भूत भी पेड़ पर बैठा बैठा अपनी मां को देख रहा था। वह अपनी मां को रोते हुए देख नहीं पाया। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं। उसे गांव वालों पर गुस्सा आ रहा था। वह चाहता तो पल भर में सबको सबक सिखा देता। लेकिन बच्चे का ख्याल आते ही वह उसी तरह आंख बंद करके शांत रहा।
बुधिया की मां अभी भी रो रही थी। गांव का हर व्यक्ति बुधिया के साथ हुए हादसे के बारे में जानता था। सब बुधिया की मां की ममता देखकर द्रवित हो रहे थे। पंडित जी भी उसकी ममता को देखकर नम्र हुए। उन्हें भी मां को बचाते बचाते बुधिया के डूबने की घटना याद आ रही थी।
मुखिया जी जो विनम्र स्वभाव के थे। उनसे रहा नहीं गया वह पंडित जी से बोले पंडित जी आप तो बुधिया के मां की बात सुने ही हैं। क्या इस बच्चे को इसके पास रहने दें।
पंडित जी के दिमाग में उस समय हवन से मिलने वाले दान दक्षिणा का गुणा भाग चल रहा था। पंडित जी ने उनकी बात सुनी नहीं। मुखिया जी तेज स्वर में अरे पंडित जी। कहां खो गए। पंडित जी थोड़ा हड़बड़ाए उन्होंने मुखिया जी को ओर देखा और बोला जल्दी बताइये क्या इस बच्चे को बुधिया की मां के पास रहने दिया जाए। पंडित जी ने लोभ पर नियंत्रण रखते हुए कहा। मुझे सोचने दीजिए। कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने कहा कि बच्चे को बुधिया की मां रख सकती है। परन्तु एक शर्त है।
क्या है वह शर्त। बुधिया की मां ने आश्चर्यचकित होकर पूछा। गांव वाले और मुखिया भी विस्मय से पंडित जी को देखने लगे।
पंडित जी बोले बुधई की मां तुम इस बच्चे को लेकर गांव में लेकर नहीं आओगी। इसका साया भी गांव के अन्दर नहीं पड़ना चाहिए। यह गांव के किसी बच्च्ो के साथ नहीं खेलेगा ना तो उनसे दोस्ती करेगा। और गांव वालों आप भी सुन लो अपने बच्चों को इधर नहीं भेजना। कुछ देर सोचने के बाद वह बोले तीन दिन का हवन तो कराना ही पड़ेगा। साथ ही बुधिया की मां को हवन में एक गाय दान में देना होगा। तब जाकर यह संकट टलेगा।
इतना सुनते ही बुधिया की मां कुछ सोचकर गाय भी देने को तैयार हो गई। वह तो बच्चे के लिए अपना सर्वस्व देने को तैयार थी। उसने कहा ठीक है जैसा पंडित जी कह रहे हैं मैं वैसा ही करूंगी।
मुखिया जी ने देखा कि पंडित जी के प्रस्ताव पर सब सहमत हैं तो उन्होंने सबको संबोधित करते हुए कहा मैं तो पंडित जी की सुझाव से सहमत हूं। बुधिया की मां बच्चे को रखना चाहती है तो रख सकती है लेकिन उसे पंडित जी की कही बातों पर अमल करना होगा।
मुखिया ने फिर बुधिया की मां की ओर देखते हुए कहा अब तुम इस बच्चे को रख सकती हो। लेकिन पंडित जी की बात हमेशा याद रखना। यह कहते हुए मुखिया जी पंडित जी की ओर देख कर बोले पंडित जी हवन की तिथि जल्द से जल्द निकालिए और हवन संपन्न कराइये। संकट जितनी जल्दी खत्म हो जाए उतना ही अच्छा।
