Sunday 7 February 2021

पीपल का पेड़

पीपल का पेड़

 


नदी के आसपास घनघोर अंधेरा छाया था। आसमान को काले बादलों ने चारो तरफ से घेरा हुआ था। नदी के बहाव की दिशा में किनारे पर एक साया तेज कदमों से चल रहा था। वह दौड़ नहीं पा रहा था। क्‍योंकि उसकी गोद में कोई और भी था। लेकिन तब भी वह साये की चाल दौड़ने जितनी थी। पीछ से रह रह कर गोलियां चलने की आवाजें आ रहीं थीं। वह साया नदी के किनारे स्थित पीपल के पेड़ की ओट में छुप गया। पेड़ के चारो तरफ एक पक्‍का चबूतरा बना था। वह साया काफी देर तक बिना हिले डुले वैसे ही पड़ा रहा। हवाएं इस कदर चल रही थीं मानो पेड़ की डालियां पेड़ से टूट कर गिर जाएंगी। बीच बीच में कुत्‍तों के भौंकने की आवाजें माहौल का और डरावना बना रही थीं। लेकिन साये पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा था। वह पेड़ के चबूतरे की तरह वहां से टस से मस नहीं हुई। आखिर कुछ देर बाद वह साया उठा। उसने गोद से उतारकर एक नवजात बच्‍चे को चबूतरे पर लिटा दिया। वह उसे अपने से अलग नहीं करना चाह रही थी। लेकिन कोई मजबूरी रही होगी तभी वह ऐसा कर रही थी। बच्‍चे को लिटाने के बाद उसे अच्‍छी तरह से कपडे से ढकने के बाद उसके माथे को चूमा और वहां से जाने लगी। साये के चलने से लग रहा था कि वह वहां से जाना नहीं चाह रही थी। आखिरकार थोड़ी दूर जाने के बाद उसने एक बार फिर मुड़कर बच्‍चे को देखा और अंधेंरे में खो गई।

गोलियों की आवाजें भी आनी अब बंद हो गईं थी। रात की खामोशी बहुत ही भयावह थी। बीच बीच में कुत्‍तों के भौंकने की आवाज से आसपास का परिदृश्‍य और डरावना हो जाता था। 

उस पीपल के पेड़ पर बैठा बैठा कोई यह सब देख रहा था। उसे डर नहीं लग रहा था। वह बुधई का भूत था। चार साल पहले आई बाढ़ में वो अपनी मां को बचाते बचाते डूब गया था। वह और उसकी मां नदी के किनारे तरबूज और सब्जियां उगाकर अपना जीवन यापन करते थे। उसकी मां नदी के पास ही खेतों में एक झोपड़ी डालकर रहती थी। बुधई को अपनी मां से इतना प्रेम था कि उसकी आत्‍मा पिछले चार साल से इसी पेड़ पर रह रही है। वह वहीं से अपनी मां को देखा करता था। नदी के किनारे स्थित यह पीपल का पेड़ बीरक गांव की सीमा निर्धारित करता था। यह बीरक गांव के अंतिम छोर पर था। गांव वालों का मानना था कि इस पेड़ पर एक भूत रहता है। इसलिए डर के मारे गांव वाले अंधेरा होने के बाद इधर नहीं आते थे।

हवा और तेज चलने लगी। बुधई का भूत पेड़ से नीचे उतरता है। वह देखता है कि नवजात बच्‍चा सो रहा है। वह उसके पास जाता है। लगता है जैसे बच्‍चे को आभास हो जाता है कि उसके आसपास कोई है। बच्‍चा नींद में ही अपनी बंद पलकों को मीचता है सिर को बाईं तरफ करवट लेता है। वह नींद में अब भी है। बुधई उसको ध्‍यान से देखता है। उसे देखकर उसे अपनापन सा लगता है। वह वहीं बैठ जाता है।

सुबह की पहली किरण धीरे- धीरे रात के अंधेरे को मिटा रही थी। पक्षियों का चहकना शुरू हो गया था। यह समय बीरक गांव के पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी जी के स्‍नान का था। उधर पंडित जी ने आवाज लगाई अरे सुषमा की अम्‍मा मेरा अंगोछा लाओ मुझे देर हो रही है। पंडित जी की दो संताने हैं। बड़ी बेटी चार साल की है जिसका नाम सुषमा है। उससे छोटा दो माह का एक बेटा है जिसका नाम परिमल है।

पंडित जी रोजाना सुबह चार बजे नित्‍य कर्म के बाद नदी के कबरी घाट पर स्‍नान करने के लिए आते हैं। कबरी घाट के बारे में भी एक दिलचस्‍प कहानी है। गांव वाले कहते हैं कि इसका असली नाम कबीर घाट है। कबीर घाट इसलिए पड़ा कि क्‍योंकि इस घाट के 10 किमी के  दायरे में विभिन्‍न धर्मों के अलावा छोटी बड़ी जाति के सभी लोग स्‍नान करते हैं। वह बड़ी श्रद्धा से इस घाट पर मिलजुल कर यहां पर स्‍नान करते थे। बाद में धीरे धीरे इस़का नाम बिगड़ते बिगड़ते कबरी घाट पड़ गया।

अपने रोजाने के समय पर पंडित जी ने स्‍नान करने के बाद आचमन किया। साथ में वह मंत्र भी बुदबुदा रहे थे। वह पानी से बाहर आकर कपडे बदल कर जल्‍दी जल्‍दी घर की ओर चल दिए। रास्‍ते में ही पीपल का पेड़ पड़ता था। वह जब वहां से गुजर रहे थे कि बच्‍चे के रोने की आवाज उन्‍हें सुनाई दी। एक पल के लिए वह ठहरे। चबूतरे की तरफ देखा। बच्‍चे के रोने की आवाज लगातार आ रही थी। सामने से चबूतरे पर कुछ दिख नहीं रहा था। वह पीछे की तरफ गए। दूर से ही उन्‍होंने देखा कि कपड़े में लिपटा एक नवजात शिशु रो रहा था। वह जानते थे कि इस पीपल के पेड़ पर एक भूत रहता है। वह शकुन अपशकुन के भंवर जाल में डूबने उतराने लगे। डर के मारे उनकी हालत खराब हो गई। उन्‍होंने आसपास देखा कोई देख तो नहीं रहा है। उन्‍होंने वहां से तुरंत जाने की सोची।

घर पर पहुंच कर वह तुरंत पूजा पर बैठ गए। शंका और डर के मारे वह बीच बीच में मंत्र भूल जाते। वह दोबारा मंत्र पढ़ते। यह क्रम लगातार चलता रहा। तभी उनकी पत्‍नी की आवाज सुनाई दी सुनते हो जी पीपल के पेड़ के नीचे एक नवजात बच्‍चा मिला है। वहां सारे गांव के लोग इकट्ठा हैं। मुखिया ने संदेशा भेजकर आपको जल्‍दी बुलवाया है। पंडित जी को नवजात बच्‍चे के बारे में तो पता ही था। वह आधी अधूरी पूजा खत्‍म कर नदी के किनारे पहुंचे। नजर उठा कर एक बार पेड़ के आसपास नजर दौड़ाई। गांव के लगभग सभी वहां आए हुए थे। सब वहां आपस में बच्‍चे को लेकर बातें कर रहे थे और सवाल उठा रहे थे कि यह बच्‍चा कहां से आया इसे कौन लाया है कब आया है। कहीं इस पेड़ का भूत तो बच्‍चा बन कर नहीं आ गया है। अजीब सा माहौल बन गया था सब डरे हुए थे।

बच्‍चा लगातार रोए जा रहा था। पीपल के पेड़ के भूत के डर से कोई भी उसके पास नहीं जा रहा था। सभी दूर से ही उसे देख रहे थे। पेड़ पर बैठा बुधिया का भूत भी यह सब देख रहा था। तभी उसने देखा कि उसकी मां उस बच्‍चे को गोद में उठा कर चुप कराने लगी। उसने जोर से कहा अरे बच्‍चा भूखा है कोई इसे दूध लाकर दो। लेकिन कोई वहां से हिला नहीं। वहां कुछ ऐसी महिलाएं भी खड़ीं थी। जिनकी गोद में दो चार महीने का बच्‍चा था। वह चाहती तो बच्‍चे को थोड़ा दूध पिला सकती थीं। लेकिन शंका और डर के मारे वो आगे नहीं आ रहीं थीं। बुढि़या ने देखा कि कोई बच्‍चे को दूध पिलाने के लिए आगे नहीं आ रहा है। वह गांव वालों को कोसने लगी। वह बहुत निराश हो गई। उसने बच्‍चे को चबूतरे पर लिटाते हुए बोली रोओ मत बेटा मैं अभी आ रही हूं। वह जल्‍दी से कुछ दूर स्थित अपनी टूटी झोपड़ी में गई। उसने जल्‍दी से गिलास में दूध डाला और एक साफ धोती का टुकड़ा फाड़ कर चबूतरे पर आई। उसने बच्‍चे को गोद में उठा लिया। तभी मुखिया और आसपास खड़े लोगों ने उसे रोका यह क्‍या कर रही हो बुधिया की माई। उसे मत छूओ पता नहीं कौन है कहां से आया है। आदमी है कि भूत है। लेकिन बुधिया की मां सबकी बातों को अनसुना करके चबूतरे पर बैठ गई। वह एक बच्‍चे को पाल चुकी थी उसे पता था कि नवजात बच्‍चे को दूध कैसे पिलाया जाता है। उसने कपड़े को दूध में भिगोया और बच्‍चे के होंठों पर बूंद बूंद करके दूध गिराने लगी। बच्‍चा छोटी सी जीभ निकालकर दूध को चाटने लगा। बच्‍चा चुप होकर इस तरह से दूध पीने लगा। बच्‍चे को दूध पिलाते पिलाते बुधिया की मां के आंसू निकल रहे थे। उसे बुधिया की याद आ रही थी। जब बुधिया पैदा हुआ था तो उसे दूध उतर नहीं रहा था। उसने उस समय अपनी बहन को बुला लिया था। उसका भी एक 6 महीने का बच्‍चा था। वह अपने बच्‍चे को पिलाने के बाद बुधिया को भी दूध पिला देती। कुछ दिन बाद उसके चले जाने के बाद वह कपड़े से दूध गारकर पिलाती।