पंडित जी ने मुखिया की बात का जवाब देते हुए बोले मैं अभी जाकर तिथि देखकर सूचित करता हूं।
मुखिया जी । ठीक है हम लोग धन की व्यवस्था करते हैं। आप हवन में लगने वाले सामानों की सूची भिजवा दीजिएगा।
पंडित जी। जी बिल्कुल।
बुधई का भूत पेड़ पर बैठा बैठा सब देख और सुन रहा था। उसने देखा कि सभी गांव वाले एक एक करके जा रहे हैं। मुखिया और पंडित जी भी चले गए। उसकी मां वहीं बच्चे को लेकर थोड़ी देर चबूतरे पर बैठी रही। वह बच्चे को गोद में लेकर दुलार रही थी। उसे या किसी को नहीं पता था कि इस पेड़ पर जो भूत है वह बुधिया की आत्मा है। उसे अपनी मां से इतना प्यार था कि उसने उसी पेड़ पर अपना डेरा बना लिया था। वहीं से वह अपनी मां को खेतों में काम करते हुए देखता रहता था। उसके मरने के बाद आज वह अपनी मां के चेहरे पर खुशी देख रहा था। वह भी बहुत खुश था।
कुछ देर बाद बच्चा खेलते खेलते सो गया। बुधई की मां उसे लेकर अपने झोपड़ी की तरफ चल पड़ी। बुधई का भूत उसे पेड़ पर बैठे ही मां को जाते हुए देख रहा था।
इधर गांव के हर घर में पीपल के पेड़ के नीचे मिले बच्चे के बारे में बातें हो रही थी। घर की जी के महिलाएं अपने बच्चों को लेकर संशकित थीं। घर के पुरूष भी डरे हुए थे। वह हवन से संकट दूर होने की बात कहकर घरवालों को समझाने की कोशिश कर रहे थे।
वहीं पंडित जी घर आकर खुश थे। उनकी 4 वर्ष की एक बेटी थी और एक दो महीने के बेटा था। उन्होंने पत्रा देखकर तिथि निकाली। फिर हवन में लगने वालों सामानों की सूची बनाने लगे। लंबी चौड़ी लिस्ट बनकर तैयार हो गई। वह भोजन करने के बाद बिना आराम किए मुखिया के घर की तरफ चल पड़े।
मुखिया घर के बरामदे में बैठ थे। उनको आठ दस लोग घेरे बैठे थे। सब सुबह हुए पीपल के पेड के नीचे की बात पर चर्चा कर रहे थे। मुखिया ने देखा पंडित जी आ रहे हैं उन्होंने एक कुर्सी और मंगा ली।
पंडित जी के बरामदे में प्रवेश करते ही सब लोग खड़े हो गए।
मुखिया जी। आइए आइए पंडित जी आप यहां बैठिए।
पंडित जी बिना कुछ बोले पहले कुर्सी पर बैठे। उनके बैठते ही बाकी सब बैठ गए।
मुखिया जी। अरे श्याम पंडित जी को पानी पिलाओ।
श्याम बिना देरी किए पानी और साथ में मीठा लाया। पानी पीकर पंडित जी सूची को मुखिया जी को पकड़ाते हुए कहा दो दिन बाद सोमवार की हवन शुरु करने की तिथि बन रही है। सोमवार महादेव जी का भी दिन है। इसी दिन हवन शुरू होकर बुधवार को सायं खत्म होगा। हवन के लिए जो सामग्री चाहिए जितना मुझे याद था मैंने सब सूची में लिख दिया है। कुछ घटेगा बढ़ेगा तो देखा जाएगा। इतना कहते ही पंडित जी खामोश हो गए।
मुखिया जी ने लंबी चौड़ी सूची पर एक नजर डाली। उन्होंने उसे पढ़ा नहीं उसे अपने पास रख लिया और बोले पंडित जी आप तैयारी शुरू करिए सारा सामान कल सुबह आप को मिल जाएगा। गांव में सभी लोग हवन के बारे में जान गए हैं जिससे जो बन पड़ रहा है वह मदद करने के लिए तैयार है।