तभी बुधिया की मां को पंडित जी की आवाज सुनाई दी। उन्‍होंने जोर से कहा बुधिया की मां तुम ये क्‍या कर रही हो तुम उससे दूर हटो। पता नहीं यह बच्‍चा किसका है। इस पीपड के पेड़ का भूत तो नहीं। सब जानते हैं कि इस पेड़ पर एक भूत रहता है। राजमती का आठ साल बेटा अभी साल भर पहले मरा है। बताते हैं नहाने के बाद वह इस पेड़ पर खेलत खेलते चढ़ गया था। उसके दो दिन बाद से वह बीमार रहने लगा था आखिरकार एक दिन मर गया। उन्‍होंने मुखिया जी को ओर दखते हुए कहा मुखिया जी हमारे गांव पर जरूर कोई बड़ा संकट आने वाला है। पंडित जी के मुख से संकट शब्‍द सुनकर वहां उपस्थित सभी लो सन्‍न हो गए। वह डर के मारे एक दूसरे को देख रहे थे।

पंडित जी : मुखिया जी इस आफत से गांव को जल्‍दी से छुटकारा दिलवाइये। इसे तुरंत गांव से दूर भेजने का प्रंबंध करिए। नहीं तो पूरा गांव ही परेशान रहेगा।

मुखिया जी सहमे हुए थे बोले मैं क्‍या कर सकता हूं मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है। आप लोग ही कोई सुझाव दीजिए।  

कुछ लोगों ने कहा इसे नदी में फेंक देना चाहिए। कुछ ने कहा इसे दूर किसी अन्‍य जगह पर ले जाकर छोड़ देना चाहिए।

इतना सब सुनकर मुंशी जी आगे आए बोले नवजात बच्‍चे को मारकर तुम सब लोग अपने उपर पाप क्‍यों लेना चाहते हो। इस बच्‍चे को शहर के किसी अनाथालय को दे देना चाहिए।

मुंशी जी की बात सबको सही लगी। मुखिया जी मुंशी जी के सुझाव पर सहमत होते हुए बोले यह ठीक रहेगा। आप गांव वाले क्‍या सोचते हैं। गांव वालों ने भी हामी भर दी। मु‍खिया जी  ने पंडित जी से पूछा आप क्‍या कहते हैं मुखिया जी।

पंडित जी ने भी हां में हां मिलाया और कहा यही ठीक रहेगा।

मुखिया जी कुछ अभी भी सशंकित दिख रहे थे। उन्‍होंने शंका मिटाने के लिए एक बार फिर पंडित जी की तरफ मुखातिफ होकर पूछा यह बताइये पंडितजी बच्‍चे के जाने के बाद गांव पर जो आफत आने वाली थी वह पूर्ण रूप से टल जाएगी न।

मुखिया की बात सुनकर वहां उपस्थित सभी गांव वाले भी एक सुर में बोले हां पंडित जी आफत टल जाएगी न।

पंडित जी भी होशियार थे। उन्‍होंने कहा बच्‍चे के जाने के बाद शैतान का प्रकोप तो टल जाना चाहिए। लेकिन यदि संशय है तो उसका भी उपाय है।

सब पंडित जी की ओर देखने लगे। मुखिया जी भी पंडित जी के मुख को निहारने लगे।

तभी किसी ने भीड़ में से बोला पंडित जी क्‍या उपाय है जल्‍दी बताइये। मुखिया जी भी भीड़ की ओर देखने के बाद पंडित जी से बोले क्‍या उपाय है। पंडित जी कपा कर के बताए जिससे गांव पर कोई संकट नहीं आए।

पंडित जी बोले गांव में तीन दिन तक हवन करवाना पड़ेगा। उसके बाद यह बला टल जाएगी। हां खर्चा बहुत आयेगा।

मुखिया जी सोच में पड़ गए। तभी गांव के कुछ लोग आए और बोले मुखिया जी आप चिंता न करें। पूरे गांव पर से संकट टल जाए यही हम सब की कोशिश होनी चाहिए। आप से जितना हो सके आप मदद करिए बाकि गांव वाले मिल कर मदद करेंगे।

मुखिया जी ने कहा तो ठीक है। मैं अभी सभी गांव वालों से पूछ लेता हूं। सब यहीं पर हैं।

तभी बुधिया की मां मुखिया के पास आई। वह बच्‍चे को दूध पिलाकर गोद में लिए हुए थी। उसने मुखिया से कहा मुखिया जी आप और गांव वाले इस बच्‍चे की चिंता न करें। मैं इस बच्‍चे को अपने पास रखूंगी। मैं इसे पालूंगी।

मुखिया और सभी गांव वाले बुधिया की मां बात बात सुनकर उसे आश्‍चर्य से देखने लगे। कुछ देर वहां शांति छाई रही। फिर मुखिया जी ने कहा बुधिया की मां तुम यह क्‍या कह रही हो। इस बच्‍चे के कारण सारा गांव संकट में आ जाएगा।

पर बु‍धिया की मां की आंखों में ममता भरी हुई थी। उसे लग रहा था उसका बेटा बुधिया लौट आया है। उसकी आंखों से लगातार आंसू गिर रहे थे। उसने फिर दढ़ होकर कहा कोई संकट या आफत नहीं आएगी। यदि कोई संकट आएगा तो उसकी जिम्‍मेदारी मैं उठाती हूं। मैं इस बच्‍चे को किसी को नहीं दूंगी। ईश्‍वर ने मेरे बुधिया को इस बच्‍चे के रूप में वापस भेजा है। इतना कहते ही वह फूट फूट कर रोने लगी। बुधिया का भूत भी पेड़ पर बैठा बैठा अपनी मां को देख रहा था। वह अपनी मां को रोते हुए देख नहीं पाया। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं। उसे गांव वालों पर गुस्‍सा आ रहा था। वह चाहता तो पल भर में सबको सबक सिखा देता। लेकिन बच्‍चे का ख्‍याल आते ही वह उसी तरह आंख बंद करके शांत रहा।

बुधिया की मां अभी भी रो रही थी। गांव का हर व्‍यक्ति बुधिया के साथ हुए हादसे के बारे में जानता था। सब बुधिया की मां की ममता देखकर द्रवित हो रहे थे। पंडित जी भी उसकी ममता को देखकर नम्र हुए। उन्‍हें भी मां को बचाते बचाते बुधिया के डूबने की घटना याद आ रही थी।

मुखिया जी जो विनम्र स्‍वभाव के थे। उनसे रहा नहीं गया वह पंडित जी से बोले पंडित जी आप तो बुधिया के मां की बात सुने ही हैं। क्‍या इस बच्‍चे को इसके पास रहने दें।

पंडित जी के दिमाग में उस समय हवन से मिलने वाले दा‍न दक्षिणा का गुणा भाग चल रहा था। पंडित जी ने उनकी बात सुनी नहीं। मुखिया जी तेज स्‍वर में अरे पंडित जी। कहां खो गए। पंडित जी थोड़ा हड़बड़ाए उन्‍होंने मुखिया जी को ओर देखा और बोला जल्‍दी बताइये क्‍या इस बच्‍चे को बुधिया की मां के पास रहने दिया जाए। पंडित जी ने लोभ पर नियंत्रण रखते हुए कहा। मुझे सोचने दीजिए। कुछ देर सोचने के बाद उन्‍होंने कहा कि बच्‍चे को बुधिया की मां रख सकती है। परन्‍तु एक शर्त है।

क्‍या है वह शर्त। बुधिया की मां ने आश्‍चर्यचकित होकर पूछा। गांव वाले और मुखिया भी विस्‍मय से पंडित जी को देखने लगे।

पंडित जी बोले बुधई की मां तुम इस बच्‍चे को लेकर गांव में लेकर नहीं आओगी। इसका साया भी गांव के अन्‍दर नहीं पड़ना चाहिए। यह गांव के किसी बच्‍च्‍ो के साथ नहीं खेलेगा ना तो उनसे दोस्‍ती करेगा। और गांव वालों आप भी सुन लो अपने बच्‍चों को इधर नहीं भेजना। कुछ देर सोचने के बाद वह बोले तीन दिन का हवन तो कराना ही पड़ेगा। साथ ही बुधिया की मां को हवन में एक गाय दान में देना होगा। तब जाकर यह संकट टलेगा।

इतना सुनते ही बुधिया की मां कुछ सोचकर गाय भी देने को तैयार हो गई। वह तो बच्‍चे के लिए अपना सर्वस्‍व देने को तैयार थी। उसने कहा ठीक है जैसा पंडित जी कह रहे हैं मैं वैसा ही करूंगी।

मुखिया जी ने देखा कि पंडित जी के प्रस्‍ताव पर सब सहमत हैं तो उन्‍होंने सबको संबोधित करते हुए कहा मैं तो पं‍डित जी की सुझाव से सहमत हूं। बु‍धिया की मां बच्‍चे को रखना चाहती है तो रख सकती है लेकिन उसे पंडित जी की कही बातों पर अमल करना होगा।

मुखिया ने फिर बुधिया की मां की ओर देखते हुए कहा अब तुम इस बच्‍चे को रख सकती हो। लेकिन पंडित जी की बात हमेशा याद रखना। यह कहते हुए मुखिया जी पंडित जी की ओर देख कर बोले पंडित जी हवन की तिथि जल्‍द से जल्‍द निकालिए और हवन संपन्‍न कराइये। संकट जितनी जल्‍दी खत्‍म हो जाए उतना ही अच्‍छा।

पंडित जी ने मुखिया की बात का जवाब देते हुए बोले मैं अभी जाकर तिथि देखकर सूचित करता हूं।

मुखिया जी । ठीक है हम लोग धन की व्‍यवस्‍था करते हैं। आप हवन में लगने वाले सामानों की सूची भिजवा दीजिएगा।

पंडित जी। जी बिल्‍कुल।

बु‍धई का भूत पेड़ पर बैठा बैठा सब देख और सुन रहा था। उसने देखा कि सभी गांव वाले एक एक करके जा रहे हैं। मुखिया और पं‍डित जी भी चले गए। उसकी मां वहीं बच्‍चे को लेकर थोड़ी देर चबूतरे पर बैठी रही। वह बच्‍चे को गोद में लेकर दुलार रही थी। उसे या किसी को नहीं पता था कि इस पेड़ पर जो भूत है वह बु‍धिया की आत्‍मा है। उसे अपनी मां से इतना प्‍यार था कि उसने उसी पेड़ पर अपना डेरा बना लिया था। वहीं से वह अपनी मां को खेतों में काम करते हुए देखता रहता था। उसके मरने के बाद आज वह अपनी मां के चेहरे पर खुशी देख रहा था। वह भी बहुत खुश था।

कुछ देर बाद बच्‍चा खेलते खेलते सो गया। बुधई की मां उसे लेकर अपने झोपड़ी की तरफ चल पड़ी। बुधई का भूत उसे पेड़ पर बैठे ही मां को जाते हुए देख रहा था।

इधर गांव के हर घर में पीपल के पेड़ के नीचे मिले बच्‍चे के बारे में बातें हो रही थी। घर की जी के महिलाएं अपने बच्‍चों को लेकर संशकित थीं। घर के पुरूष भी डरे हुए थे। वह हवन से संकट दूर होने की बात कहकर घरवालों को समझाने की कोशिश कर रहे थे।

वहीं पंडित जी घर आकर खुश थे। उनकी 4 वर्ष की एक बेटी थी और एक दो महीने के बेटा था। उन्‍होंने पत्रा देखकर तिथि निकाली। फिर हवन में लगने वालों सामानों की सूची बनाने लगे। लंबी चौड़ी लिस्‍ट बनकर तैयार हो गई। वह भोजन करने के बाद बिना आराम किए मुखिया के घर की तरफ चल पड़े।

मुखिया घर के बरामदे में बैठ थे। उनको आठ दस लोग घेरे बैठे थे। सब सुबह हुए पीपल के पेड के नीचे की बात पर चर्चा कर रहे थे। मुखिया ने देखा पंडित जी आ रहे हैं उन्‍होंने एक कुर्सी और मंगा ली।

पंडित जी के बरामदे में प्रवेश करते ही सब लोग खड़े हो गए।

मुखिया जी। आइए आइए पंडित जी आप यहां बैठिए।

पंडित जी बिना कुछ बोले पहले कुर्सी पर बैठे। उनके बैठते ही बाकी सब बैठ गए।

मुखिया जी। अरे श्‍याम पंडित जी को पानी पिलाओ।

श्‍याम बिना देरी किए पानी और साथ में मीठा लाया। पानी पीकर पंडित जी सूची को मुखिया जी को पकड़ाते हुए कहा दो दिन बाद सोमवार की हवन शुरु करने की तिथि बन रही है। सोमवार महादेव जी का भी दिन है। इसी दिन हवन शुरू होकर बुधवार को सायं खत्‍म होगा। हवन के लिए जो सामग्री चाहिए जितना मुझे याद था मैंने सब सूची में लिख दिया है। कुछ घटेगा बढ़ेगा तो देखा जाएगा। इतना कहते ही पंडित जी खामोश हो गए।

मुखिया जी ने लंबी चौड़ी सूची पर एक नजर डाली। उन्‍होंने उसे पढ़ा नहीं उसे अपने पास रख लिया और बोले प‍ं‍डित जी आप तैयारी शुरू करिए सारा सामान कल सुबह आप को मिल जाएगा। गांव में सभी लोग हवन के बारे में जान गए हैं जिससे जो बन पड़ रहा है वह मदद करने के लिए तैयार है।

नदी के किनारे एक खुले मैदान में सोमवार को प्रात काल हवन शुरू हो गया। पंडित जी ने आसपास के और भी ब्राहमणों को सहयोग के लिए बुला लिया था। तीन दिन सुबह से शाम तक हवन चलता रहा।

पंडित जी हवन समाप्‍त करने के बाद मुखिया जी से बोले अब हमारे गांव का संकट खत्‍म हो गया।

मुखिया जी बोले संकट खतम हो जाए उतना ही अच्‍छा।

गांव वाले भी मन ही मन अब निष्चिंत थे।

बु‍धिया भी यह सब देख रहा था। सूरज नदी के दूसरी लंबी लंबी खर पतवारों के पीछे लालिमा लिए हुए छुप रहा था। धीरे धीरे अंधेरे आसमान में अंधरे की चादर बिछने लगी थी। हवन खत्‍म होने के बाद सभी अपने अपने घरों को चले गए। सबके चले जाने के बाद भी वह पेड़ पर बैठा रहा! हवन कुंड से अभी भी धुंआ उठ रहा था। वह उसी उठते हुए धु़एं को देखता रहा। इसके बाद उसने अपने मां की झोपड़ी की ओर देखा। कुछ सोचकर वह पेड़ से उतरकर झोपड़ी की ओर चल पड़ा। झोपड़ी के पास पहुंच उसने अंदर झांककर देखा। लालटेन की मदधिम लौ से पूरी झोपड़ी के अंदर हल्‍का उजाला फैला हुआ था। उसकी मां चूल्‍हे से दूध गरम करके उतार रही थी। उसने लालटेन के दूसरी तरफ देखा बच्‍चा खटिया पर लेटा था। बच्‍चा लालटेन की लौ को देख रहा था। लौ जब हिलने हवा से हिलने लगती तो वह बहुत तेज अपना हाथ पांव चलाता था। लौ जब स्थिर हो जाती तो वह शांत होकर एकटक लौ को देखता रहता। बुधई ने फिर मां की ओर देखा वह दूध को एक गिलास में डालकर पानी के कटोरे में ठंडा करने के लिए रख दी। इसके बाद वह अपने लिए आटा गूंथने लगी। इस दौरान वह बीच बीच में चूल्‍हे में लकड़ी को आगे पीछे कर रही थी।

बुधई धीरे से बच्‍चे के पास पहुंचा। बच्‍चे को अपने आसपास किसी के होने का का आभास हुआ। वह अपनी गोल गोल आंखों से एकटक बुधई को खोज रहा था। वह एकदम शांत था। कहते हैं छोटे बच्‍चों मानसिक संवेदनाएं जागत रहती हैं। वह अपने आसपास की चीजों को महसूस कर लेते हैं। ठीक वैसे ही बच्‍चा जिधर से बुधई आया था उधर ही देखने लगा। किसी को बुधई का भूत दिख नहीं रहा था। लेकिन बच्‍चा उसे अपने पास महसूस कर रहा था। बुधई भी छुप गया। बच्‍चा विस्मित होकर ढूंढ रहा था। बुधई उसे छिप कर ध्‍यान से देख रहा था। वह खटिए के दूसरी तरफ चला गया। बच्‍चा भी दूसरी तरफ देखने लगा। बुधई फिर दूसरी तरफ चला गया। बच्‍चा फिर उस ओर देखने लगा। बुधई को लगा कि उसके ऐसा करने से बच्‍चा खुश होकर खेल रहा है। वह भी बच्‍चे के साथ खेलने लगा। वह बार बार इधर उधर होने लगा। बच्‍चा उतनी ही उत्‍सुकता से उसे खोजता।

रोटी गूंथने के बाद बुधई की मां दूध का गिलास लेकर आई। वह बच्‍चे को गोद में लेकर दूध पिलाने लगी। वह दूध पिलाने के लिए साफ रूइ लाई थी। वह रूई को दूध में भिगोकर बच्‍चे के मुंह में रखकर निचोड़ देती। बच्‍चा अपनी जीभ होठों पर रखकर दूध को चाटता रहता।

दूध मिलते ही बुधई को भूल गया औेंर वह दूध पीने में मगन हो गया। बुधई यह सब देखकर खुश था। उसने अपनी मां की तरफ देखा वह बच्‍चे को दूध पिलाने में खोई हुई थी। उसे और किसी चीज की सुध नहीं थी। उसने एक बा़र और मां की ओर देखा और झोपड़ी के बाहर चला आया। वह वापस पीपल के पेड़ पर आकर बैठ गया। वह वहीं से टूटी हुई झोपड़ी की एक सुराख से आ रहे उजाले को देखने लगा।

साल भर बीत गया बुधई का भूत रोजाना झोपड़ी में जाता था। बच्‍चे के साथ खेलता था। बच्‍चा उसे देख नहीं पाता था लेकिन उसकी मौजूदगी का आभास हो जाता था। बुधई भी उसको अपना छोटा भाई समझने लगा था। बुधई की मां बच्‍चे को नंदू कहकर बुलाती थी। नंदू अब अपने पैरों पर चलने लगा था। बुधई नंदू के साथ साए की तरह रहता था। नंदू अब बुधई के आसपास होने के आभास को को तो समझता ही था। वह उसके दुवारा हवा के इशारो को भी अच्‍छी तरह समझने लगा था। बुधई उससे क्‍या कहना चाहता वह पल में समझने लगा था।