नदी के किनारे एक खुले मैदान में सोमवार को प्रात काल हवन शुरू हो गया। पंडित जी ने आसपास के और भी ब्राहमणों को सहयोग के लिए बुला लिया था। तीन दिन सुबह से शाम तक हवन चलता रहा।
पंडित जी हवन समाप्त करने के बाद मुखिया जी से बोले अब हमारे गांव का संकट खत्म हो गया।
मुखिया जी बोले संकट खतम हो जाए उतना ही अच्छा।
गांव वाले भी मन ही मन अब निष्चिंत थे।
बुधिया भी यह सब देख रहा था। सूरज नदी के दूसरी लंबी लंबी खर पतवारों के पीछे लालिमा लिए हुए छुप रहा था। धीरे धीरे अंधेरे आसमान में अंधरे की चादर बिछने लगी थी। हवन खत्म होने के बाद सभी अपने अपने घरों को चले गए। सबके चले जाने के बाद भी वह पेड़ पर बैठा रहा! हवन कुंड से अभी भी धुंआ उठ रहा था। वह उसी उठते हुए धु़एं को देखता रहा। इसके बाद उसने अपने मां की झोपड़ी की ओर देखा। कुछ सोचकर वह पेड़ से उतरकर झोपड़ी की ओर चल पड़ा। झोपड़ी के पास पहुंच उसने अंदर झांककर देखा। लालटेन की मदधिम लौ से पूरी झोपड़ी के अंदर हल्का उजाला फैला हुआ था। उसकी मां चूल्हे से दूध गरम करके उतार रही थी। उसने लालटेन के दूसरी तरफ देखा बच्चा खटिया पर लेटा था। बच्चा लालटेन की लौ को देख रहा था। लौ जब हिलने हवा से हिलने लगती तो वह बहुत तेज अपना हाथ पांव चलाता था। लौ जब स्थिर हो जाती तो वह शांत होकर एकटक लौ को देखता रहता। बुधई ने फिर मां की ओर देखा वह दूध को एक गिलास में डालकर पानी के कटोरे में ठंडा करने के लिए रख दी। इसके बाद वह अपने लिए आटा गूंथने लगी। इस दौरान वह बीच बीच में चूल्हे में लकड़ी को आगे पीछे कर रही थी।
बुधई धीरे से बच्चे के पास पहुंचा। बच्चे को अपने आसपास किसी के होने का का आभास हुआ। वह अपनी गोल गोल आंखों से एकटक बुधई को खोज रहा था। वह एकदम शांत था। कहते हैं छोटे बच्चों मानसिक संवेदनाएं जागत रहती हैं। वह अपने आसपास की चीजों को महसूस कर लेते हैं। ठीक वैसे ही बच्चा जिधर से बुधई आया था उधर ही देखने लगा। किसी को बुधई का भूत दिख नहीं रहा था। लेकिन बच्चा उसे अपने पास महसूस कर रहा था। बुधई भी छुप गया। बच्चा विस्मित होकर ढूंढ रहा था। बुधई उसे छिप कर ध्यान से देख रहा था। वह खटिए के दूसरी तरफ चला गया। बच्चा भी दूसरी तरफ देखने लगा। बुधई फिर दूसरी तरफ चला गया। बच्चा फिर उस ओर देखने लगा। बुधई को लगा कि उसके ऐसा करने से बच्चा खुश होकर खेल रहा है। वह भी बच्चे के साथ खेलने लगा। वह बार बार इधर उधर होने लगा। बच्चा उतनी ही उत्सुकता से उसे खोजता।
रोटी गूंथने के बाद बुधई की मां दूध का गिलास लेकर आई। वह बच्चे को गोद में लेकर दूध पिलाने लगी। वह दूध पिलाने के लिए साफ रूइ लाई थी। वह रूई को दूध में भिगोकर बच्चे के मुंह में रखकर निचोड़ देती। बच्चा अपनी जीभ होठों पर रखकर दूध को चाटता रहता।