धीरे धीरे 15 साल बीत गया। नंदू पंद्रह साल का हो गया था। उसकी लंबाई भी बहुत तेजी से बढ़ रही थी। वह इस समय करीब साढ़े पांच फीट का हो गया था। उसका शरीर बहुत गठा हुआ था। इन 15 सालों में उसके और बुधई के बीच संबंध सगे भाइयों से भी ज्‍यादा हो गए थे। नंदू कभी भी गांव के अंदर नहीं गया था। जब गांव के बच्‍चे नदी में नहाने आते और खेलते तो वह उन्‍हें दूर से ही देखता। वह नदी में घंटों तैरता रहता था। वह एक अच्‍छा तैराक बन गया था। वह जब तैरता था तो लगता था मानो कोई म‍छली तैर रही हो। कभी कभी जब बड़े वहां नहीं होते तो बच्‍चे उसे अपने साथ खेलने देते। वह उनके साथ जब खेलता तो मानो उसे दुनिया भर की खुशियां मिल गई हो। कई बार वह बच्‍चों के साथ खेलते हुए गांव के लोगों ने देखा तो वह बच्‍चों का खेल बंद कराकर बच्‍चों को घर लेकर चले जाते। गांव वाले नंदू को हिदायत देकर छोड़ देते। उसकी मां से भी शिकायत करते। बुधई की मां नंदू को डांटती और उनके जाने के बाद उसे प्‍यार से समझाती। ऐसा ही चलता रहा। बुधई भी यह सब देखता और सुनता रहता। वह बुधई पर चौबीस घंटे निगाह रखे रहता। नंदू जब नदी में तैरता तो वह पेड़ पर बैठे बैठे ही देखता रहता। वह मां को देखकर और खुश होता।

उन दिनों गर्मी खत्‍म होते ही बरसात का मौसम आ गया था। बारिश के पानी से नदी का पानी बढ़ने लगा था। जुलाई का अंतिम सप्‍ताह चल रहा था। पिछले दो दिन से बारिश हो रही थी। बुधई पेड़ पर बैठा बारिश को देख रहा था। बादल आसमान में घिरे थे। तभी बहुत तेज आवाज के साथ बिजली चमकने लगी। उसके बाद बहुत तेज बारिश होने लगी। बुधई को कुछ अनहोनी का आभास हुआ। तभी अचानक इतनी तेज की आवाज हुई कि मानो कहीं बादल फट गया हो या जमीन फट गई हो। बिजली इतनी तेज से चमकी थी कि आधी रात को लगा था कि दो तीन सेकेंड के लिए दिन निकल आया हो। आवाज का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पीपल का पेड़ बहुत तेज से हिलने लगा। बुधई ने देखा कि झोपड़ी का एक हिस्‍सा गिर गया है। वह तुरंत पेड़ से उतरकर झोपड़ी के पास गया। उसने देखा कि उसकी मां उठ गई है। नंदू भी झोपड़ी के टूटे हुए हिस्‍से को चारपाई लगा कर पानी रोकने का असफल प्रयास कर रहा है।

बुधई ने देखा कि पानी नदी के किनारे को तोड़ने को पूरा दम लगा रहा है। बारिश भी किनारों को तोड़ने में पानी का पूरा साथ दे रही है। वह नंदू के पास गया। नंदू को आभास हो गया कि बुधई उसके आसपास है। बुधई ने उसे नदी की तरफ देखने को कहा। नंदू ने जब उधर देखा तो वह समझ गया। नदी का पानी किनारे के उपर से उछल रहा था। उसने मां को दिखाया। मां ने देखते ही बोला नंदू देर मत करो यहां से जल्‍दी निकलो। पानी कभी भी गांव में सकता है। मां ने नंदू का हाथ पकड़ा और उसे एक उंचे टीले की ओर लेकर चल पड़ी। बुधई दोनों को जाते हुए देख रहा था। वह रात इतनी भयंकर थी कि बिजलियों का चमकना रूक नहीं रहा था। बादल रह रहकर गरज रहे थे। लग रहा था आसमान आज बहुत गुस्‍से में था। उसने जैसे ठान लिया हो कि जमीन पर वह फिरसे पानी का साम्राज्‍य खड़ा कर देगा। बुधई भी इस प्राकुतिक आपदा से डर रहा था।

मां और नंदू दोनों उंचे टीले पर पहुंच गए थे। दोनों अब सुरक्षित थे। टीले पर एक पुराना एक खंडहर था। दोनों एक कोने में बैठ गए। छत के कोने का हिस्‍सा अभी गिरा नहीं था। लेकिन पानी रिस रिस कर चू रहा था। बुधई ने देखा कि पानी किनारों को लांघ कर गांव में घुस रहा है। उसने देखा कि देखते देखते उसके मां की झोपड़ी पानी में बह गई। सारा सामान पानी के साथ बह रहा है। पानी अब और तेजी से गांव की तरफ बढ़ रहा है।

उधर गांव में भी भागो भागो बाढ़ आ गई बाढ आ गई का शोर मचा हुआ था। सब बचने के लिए इधर उधर सुरक्षित स्‍थानों की तलाश में परिवार को लेकर भाग रहे थे। मुखिया का मकान पक्‍का और उंचाई पर बना था। मकान भी दो मंजिला था। इधर पंडित जी जान बचाने के लिए दोनों बच्‍चों और पत्‍नी के साथ घर से निकल गए थे। उन्‍होंने इस जान बचाने की जददोजहद में अपना तिजोरी वाला बक्‍सा नहीं छोड़ा था। वह एक हाथ से लड़के का हाथ पकड़े  हुए थे और उनके एक हाथ में बक्‍सा था। अब पानी और तेजी से बढ़ने लगा था। पानी घुटनों तक आ गया था। उन्‍होंने बक्‍से को उठाकर कंधे पर रख लिया। सारे गांव में अफरा तफरी मची हुई थी। परिवार के साथ साथ लोग अपने जानवरों को भी बचाने में लगे हुए थे। सब इस विपदा से अपने आपको बचाने में लगे हुए थे। पंडित जी की पत्‍नी बेटी का हाथ पकड़े हुए पीछे पीछे चल रही थी। वह पंडित जी को बच्‍चे का हाथ सावधानी से पकड़े रहने की बीच बीच में हिदायत भी दे रही थी। पानी अब कमर के उपर तक आ गया था। तभी पंडित जी का पैर किसी चीज से टकराया वह लडखड़ाए। बक्‍सा कंधे पर से गिर गया। बच्‍चे को का हाथ छोड़कर बक्‍सा संभालने लगे। इतने में पानी का बहाव और तेज हो गया। उनका बेटा पानी के साथ बहने लगा। वह चिल्‍ला रहा था पिताजी बचाइये बचाइये और बहता जा रहा था। पंडित जी बक्‍सा छोड़कर बच्‍चे की तरफ लपके। लेकिन पानी का बहाव इतना तेज था कि उनका बेटा बहते हुए दूर निकल गया। पं‍डित जी जोर जोर से चिल्‍लाने लगे बचाओ बचाओ कोई मेरे बेटे को। उधर पंडिताइन भी रोने लगी और पंडित जी को चिल्‍ला चिल्‍ला कर कोस रही थी। रात के अंधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। केवल लोगों के चीखने चिल्‍लाने की आवाजें आ रही थीं। गांव के लोग खुद मुसीबत में थे। वह अपने परिवार और बच्‍चों को बचाने में लगे थे। वह पंडित और पंडिताईन की गुहार सुनकर भी निरीह थे। बगल में एक आदमी ने कहा अरे पंडित जी पहले अपने पत्‍नी और बेटी और खुद को बचाइये। पानी देख रहे हैं। गले तक आ गया है। अभी थोड़ी देर में उजाला हो जाएगा। तब उसे खोजा जाएगा। इस संकट की घड़ी में पं‍डित‍ जी को उसकी सलाह उचित लगी। वह पत्‍नी और बेटी को मुखिया के घर की तरफ जाने लगे। पर उनकी पत्‍नी जाने को तैयार नहीं हो रही थी। वह बेटे को बचाने के लिए जाना चाह रही थी। पंडित जी ने उसे बचा के लाने का आश्‍वासन दिया तब वह मानीं। वह मुखिया के घर तक पहुंच गए। वह और उनका परिवार अब सुरक्षित थे। वह चिंतित रुआसे थे। पत्‍नी अभी भी रो रही थी। उनका रो रोकर बुरा हाल हो गया था। वह पंडित जी को कोस रही थीं कि इनको अपने बक्‍से की पड़ी थी। वह कह रही थी कि यदि इन्‍होंने बक्‍से को संभालने के लिए बच्‍चे का हाथ नहीं छोड़ा होता तो मेरा बेटा पानी में नहीं बहता। पता नही मेरा बेटा कहां होगा। हे प्रभु उसकी रक्षा करना। उधर अभी भी पूरे गांव में कोलाहल मचा हुआ था।

मुखिया के घर से लगातार रोने की आवाज सुनाई दे रही थी। रोने की आवाज सुनकर बुधई को रहा नहीं गया। वह तुरंत मुखिया के घर तरफ दौडा। उसने देखा कि रोना पीटना मचा है। पंडिताईन चीख चीख कर रो रही हैं। अरे कोई मेरे बेटे को बचाओ। बुधई समझ गया कि पंडित जी का बेटा पानी में बह गया है। उसने देखा कि पानी तो अब और बढ रहा है। मुखिया के घर के पहली मं‍जिल तक पानी आ गया है। वह पंडित जी के बेटे को खोजने लगा। वह पानी के बहने की दिशा में खोज रहा था। वह जानता था कि वह पानी के बहने की दिशा में ही गया होगा। करीब चार पांच सौ मीटर दूर उसने देखा कि बिजली का खंभा पकड़े कोई रो रोकर बचाने के लिए चीख रहा है। खंभे को लगे 6 साल हो गए थे लेकिन इन खंभो पर अभी तक तार नहीं लगे थे तो बिजली कहां से दौड़ती। बुधई खंभे के पास गया। वह पंडित जी़ का बेटा था। उसका पैर पानी में डूबा हुआ था। उसने पेरों और हाथों से खंभे को लपेटा हुआ था। वह बचने का अथक प्रयास कर रहा था। बुधई तो भूत था वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था। उसने कुछ सोचा फिर नंदू और मां जहां थे वहां पहुंचा। वह जानता था कि नंदू एक अच्‍छा तैराक है। वह घंटों बिना थके तैर सकता है। वह नंदू के पास पहुंचा। उसने देखा कि वहां दो लोग और बचने के उलिए शरण लिए हुए हैं। वह लोग पंडित जी के बेटे के ही बारे में बातें कर रहे थे। बुधई के आने का आभास नंदू को हो गया। नंदू अभी उठ के आता बुधई पानी की ओर चलने लगा। नंदू को समझ में आ गया कि कुछ तो गडबड है। बुधई उसे कुछ दिखाना चाहता है। वह भी उसके पीछे पीछे पानी में कूद पड़ा। इन पंद्रह सालों में दोनों में भाइयों जैसा संबंध बन गया था। बुधई भले ही न बोलता था और न दिखता था पर नंदू उसकी हलचल को अच्‍छी तरह समझता था। नंदू उसके पीछे पीछे तैरने लगा। बुधई उसे उस खंभे के पास ले गया जहां पंडित जी का बेटा था। वहां पहुंचते ही नंदू को खंभे को पकड़े हुए कोई दिखा। नंदू उसके पास गया उसने देखा यह तो पंडित जी का बेटा है। वह समझ गया कि बुधई उसे यहां क्‍यों लाया है। उसने पंडित जी के बेटे का कंधा पकड़ा और तैरने लगा। नंदू को पता नहीं था कि बुधिया उसे कहां ले जा रहा है। वह उसके पीछे पीछे चल रहा था। बुधिया उसके आगे आगे चल रहा था। वह उसे मुखिया के घर की ओर लेकर जा जरा था।

इधर पंडित जी की पत्‍नी रो रोकर बेहोश हो गई थी। सब पं‍डित जी के बच्‍चे को लेकर चिंतित थे। तब तक की सुबह हो गई थी। दिन के उजाले में बाढ़ की वि‍भिषिका अब दिखाई देने लगी थी। गांव के मकान ध्‍वस्‍त हो गए थे। बर्तन कपड़े पानी में उधर उधर तैर रहे थे। तभी किसी ने मुखिया के बाहर से आवाज लगाई अरे वो देखो कौन तैरता हुआ आ रहा है। तभी फिर आवाज आई अरे यह तो नंदू है। मुखिया ने पूछा कौन नंदू। अरे वही जो आज से पंद्रह साल पहले पीपड़ के पेड़ के नीचे मिला था। ये तो किसी को पकड के ला रहा है। यह तो पंडित जी के बेटा है। इतना सुनते ही पंडित जी भागकर छत की रेलिंग तक आए। पंडिताईन को भी होश आ गया। वह भी भाग कर आईं सब रेलिंग के पास आ गए। उन्‍होंने देखा नंदू के एक कंधे को पंडित जी के बेटे ने पकड़ा हुआ है। 

दीवार के पास पहुंचते ही मुखिया ने पंडित जी के बेटे को उपर खींचा। पंडिताइन ने बेटे को गले से लगा लिया और रोने लगी। मुखिया ने फिर उसके बाद नंदू का हाथ पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। लेकिन नंदू वहां रूका नहीं वह तैर कर दूसरी तरफ जा रहा था। पंडिताइन एक हाथ से बेटे को सीने से लगा के रो रही थीं। उनकी आंखें तैरते हुए नंदू पर टिकी हुईं थी। उनकी आंखें एकटक नंदू को देख रही थीं। पंडित जी को बड़ा पछतावा हो रहा था। उनके सामने पंद्रह साल पहले की पीपल के पेड़ की घटना याद आने लगी। वह लज्जित आंखों से नंदू की ओर देख रहे थे। मुखिया जी भी शमिर्दां थे। बुधई भी वहीं खड़ा होकर सब देख रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि नंदू रूका क्‍यों नहीं। वह उसके पीछे पीछे हो लिया। 