दूध मिलते ही बुधई को भूल गया औेंर वह दूध पीने में मगन हो गया। बुधई यह सब देखकर खुश था। उसने अपनी मां की तरफ देखा वह बच्चे को दूध पिलाने में खोई हुई थी। उसे और किसी चीज की सुध नहीं थी। उसने एक बा़र और मां की ओर देखा और झोपड़ी के बाहर चला आया। वह वापस पीपल के पेड़ पर आकर बैठ गया। वह वहीं से टूटी हुई झोपड़ी की एक सुराख से आ रहे उजाले को देखने लगा।
साल भर बीत गया बुधई का भूत रोजाना झोपड़ी में जाता था। बच्चे के साथ खेलता था। बच्चा उसे देख नहीं पाता था लेकिन उसकी मौजूदगी का आभास हो जाता था। बुधई भी उसको अपना छोटा भाई समझने लगा था। बुधई की मां बच्चे को नंदू कहकर बुलाती थी। नंदू अब अपने पैरों पर चलने लगा था। बुधई नंदू के साथ साए की तरह रहता था। नंदू अब बुधई के आसपास होने के आभास को को तो समझता ही था। वह उसके दुवारा हवा के इशारो को भी अच्छी तरह समझने लगा था। बुधई उससे क्या कहना चाहता वह पल में समझने लगा था।
धीरे धीरे 15 साल बीत गया। नंदू पंद्रह साल का हो गया था। उसकी लंबाई भी बहुत तेजी से बढ़ रही थी। वह इस समय करीब साढ़े पांच फीट का हो गया था। उसका शरीर बहुत गठा हुआ था। इन 15 सालों में उसके और बुधई के बीच संबंध सगे भाइयों से भी ज्यादा हो गए थे। नंदू कभी भी गांव के अंदर नहीं गया था। जब गांव के बच्चे नदी में नहाने आते और खेलते तो वह उन्हें दूर से ही देखता। वह नदी में घंटों तैरता रहता था। वह एक अच्छा तैराक बन गया था। वह जब तैरता था तो लगता था मानो कोई मछली तैर रही हो। कभी कभी जब बड़े वहां नहीं होते तो बच्चे उसे अपने साथ खेलने देते। वह उनके साथ जब खेलता तो मानो उसे दुनिया भर की खुशियां मिल गई हो। कई बार वह बच्चों के साथ खेलते हुए गांव के लोगों ने देखा तो वह बच्चों का खेल बंद कराकर बच्चों को घर लेकर चले जाते। गांव वाले नंदू को हिदायत देकर छोड़ देते। उसकी मां से भी शिकायत करते। बुधई की मां नंदू को डांटती और उनके जाने के बाद उसे प्यार से समझाती। ऐसा ही चलता रहा। बुधई भी यह सब देखता और सुनता रहता। वह बुधई पर चौबीस घंटे निगाह रखे रहता। नंदू जब नदी में तैरता तो वह पेड़ पर बैठे बैठे ही देखता रहता। वह मां को देखकर और खुश होता।
उन दिनों गर्मी खत्म होते ही बरसात का मौसम आ गया था। बारिश के पानी से नदी का पानी बढ़ने लगा था। जुलाई का अंतिम सप्ताह चल रहा था। पिछले दो दिन से बारिश हो रही थी। बुधई पेड़ पर बैठा बारिश को देख रहा था। बादल आसमान में घिरे थे। तभी बहुत तेज आवाज के साथ बिजली चमकने लगी। उसके बाद बहुत तेज बारिश होने लगी। बुधई को कुछ अनहोनी का आभास हुआ। तभी अचानक इतनी तेज की आवाज हुई कि मानो कहीं बादल फट गया हो या जमीन फट गई हो। बिजली इतनी तेज से चमकी थी कि आधी रात को लगा था कि दो तीन सेकेंड के लिए दिन निकल आया हो। आवाज का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पीपल का पेड़ बहुत तेज से हिलने लगा। बुधई ने देखा कि झोपड़ी का एक हिस्सा गिर गया है। वह तुरंत पेड़ से उतरकर झोपड़ी के पास गया। उसने देखा कि उसकी मां उठ गई है। नंदू भी झोपड़ी के टूटे हुए हिस्से को चारपाई लगा कर पानी रोकने का असफल प्रयास कर रहा है।