Sunday 5 July 2020

ईमानदार सच




अप्रैल का आंतिम सप्‍ताह का शनिवार था। सुबह हुई बारिश से मौसम खुशगवार हो गया था। शाम को भी हल्‍की हल्की बारिश हो रही थी। बिरजू सड़क के बाईं तरफ टैक्‍सी खड़ा करके सवारी का इंतजार.. कर रहा था। उसने घड़ी देखी सात बजने में पांच मिनट बाकी थे। उसने सोचा चलो जब तक सवारी नहीं मिलती है...चाय ही पी लेता हूं । वहीं खड़े खड़े उसने आसपास नजर दौड़ाई...। बाईं तरफ बीस कदम की दूरी पर ठेले पर एक आदमी चाय छान रहा था। वह चाय वाले के पास गया। उसने चाय वाले से अलग से एक स्‍पेशल कड़क चाय बना के लिए कहा। और चाय बनने का इंतजार करने लगा। थोड़ी देर में उसे चाय मिल गई। वह चाय पीने लगा। साथ ही वह टैक्‍सी की तरफ भी देख रहा था। 
अभी उसने आधी चाय ही ...पी थी कि उसने देखा कि एक महिला उसकी टैक्‍सी की तरफ आ रही है। वह करीब 34- 35 साल की रही होगी। वह टैक्‍सी के पास आकर रूक गई। वह आसपास टैक्‍सी के ड्राईवर को खोज.. रही थी। बिरजू ने अभी आधी चाय खत्‍म की थी। महिला को देखते ही झट से आधी चाय फेंक दी। जेब से पांच का सिक्‍का निकाल कर चायवाले को दिया। वह यह सोच कर टैक्‍सी की तरफ लपका... कहीं सवारी चली न जाए। वह टैक्‍सी के पास पहुंच कर महिला से पूछा, मैम!...आपको कहीं जाना है। मैडम ने उसे उपर से नीचे तक देखा फिर सशंकित नजरों से देखते हुए.. पूछा.. यह तुम्‍हारी टैक्‍सी है?
बिरजू ने हाँ, में सिर हिलाते हुए कहा, जी मैम ! महिला ने आश्वस्त होकर कहा, मुझे रेलवे स्‍टेशन जाना है। 
चलिए बैठिए मैम !... कहकर बिरजू ने टैक्‍सी का पिछला दरवाजा खोलकर मैडम को टैक्‍सी में बिठाया।
महिला के बैठने के बाद वह टैक्‍सी को स्‍टार्ट करके रेलवे स्‍टेशन की ओर चल दिया। कुछ दूर चलते ही महिला ने बिरजू से कहा कि जरा जल्‍दी करो मेरी 7: 40 की ट्रेन है। कहीं छूट न जाए?
इतना सुनते ही.... बिरजू ने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ा दी और बोला मैम... आप चिंता ना करे मैं आपको समय से पहले पहुंचा दूंगा...। 
यह सुनते ही महिला थोड़ी निश्चिन्त...हो गई। उसने कंधे पर टंगे पर्स को उतार कर अपने बगल में सीट पर रख दिया। वह आराम से बैठ कर कुछ सोचने लगी। तभी उसका फोन बजने लगा और वह फोन पर बात करने लगी।
बिरजू बारिश के कारण सड़क पर आंख गड़ाकर... ध्‍यान से गाड़ी चला रहा था। 
तभी....उसे पीछे से सुबकने की आवाज आई। उसने सामने के मिरर में देखा। महिला रो रही थी। उसकी आँखों से आंसू निकल रहे थे। वह कह रही थी कि बेटे के एडमिशन फीस जमा करना है। मंडे को लास्‍ट डेट है। आज बहुत कहने पर उसे आफिस से एक महीने की सैलरी एडवांस मिली है। मंडे को वह बच्‍चे की फीस जमा करा देगी। शायद वह अपनी बहन से बात कर रही थी। बात करने के बाद फोन रख दिया। रुमाल निकाल कर उसने अपने आंसुओं को पोछा। वह कोशिश कर रही थी की अपने आपको स्थिर रखे। वह खामोश आंखों से शीशे से बाहर रोड के दूसरी तरफ लगे स्ट्रीट लाइट को देखने लगी। उसकी नजरें... लाइटों को देख रही है लेकिन वह मन ही मन कुछ सोच रही थी। बिरजू ये सब देख रहा था लेकिन... वह कुछ बोला नहीं। 
बिरजू फ़ोन पर महिला के एडमिशन की बात को सुनकर मन ही मन सोचने लगा। उसने भी तो आज ही अपने दोनों बच्‍चों का एडमिशन एक छोटे इंग्लिश मीडियम स्‍कूल में करवाया है। स्कूल भले ही छोटा है लेकिन फ़ीस हम जैसे लोगों के लिए तब भी अधिक है। उसके पास भी उतने पैसे नहीं थे। अपने कई जानने वालों से उधार माँगा। लेकिन सबने मना कर दिया। वो भी कहाँ से देते सबको अपने बच्चों का एडमिशन कराना है। थक हारकर उसने फीस के लिए पांच प्रतिशत ब्‍याज पर पैसे एक सूदखोर से लिया। तब जाकर उसने फ़ीस जमा किया..।
इस मंहगाई के जमाने में घर का खर्चा चलाना कितना मुश्किल है। वह यही सब सोच रहा था कि स्‍टेशन आ गया। उसने गेट के पहले सड़क के किनारे टैक्‍सी रोककर बोला मैडम!.. स्‍टेशन आ गया। महिला फोन पर फिर किसी से बात कर रही थी। वह फोन पर बात करते करते उतरी। उसने बिरजू को किराया दिया और स्‍टेशन के अंदर चली गई। 
मैडम के जाने के बाद बिरजू ने देखा कि एक पुलिस वाला आ रहा है। वह समझ गया कि पुलिस वाला गाड़ी हटाने के लिए बोलेगा। वह हटाने के लिए बोले इससे पहले उसने गाड़ी.... स्‍टार्ट करके दूसरे गेट के सामने सड़क के किनारे लगा दिया। 
वहीं वह गाड़ी से उतरकर दूसरी सवारी का इंतजार करने लगा। इस दौरान वह कपड़ा निकाल कर शीशा साफ करने लगा। बारिश  के कारण शीशा धुंधला हो गया था। वह शीशा साफ कर रहा था कि उसने देखा कि पिछली सीट पर महिला का पर्स छूट गया है। उसने पर्स उठाया। पर्स खोला उसमें सौ-सौ के नोटों की दो गड्डियां यानी बीस हजार रुपये थे।
उसने घड़ी देखी 7 : 45 हो रहा था। उसने सोचा.... ट्रेन तो अब तक चली गई होगी। पता नहीं उसने क्या सोचा ? बिना देरी किये उसने अपनी गाड़ी का दरवाजा लॉक किया और प्‍लेटफार्म की तरफ भागा। उसने सोचा हो सकता है ट्रेन पांच दस मिनट लेट हो। वह प्‍लेटफार्म तक पहुंचा। लेकिन ट्रेन जा चुकी थी। उसने दिमाग में आया....हो सकता हो उसे पर्स के बारे में याद आ गया हो। वह महिला मुझे खोज रही हो। उसने प्‍लेटफार्म पर खोजा पर वह नहीं मिली। फिर उसे खोजते हुए वापस गेट तक आया। लेकिन उसे वह महिला कहीं नहीं दिखी। उसने सोचा...पर्स में हो सकता है कोई मोबाइल नंबर या....उसका पता लिखा कोई कार्ड हो। पर्स में रूपये के अलावा एक सफेद मोटे सीट का प्‍लास्टिक कार्ड था। उसपर एक कंपनी का नाम और नीचे एक कोड के रूप में नंबर लिखा था। बाकी मेकअप का समान जो लगभग सभी महिलाओं के पर्स में होता है, वह था। बिरजू कार्ड को हाथ में लेकर उलट पलट कर देखने लगा। उस पर और कुछ नहीं लिखा था। पर्स में और कोई कागज़ नहीं था। वह सोचने लगा अब वह क्या करे ? वह पर्स लेकर आधे घंटे तक गेट के पास खड़ा रहा। सोचा शायद महिला उसे खोजते हुए आये। लेकिन जब कोई नहीं आया तो वह अपनी गाड़ी के पास आया। ....कैसे ? यह पर्स महिला के पास पहुँच जाए उसके दिमाग में यही चल रहा था। 
उसने फ़ोन निकाला। 
उसने अपने एक दोस्‍त प्रवीन को फोन किया जो एक कम्‍यूनिकेशन कंपनी में काम करता था। उसने प्रवीन को फोन पर सारी बात बताई। तो प्रवीन ने कहा, अरे यार!... तेरी तो आज लाटरी निकल आई। इतना क्यों परेशान है। पैसे अपने पास रख ले। किसी को क्या पता चलेगा। लेकिन बिरजू भी एक आम आदमी ही था। वह इस रूपये का महत्‍व समझता था। उसे महिला की पीड़ा याद आ रही थी। उसने प्रवीन से कहा कहो तो... पर्स को थाने में दे दूं। हो सकता है महिला खोजते खोजते थाने तक पहुंचे और उसे पर्स मिल जाए। 
प्रवीन ने कहा थाने में तू रहने दे......पर्स लेकर अभी घर जा। सुबह पर्स लेकर घर आना फिर देखते हैं क्‍या करना है। फोन काटने के बाद बिरजू, थोड़ी देर वहीं रुका रहा। फिर उसने फैसला किया....कि वह घर चलता है।
अगली सुबह 10 बजे बिरजू पर्स लेकर प्रवीन के घर पर पहुंचा। बिरजू ने पर्स में से कार्ड निकाल कर प्रवीन को देते हुए कहा इस कार्ड पर केवल कंपनी का नाम और कोड की तरह एक नंबर लिखा है। प्रवीन ने कार्ड देखा!
कार्ड पर कंपनी का नाम और नीचे नंबर लिखा था। उसने कार्ड देखकर बोला ये कैसा... कार्ड है ? न नाम है न पता और न तो कोई फ़ोटो लगी है ? ...इस कार्ड से उस महिला को कैसे...खोजेंगे ?
तभी उसके दिमाग में आया कि गूगल में कंपनी का नाम डालकर देखता हूं। शायद !... कुछ पता चल जाय। उसने कंप्‍यूटर आन किया। गूगल खोलकर उसने सर्च बॉक्स में कंपनी का नाम डाला। पेज खुलने पर तीसरे नंबर पर कंपनी की वेबसाइट दिखी। उसपर क्लिक करते ही कंपनी का पेज खुल गया। पेज के एक किनारे पर कंपनी का एड्रेस लिखा था और नीचे दो फोन नंबर थे।
प्रवीन ने अपने फोन से पहले लिखे नंबर पर काल किया। रिंग पूरी गई... लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। उसने दूसरे नंबर पर काल किया। दो बार रिंग बजने के बाद किसी ने फोन उठाया। प्रवीन ने कार्ड पर लिखे कंपनी का नाम लिया और पूछा क्या आप इस कंपनी से बोल रहे हैं। उसने अपने आपको कंपनी का मैनेजर बताया। उसके कंफर्म करते ही प्रवीन ने उसे कार्ड के बारे में बताया। उधर से मैनेजर ने कहा हाँ, हमारे यहां के इंप्‍लाई का कार्ड ऐसा ही होता है। उसने कार्ड का नंबर पूछा। फिर कन्‍फर्म किया कि यह हमारे यहां की एक महिला सुपरवाईजर का कार्ड है। 
प्रवीन ने उसे पर्स के बारे में सारी बात बताई। उसने कहा ठीक है। मैं उनको फोन कर देता हूं। आपने जिस नंबर से फोन किया है वह नंबर उन्‍हें दे दूंगा। वह आपसे कांटेक्‍ट कर लेंगी। यदि नहीं कांटेक्‍ट हो पाता है तो आप दुबारा फोन करिएगा....मैं किसी आदमी को भेज कर पर्स कलेक्‍ट कर लूंगा। प्रवीन ने कहा ठीक है सर।
बिरजू प्रवीन की सारी बातें सुन रहा था। प्रवीन ने फिर भी उसे पूरी बात बताई और कहा फोन का इंतजार करते हैं। 
करीब एक घंटे बाद उस महिला का फोन आया। वह बहुत खुश थी। उसने प्रवीन के घर का एड्रेस नोट किया और बोली अभी 12 : 30 की ट्रेन पकड़ के दो बजे के करीब आउंगी। प्रवीन ने बिरजू से बताया कि वह करीब दो बजे आएगी। बिरजू बोला ठीक है....।
दो बजे के करीब महिला का फोन आया कि मैं ट्रेन से आ गई हूं। दस मिनट में पहुंच जाउंगी। प्रवीन ने बिरजू को फोन पर बताया कि महिला दस मिनट में आ रही है। बिरजू ने कहा ठीक है मैं आ रहा हूं। बिरजू का घर प्रवीन के घर से करीब 1 किमी दूर था। वह पर्स लेकर वहां पहुंच गया। महिला भी थोड़ी देर बाद पहुंची। वह बिरजू को पहचान गई। उसकी आंखों में आंसू थे। महिला कमरे में आकर बैठ गई। बिरजू ने उसका पर्स उसको पकड़ाया और बोला देख लीजिए आपका सारा पैसा और सामान सुरक्षित हैं ना ? महिला ने पर्स हाथ में लेकर उसे खोल कर चेक किया। सब ठीक ठाक देख कर उसने कहा सब कुछ है। उसने  धन्‍यवाद किया। वह शायद जल्‍दी में थी उसने कहा कि उसे वापस जाना है चार बजे की ट्रेन है। प्रवीन ने कहा अभी तो टाइम है। चाय पीकर चले जाइएगा। महिला ने चाय के लिए मना किया। लेकिन प्रवीन के बार बार आग्रह करने पर वह चाय पीने के लिए रूक गई। अभी चाय आने में देरी थी। 
प्रवीन ने उसके परिवार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके पति की दो साल पहले एक हादसे में मत्‍यु हो गई थी। उसके परिवार में एक बूढ़ी सास है। मेरा एक ग्‍यारह साल का बेटा है। वह पांचवी कक्षा में पढ़ता है। घर की सारी जिम्‍मेदारी मुझे ही उठानी... पड़ती है। 
उसने बच्‍च्‍ो के फीस के लिए अपने रिश्‍तेदारों से उधार मांगा था। लेकिन सबने न होने की बात कहकर मना कर दिया। मैं काफी दिनों से परेशान... थी।
बहुत ही मिन्नत करने के बाद एक महीने की सैलरी एडवांस में मिली थी। कल शाम को मैं पता नहीं कैसे अपना पर्स टैक्सी में भूल गई। जब मैं ट्रेन में बैठ गई तब मुझे पर्स का याद आया। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ ? मैं रात भर सोई नहीं। सुबह जब मैनेजर का फोन आया तब मेरी जान में जान आई। आप लोगों का बहुत उपकार रहेगा मुझ पर.... इतना कहते ही उसके आंसू फिर गिरने लगे। तभी प्रवीन की पत्‍नी चाय लेकर आ गई। उसने कहा, रोइये मत दीदी! अभी भी बिरजू भाईसाहब! जैसे लोग इस दुनिया में है। जिससे मानवता बची है। अब इन्‍हीं को देख लीजिए इन्‍होंने भी अपने दोनों बच्‍चों का एडमिशन कराने के लिए ब्‍याज पर पैसा उठाया है। अगर चाहते तो यह आपका पैसा रख लेते। अपना उधार चुका देते। लेकिन उन्‍होंने ऐसा नहीं किया। तभी बिरजू बोल पड़ा अरे नहीं भाभी!...अब मेरी इतनी तारीफ मत करो। मैंने भी अपने बच्‍चों का एडमिशन कैसे कराया है। मैं अच्‍छी तरह जानता हूं। मैम के दुख को मैं जनता हूँ। बिरजू की बात सुनकर फिर  महिला के आंसू मिकलने लगे। प्रवीन की पत्‍नी ने उसे चुप कराया और बिस्किट का प्‍लेट उसकी तरफ बढ़ाया। महिला ने बहुत कहने पर एक बिस्किट लिया। उसने रूमाल निकाल कर अपने आंसूओं को पोछा। वह बिरजू की तरफ कृतज्ञता के भाव से देखने लगी। फिर...उसने अपना पर्स उठाया और सबको धन्यवाद कहा और वह.... वहां से चली गई।

Saturday 27 June 2020

सफ़र : नब्बे रूपये (तीसरा और अंतिम भाग)

सफ़र : नब्बे रुपये 
तीसरा और अंतिम भाग


लखनऊ से ट्रेन निकल पड़ी थी। ट्रेन की एसी 3 बोगी में लेटे लेटे अक्षय होली के चार दिन पहले की बात सोच रहा था। उसने कैसे छुट्टी ली थी। वह चार दिन पहले की बात याद करने लगा।...
वह घर पर ही छुट्टी का आप्लीकेशन लिख कर ऑफिस के लिए दोस्‍त के साथ निकला था। दोनों ऑटो के लिए चौराहे पर इंतजार कर रहे थे। अक्षय के अंदर होली पर घर जाने को लेकर उथल पुथल मची हुई थी। पिछली होली पर छुट्टी नहीं मिलने के कारण वह जा नहीं पाया था। उसने अपने भीतर चल रहे सवालों से थोड़ी सांत्वना पाने के लिए बगल में खड़े आदेश से पूछा ! 
आदेश ! छुटटी मिल जाएगी की नहीं ? 
मैंने आप्‍लीकेशन लिख लिया है। आज बास के पास से बात करूँगा। 
आदेश ने दिलासा देते हुए कहा, मिल जायेगी यार ! ज्यादा चिंता मत करो।
अक्षय को उसकी बात से थोड़ी सांत्वना मिली। अभी अक्षय कुछ और बोलने जा रहा था कि एक ऑटो आ गया। दोनों उसमें बैठ गए। 
बैठने के बाद अक्षय बोला छुट्टी मिल जाए तो टिकट करूँगा। आदेश ने फिर.. अक्षय को निश्चिन्त करने के लिए कहा, यार ! इस बार होली की छुटटी पर ज्‍यादा लोग नहीं जा रहे हैं। उम्मीद है बॉस तुम्हे छुट्टी दे देंगे।
अक्षय उसकी बात सुनकर बोला भगवान करे!... मिल जाए। 
ऑटो वाले ने 15 से 20 मिनट में ऑफिस पहुँचा दिया। ऑफिस पहुंचकर दोनों अपने अपने कंप्‍यूटर के सामने बैठ गए। कंप्‍यूटर खोलकर अक्षय ने बगल में बैठे साथी से पूछा बॉस आ गए हैं कि नहीं। उसने बताया कि बॉस अभी नहीं आए आए हैं थोड़ा लेट में आएंगे। अक्षय यह सुनने के बाद अपने काम में लग गया। लेकिन उसके मन में छुट्टी को ही लेकर प्रश्न घुमड़ रहे थे। मन में शंका हो रही थी वह सोच रहा था कि बॉस से किस तरह बोलू कि छुट्टी मिल जाए। वह मन ही मन निश्‍चय भी कर रहा था कि नहीं मिली तो भी घर तो जरूर जायेगा। फिर सोचता बास तो विनम्र हदय हैं और मेरे काम से खुश भी रहते हैं। मुझे छुट्टी मिल जानी चाहिए। 
वह यही सब सोच रहा था कि एक साथी ने कहा बास आ गए हैं सबको मीटिंग पर बुलाया है। यह सुनते ही अक्षय ने निश्‍चय किया मीटिंग के बाद जाकर इस बारे में बात करूंगा।
अक्षय बॉस से बात करने को इतना व्‍याकुल था... कि वह बास के केबिन के दरवाजे की तरफ सिर उठाकर हर पांच मिनट में देख लेता था। आखिरकर उसका इंतजार खत्‍म हुआ। आधे घंटे बाद मीटिंग खत्‍म हो गई। सब लोग बास के केबिन से बाहर आ रहे थे। 
....पांच मिनट बाद अक्षय आप्‍लीकेशन लेकर बॉस के के‍बिन का दरवाजे पर पहुंचा। उसने दरवाजे को थोड़ा खोलकर सकुचाते हुए पूछा सर ! क्‍या मैं अन्‍दर आ सकता हूं ?
बॉस ने अक्षय की तरफ देखते हुए कहा, अरे.. अक्षय ! आओ ...आओ। अक्षय कुर्सी खींचकर बास के सामने मेज पर बैठ गया। उस समय बॉस दा‍हिने तरफ कम्‍प्‍यूटर स्‍क्रीन पर कुछ देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वह मेरी तरफ मुड़े और बोले बताओ क्‍या बात है अक्षय ! ?
अक्षय ने बॉस को अप्‍लीकेशन देकर सकुचाते हुए कहा, सर ! होली पर घर जाना है छुटटी चाहिए थी। पिछली बार छुट्टी नहीं मिलने के कारण नहीं जा पाया था। 
बॉस ने पूछा.. कितने दिन की छुट्टी चाहिए ? अक्षय ने निवेदन करते हुए कहा, सर ! पांच दिन की...। बॉस ने बीच में रोकते हुए कहा, अक्षय ! तुम जानते हो.. कि त्‍योहार में कई लोग छुट्टी पर जा  रहे हैं। एक दो दिन की बात होती तो मैं मैनेज कर लेता। 
अक्षय को तो होली पर घर जाना था। उसने फिर निवेदन किया ..प्‍लीज....सर ! देख लीजिए। मुझे तीन दिन की छुट्टी दे दीजिए। बॉस ने कुछ सोचने के बाद कहा, ठीक है... मैं तीन दिन की छुट्टी दे रहा हू। साथ में हिदायत देते हुए कहा, लेकिन हाँ...समय पर आ जाना। फिर बॉस ने अक्षय के आप्‍लीकेशन पर कुछ लिखा और नीचे साइन कर दिया। आप्‍लीकेशन अक्षय को देते हुए बॉस ने विनम्रता से पूछा होली तो चार दिन बाद है। रिजर्वेशन करा लिए हो। अक्षय ने से कहा, सर छुट्टी कन्‍फर्म नहीं थी इसलिए अभी नहीं कराया था। मैं टिकट करा लूंगा। नहीं होगा तो तत्काल में करा लूंगा।
अक्षय खुशी...खुशी केबिन के बाहर निकला और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। तभी आदेश उसके पास आया। उसने अक्षय को बॉस के केबिन से निकलते हुए देख लिया था। उसने अक्षय के मुसकुराते हुए चेहरे को देखकर समझ गया कि उसे छुटटी मिल गई है। उसने अक्षय से पूछा? छुट्टी मिल गई। अक्षय ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा मिल गई। केवल तीन दिन की। बस तीन दिन आदेश ने हैरानी जताते हुए कहा ! हाँ, केवल तीन दिन । आदेश ने कहा, यार ! दो दिन तो आने और जाने में लग जाएंगे। अक्षय ने लंबी सांस लेते हुए कहा, कोई बात नहीं इस बार होली अपनों के साथ तो मना लूंगा। तभी आदेश को किसी ने आवाज़ लगाई। उसने आ रहा हूँ कहकर चला गया। 
इसके बाद अक्षय अपने कम में लग गया । जब काफी कम निपट गया तो उसने अपने एक दोस्‍त को फोन किया जो रेलवे में था। उसने उससे रिजर्वेशन कराने के लिए कहा। उसने फोन पर ही अक्षय को आश्‍वासन दिया कि तत्‍काल में वह रिजर्वेशन करा देगा। 
अक्षय को जब तसल्‍ली हो गई तो वह कंप्‍यूटर पर अपने काम में तल्‍लीन हो गया। 
दो दिन बाद उसके दोस्‍त का फोन आया कि जाने का रिजर्वेशन हो गया है लेकिन वापसी का अभी नहीं हो पाया है। अगले दिन रात में उसकी ट्रेन थी। यही सब सोचते सोचते अक्षय को नींद आ गयी। ट्रेन लुधियाना की तरफ धड़ धड़ करती चली जा रही थी।
सुबह के आठ बज गए थे तभी चाय..चाय की आवाज उसके कानों में पड़ी। वह मुँह से चादर हटा कर देखा। दिन निकल आया था। उसने घड़ी देखी। आठ बज रहे थे। उसने चाय वाले से एक चाय देने को बोला। फिर, उसने चाय वाले से पूछा कौन सा स्टेशन है। उसने बताया अम्बाला !....
अक्षय उठ के बैठ गया और चाय पीने लगा। वह निश्चिंत था कि वह समय पर ऑफिस पहुँच जायेगा। वह नब्बे रुपये के बारे में सोच रहा था। उसने दस रुपये का फटा नोट जेब से निकाला। थोड़ी देर देखता रहा। फिर उसने नोट को अपने पर्स में सहेज़ कर रख लिया।

Friday 19 June 2020

शायद, कोई..शिव आये



भ्रम के फैले मकड़जाल से
शायद, कोई.. सच निकले !
परिस्थिति बन गयी है ऐसी
शायद, कोई..सच बोले !

अदृश्य अंधेरों के भय से
शायद, कोई.. सच चमके!
झूठ के इस काले मेघों से
शायद, कोई.. सच बरसे !

टूट रहा है शिखर हिम का
शायद, कोई.. गंगा निकले !
उफन रहा समुद्र ह्रदय का
शायद, कोई..मोती निकले !

नेत्रों से बह रहे अश्रुओं की
शायद, कोई.. पीड़ा समझे !
दुःख के हलाहल को पीने
शायद, कोई.. शिव आये !...

शायद, कोई.. शिव आये !