बुधई ने देखा कि पानी नदी के किनारे को तोड़ने को पूरा दम लगा रहा है। बारिश भी किनारों को तोड़ने में पानी का पूरा साथ दे रही है। वह नंदू के पास गया। नंदू को आभास हो गया कि बुधई उसके आसपास है। बुधई ने उसे नदी की तरफ देखने को कहा। नंदू ने जब उधर देखा तो वह समझ गया। नदी का पानी किनारे के उपर से उछल रहा था। उसने मां को दिखाया। मां ने देखते ही बोला नंदू देर मत करो यहां से जल्दी निकलो। पानी कभी भी गांव में सकता है। मां ने नंदू का हाथ पकड़ा और उसे एक उंचे टीले की ओर लेकर चल पड़ी। बुधई दोनों को जाते हुए देख रहा था। वह रात इतनी भयंकर थी कि बिजलियों का चमकना रूक नहीं रहा था। बादल रह रहकर गरज रहे थे। लग रहा था आसमान आज बहुत गुस्से में था। उसने जैसे ठान लिया हो कि जमीन पर वह फिरसे पानी का साम्राज्य खड़ा कर देगा। बुधई भी इस प्राकुतिक आपदा से डर रहा था।
मां और नंदू दोनों उंचे टीले पर पहुंच गए थे। दोनों अब सुरक्षित थे। टीले पर एक पुराना एक खंडहर था। दोनों एक कोने में बैठ गए। छत के कोने का हिस्सा अभी गिरा नहीं था। लेकिन पानी रिस रिस कर चू रहा था। बुधई ने देखा कि पानी किनारों को लांघ कर गांव में घुस रहा है। उसने देखा कि देखते देखते उसके मां की झोपड़ी पानी में बह गई। सारा सामान पानी के साथ बह रहा है। पानी अब और तेजी से गांव की तरफ बढ़ रहा है।
उधर गांव में भी भागो भागो बाढ़ आ गई बाढ आ गई का शोर मचा हुआ था। सब बचने के लिए इधर उधर सुरक्षित स्थानों की तलाश में परिवार को लेकर भाग रहे थे। मुखिया का मकान पक्का और उंचाई पर बना था। मकान भी दो मंजिला था। इधर पंडित जी जान बचाने के लिए दोनों बच्चों और पत्नी के साथ घर से निकल गए थे। उन्होंने इस जान बचाने की जददोजहद में अपना तिजोरी वाला बक्सा नहीं छोड़ा था। वह एक हाथ से लड़के का हाथ पकड़े हुए थे और उनके एक हाथ में बक्सा था। अब पानी और तेजी से बढ़ने लगा था। पानी घुटनों तक आ गया था। उन्होंने बक्से को उठाकर कंधे पर रख लिया। सारे गांव में अफरा तफरी मची हुई थी। परिवार के साथ साथ लोग अपने जानवरों को भी बचाने में लगे हुए थे। सब इस विपदा से अपने आपको बचाने में लगे हुए थे। पंडित जी की पत्नी बेटी का हाथ पकड़े हुए पीछे पीछे चल रही थी। वह पंडित जी को बच्चे का हाथ सावधानी से पकड़े रहने की बीच बीच में हिदायत भी दे रही थी। पानी अब कमर के उपर तक आ गया था। तभी पंडित जी का पैर किसी चीज से टकराया वह लडखड़ाए। बक्सा कंधे पर से गिर गया। बच्चे को का हाथ छोड़कर बक्सा संभालने लगे। इतने में पानी का बहाव और तेज हो गया। उनका बेटा पानी के साथ बहने लगा। वह चिल्ला रहा था पिताजी बचाइये बचाइये और बहता जा रहा था। पंडित जी बक्सा छोड़कर बच्चे की तरफ लपके। लेकिन पानी का बहाव इतना तेज था कि उनका बेटा बहते हुए दूर निकल गया। पंडित जी जोर जोर से चिल्लाने लगे बचाओ बचाओ कोई मेरे बेटे को। उधर पंडिताइन भी रोने लगी और पंडित जी को चिल्ला चिल्ला कर कोस रही थी। रात के अंधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। केवल लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। गांव के लोग खुद मुसीबत में थे। वह अपने परिवार और बच्चों को बचाने में लगे थे। वह पंडित और पंडिताईन की गुहार सुनकर भी निरीह थे। बगल में एक आदमी ने कहा अरे पंडित जी पहले अपने पत्नी और बेटी और खुद को बचाइये। पानी देख रहे हैं। गले तक आ गया है। अभी थोड़ी देर में उजाला हो जाएगा। तब उसे खोजा जाएगा। इस संकट की घड़ी में पंडित जी को उसकी सलाह उचित लगी। वह पत्नी और बेटी को मुखिया के घर की तरफ जाने लगे। पर उनकी पत्नी जाने को तैयार नहीं हो रही थी। वह बेटे को बचाने के लिए जाना चाह रही थी। पंडित जी ने उसे बचा के लाने का आश्वासन दिया तब वह मानीं। वह मुखिया के घर तक पहुंच गए। वह और उनका परिवार अब सुरक्षित थे। वह चिंतित रुआसे थे। पत्नी अभी भी रो रही थी। उनका रो रोकर बुरा हाल हो गया था। वह पंडित जी को कोस रही थीं कि इनको अपने बक्से की पड़ी थी। वह कह रही थी कि यदि इन्होंने बक्से को संभालने के लिए बच्चे का हाथ नहीं छोड़ा होता तो मेरा बेटा पानी में नहीं बहता। पता नही मेरा बेटा कहां होगा। हे प्रभु उसकी रक्षा करना। उधर अभी भी पूरे गांव में कोलाहल मचा हुआ था।
मुखिया के घर से लगातार रोने की आवाज सुनाई दे रही थी। रोने की आवाज सुनकर बुधई को रहा नहीं गया। वह तुरंत मुखिया के घर तरफ दौडा। उसने देखा कि रोना पीटना मचा है। पंडिताईन चीख चीख कर रो रही हैं। अरे कोई मेरे बेटे को बचाओ। बुधई समझ गया कि पंडित जी का बेटा पानी में बह गया है। उसने देखा कि पानी तो अब और बढ रहा है। मुखिया के घर के पहली मंजिल तक पानी आ गया है। वह पंडित जी के बेटे को खोजने लगा। वह पानी के बहने की दिशा में खोज रहा था। वह जानता था कि वह पानी के बहने की दिशा में ही गया होगा। करीब चार पांच सौ मीटर दूर उसने देखा कि बिजली का खंभा पकड़े कोई रो रोकर बचाने के लिए चीख रहा है। खंभे को लगे 6 साल हो गए थे लेकिन इन खंभो पर अभी तक तार नहीं लगे थे तो बिजली कहां से दौड़ती। बुधई खंभे के पास गया। वह पंडित जी़ का बेटा था। उसका पैर पानी में डूबा हुआ था। उसने पेरों और हाथों से खंभे को लपेटा हुआ था। वह बचने का अथक प्रयास कर रहा था। बुधई तो भूत था वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था। उसने कुछ सोचा फिर नंदू और मां जहां थे वहां पहुंचा। वह जानता था कि नंदू एक अच्छा तैराक है। वह घंटों बिना थके तैर सकता है। वह नंदू के पास पहुंचा। उसने देखा कि वहां दो लोग और बचने के उलिए शरण लिए हुए हैं। वह लोग पंडित जी के बेटे के ही बारे में बातें कर रहे थे। बुधई के आने का आभास नंदू को हो गया। नंदू अभी उठ के आता बुधई पानी की ओर चलने लगा। नंदू को समझ में आ गया कि कुछ तो गडबड है। बुधई उसे कुछ दिखाना चाहता है। वह भी उसके पीछे पीछे पानी में कूद पड़ा। इन पंद्रह सालों में दोनों में भाइयों जैसा संबंध बन गया था। बुधई भले ही न बोलता था और न दिखता था पर नंदू उसकी हलचल को अच्छी तरह समझता था। नंदू उसके पीछे पीछे तैरने लगा। बुधई उसे उस खंभे के पास ले गया जहां पंडित जी का बेटा था। वहां पहुंचते ही नंदू को खंभे को पकड़े हुए कोई दिखा। नंदू उसके पास गया उसने देखा यह तो पंडित जी का बेटा है। वह समझ गया कि बुधई उसे यहां क्यों लाया है। उसने पंडित जी के बेटे का कंधा पकड़ा और तैरने लगा। नंदू को पता नहीं था कि बुधिया उसे कहां ले जा रहा है। वह उसके पीछे पीछे चल रहा था। बुधिया उसके आगे आगे चल रहा था। वह उसे मुखिया के घर की ओर लेकर जा जरा था।
इधर पंडित जी की पत्नी रो रोकर बेहोश हो गई थी। सब पंडित जी के बच्चे को लेकर चिंतित थे। तब तक की सुबह हो गई थी। दिन के उजाले में बाढ़ की विभिषिका अब दिखाई देने लगी थी। गांव के मकान ध्वस्त हो गए थे। बर्तन कपड़े पानी में उधर उधर तैर रहे थे। तभी किसी ने मुखिया के बाहर से आवाज लगाई अरे वो देखो कौन तैरता हुआ आ रहा है। तभी फिर आवाज आई अरे यह तो नंदू है। मुखिया ने पूछा कौन नंदू। अरे वही जो आज से पंद्रह साल पहले पीपड़ के पेड़ के नीचे मिला था। ये तो किसी को पकड के ला रहा है। यह तो पंडित जी के बेटा है। इतना सुनते ही पंडित जी भागकर छत की रेलिंग तक आए। पंडिताईन को भी होश आ गया। वह भी भाग कर आईं सब रेलिंग के पास आ गए। उन्होंने देखा नंदू के एक कंधे को पंडित जी के बेटे ने पकड़ा हुआ है।
दीवार के पास पहुंचते ही मुखिया ने पंडित जी के बेटे को उपर खींचा। पंडिताइन ने बेटे को गले से लगा लिया और रोने लगी। मुखिया ने फिर उसके बाद नंदू का हाथ पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। लेकिन नंदू वहां रूका नहीं वह तैर कर दूसरी तरफ जा रहा था। पंडिताइन एक हाथ से बेटे को सीने से लगा के रो रही थीं। उनकी आंखें तैरते हुए नंदू पर टिकी हुईं थी। उनकी आंखें एकटक नंदू को देख रही थीं। पंडित जी को बड़ा पछतावा हो रहा था। उनके सामने पंद्रह साल पहले की पीपल के पेड़ की घटना याद आने लगी। वह लज्जित आंखों से नंदू की ओर देख रहे थे। मुखिया जी भी शमिर्दां थे। बुधई भी वहीं खड़ा होकर सब देख रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि नंदू रूका क्यों नहीं। वह उसके पीछे पीछे हो लिया।