--राहुल

सफ़र : नब्बे रुपये (दूसरा भाग)

सफ़र : नब्बे रुपये



ट्रेन अपनी टॉप स्‍पीड में पटरियों पर धड़ धड़... करते हुए दौड रही थी। खिडकी से हवा उतनी तेजी से अन्‍दर आ रही थी। अक्षय इसका आनन्‍द ले रहा था। थोड़ी देर बैठने के बाद उसने जूता उतारकर सीट के नीचे रख दिया। मोजे और जूते से स्‍वतंत्रता मिलने के बाद उसके पंजों को बहुत सुकून.... मिल रहा था। अक्षय ने पैर की अंगुलियों को बैठे बैठे ही कई बार ऊपर नीचे किया। जिससे पैरों को भी आराम मिला। वह पैरों को ऊपर करके बैठ गया ताकि खिड़की से आ रही हवा पैरों को सीधे लगे। अभी कुछ ही समय हुआ था कि सामने की सीट पर बैठे आदमी की आवाज सुनाई दी। वह पूछ रहा था कि भाईसाहब!! आपकी टिकट टीटी ने बनाई है की नहीं ? उसका प्रश्‍न सुनकर अक्षय थोड़ा सशंकित हुआ।
....उसने उसकी तरफ देखा वह जल्‍दी जल्‍दी.. अपना खाना खा रहा था। अक्षय ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, नहीं भाईसाहब!! टिकट तो नहीं बनाई। लेकिन हाँ ! उनके पास जो लिस्ट थी उसमें वह कुछ लिख रहे थे। 
उस आदमी ने संदेह जताते हुए कहा तब तो टीटी ने सारा पैसा खुद रख लिया होगा। उसकी इस बात पर अक्षय थोड़ा वि‍चलित हुआ।  अक्षय उस आदमी से कुछ कहना चाहता था। लेकिन उसने देखा कि वह आदमी खाना खा चुका था। वह अब सोने की तैयारी कर रहा था। उसके सामने बैठा आदमी पहले ही सो गया था। अक्षय फिर कुछ सोच कर चुप.. रहा।अक्षय ने घड़ी देखी साढ़े नौ बज चुके थे। उसने खाना खाकर सोने का फैसला किया। वह बैग से खाना निकाल कर खाने लगा। खाना खाते खाते ...उसके दिमाग में आदमी की बात घूम रही थी। वह सोच....रहा था कि टीटी ने अगर रूपये अपने जेब में रख लिए होंगे तो इसमें उसका कौन सा घाटा है। उसे तो जनरल से कम पैसे में सोने के लिए बर्थ मिल गई  है। फिर भी इस आदमी का टीटी पर शक करना भी सही है। टिकट के नाम पर टीटी कमाते भी बहुत हैं। आम आदमी ज्‍यादातर ट्रेनों में ही सफर करता है। वह बखूबी जानता है कि ट्रेन में टिकट के नाम पर कितना भ्रष्‍टाचार है। ये धारणा हर आम आदमी के अंदर बन गई है। सही भी है मेरे अंदर भी तो यही धारणा बनी हुई थी। आज की घटना ने मेरी धारणा को थोड़ा कम किया है। यही सब सोचते...सोचते खाना कब खत्‍म हो गया अक्षय को पता ही नहीं चला। 
..अक्षय हाथ मुँह धोकर सात नंबर सीट जो कि मिडिल बर्थ होती है उस पर लेट गया। रात में 1 बजे ट्रेन लखनऊ स्‍टेशन पर पहुंची। प्‍लेटफार्म पर और ट्रेनों को लेकर एनाउसमेंट लगातार हो रही थी। आवाज सुनकर अधकचरी नींद में सोया अक्षय उठ गया। उसने लेटे लेटे ही खिड़की से बाहर मुआयना किया। उसने बाहर जा रहे आदमी से पूछा कौन सा स्‍टेशन है। उसने बताया कि 'लखनऊ' है। वह तुरंत बर्थ से उतरा दोनों कंधों पर बैग टांग कर वह ट्रेन से बाहर आया। 
वह सीढियाँ चढ़ते हुए मेन प्‍लेटफार्म पर आ गया। उसने प्रवेश द्वार की तरफ लगे एटीएम की ओर देखा। एक आदमी एटीएम के अंदर था और एक आदमी बाहर। वह तुरंत वहां पहुंचा। उसने बैग को फर्श पर रखा और देखा कि जो आदमी अंदर था। वह एटीएम से निकले रुपये गिन रहा था। अक्षय के जान में जान आ गई। उसके चेहरे पर खुशी के भाव थे।  तभी दूसरा आदमी एटीएम के अंदर से निकला। अक्षय झट से एटीएम के अंदर गया। उसने कार्ड अंदर डाला। रूपये निकाले। बाहर आया। उसे प्‍यास.. लगी थी। उसने पहले एक बोतल पानी खरीदा। पानी पीने के बाद वह थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा....l वह मन ही मन कुछ सोच रहा था। उसने बैग उठाया।
ट्रेन सवा दो बजे थी। उसने घड़ी देखी डेढ़ बज रहे थे। कुछ देर ठहरने के बाद वह पास के टिकट काउंटर पर गया। काउंटर पर भीड़ नहीं थी। उसने सोचा जनरल का टिकट ले लेता हूं। फिर आगे ट्रेन में खाली सीट के बारे में पता करता हूं। जनरल का टिकट लेने के बाद वह खोजते.. खोजते उस कमरे तक पहुंचा जहां चार्ट फाइनल होती है। खैर चार्ट तो पहले फाइनल हो जाती है। लेकिन अक्षय को उम्‍मीद थी हो सकता है एकआध बर्थ खाली मिल जाए। उसने वहां बैठे एक स्‍टाफ से पूछा। स्‍टाफ ने सामने बैठे रेलवे के दूसरे स्‍टाफ की ओर इशारा करके कहा आप उनसे बात कर ली‍जिए। अक्षय उनके पास गया। पूछने पर चार्ट देखकर उन्‍होंने बताया कि एसी 3 में सीट खाली है। अक्षय ने टिकट बनाने की बात की। तभी पहला वाला स्‍टाफ जो उनकी बातें सुन रहा था वह भी वहां आ गया। दोनों आपस में सीट को लेकर बात कर रहे थे। तभी पहला वाला स्‍टाफ बोला इस ट्रेन में तो शर्मा जी की डयूटी है। दूसरे स्‍टाफ ने कहा, हाँ!...वह तो बहुत सज्‍जन आदमी है। ऐसा करिये आप! परेशान मत होइए। आप ट्रेन में ही उनसे मिल लीजिएगा। वह वहीं आपका टिकट बना देंगे। 
अक्षय ने बहुत निवेदन किया कि यहीं से बना देते तो अच्‍छा होता। कोई तकनीकी दिक्‍कत बता कर उन्‍होंन निश्‍चिंत किया कि आप ट्रेन में शर्मा जी से मिल लीजियेगा। उनके बार बार कहने पर अक्षय ने कहा, ठीक है! उसने दोनों स्‍टाफ का नाम पूछा। पहले वाले स्‍टाफ ने नाम बताने के साथ अपना मोबाइल नंबर दिया और कहा अगर दिक्‍कत होगी तो मुझसे बात करा दीजियेगा। अक्षय मोबाइल नंबर के सही होने को लेकर आश्‍वस्‍त होना चाहता था। उसने मोबाइल में नंबर सेव करके तुरंत काल कर चेक किया कि नंबर सही है कि नहीं? बगल में खड़े स्‍टाफ के मोबाइल का रिंग बज रहा था। अक्षय ने उससे कहा कि मैंने ही काल‍ किया है..देख रहा था कि नंबर सही सेव किया है कि नहीं ? और उसने काल काट दिया। बात करते करते अक्षय ने घड़ी देखी। रात के एक पचास हो रहे थे। तभी पहला वाला स्‍टाफ बोला ट्रेन राइट टाइम है। आप प्‍लेटफार्म पर जाइए। 
दोनों स्‍टाफ को धन्‍यवाद करके अक्षय प्‍लेटफार्म की ओर चल दिया। सीढ़ियों से होकर वह प्लेटफॉर्म पर पहुँचा जिस पर ट्रेन आने वाली थी। उसने प्‍लेटफार्म  पर लगी घड़ी को देखा। अभी ट्रेन आने में दस मिनट शेष था। वह सीढ़ियों के पास एक बेंच पर बैठ गया। पानी की बोतल निकाल कर पानी पिया। उसने आगे के सफर के लिए एक और पानी का बोतल खरीदकर बैग में रख लिया। आगे के सफर को लेकर वह थोड़ा चिंतित था। तभी हार्न ने प्‍लेटफार्म पर ट्रेन के आने का आगाज किया। अक्षय ने उठ कर देखा कि ट्रेन दूसरे छोर से प्‍लेटफार्म से चपककर आ रही है। 
उसने दोनों बैग कंधे पर लाद लिए। ट्रेन धीरे....धीरे प्‍लेटफार्म पर रूक रही थी। अक्षय  की आंखे एसी 3 की बोगी को खोज रही थी।  होली का दिन होने के कारण प्‍लेटफार्म पर आपाधापी नहीं थी। वह आराम से चलकर बोगी तक पहुंचा। बोगी के बाहर ही माथे पर टीका लगाए एक टीटी साहब दिखाई दिए। उनके सामने एक यात्री खड़ा था। टीटी साहब हाथ में लिए लिस्‍ट को देख रहे थे। अक्षय ने कन्‍फर्म करने के लिए कि टीटी साहब शर्मा जी हैं कि नहीं। उनसे पूछा आप ! शर्मा जी हैं। उन्‍होंने जी हाँ ! ..... बताइए ! कहकर सर हिलाया। अक्षय ने एक सीट देने का उनसे निवेदन किया। साथ ही दोनों स्‍टाफ का नाम बताकर अपने निवेदन को और पुख्‍ता करने का प्रयास किया। शर्मा जी पर अक्षय के निवेदन का प्रयास सफल रहा। उन्‍होंने तुरंत कहा, आप! डिब्‍बे में अंदर जाकर बैठिए..... मैं अभी आ रहा हूं। अक्षय आश्‍वस्‍त हो गया। वह डिब्‍बे में जाकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद ट्रेन चलने लगी। शर्मा जी भी आ गए। अक्षय ने उन्‍हें जनरल का टिकट दिया। उन्‍होंने एसी 3 के किराए में से जनरल के किराए को घटाकर मेरा टिकट बना दिया। उन्‍होंने कहा आप जाइए बारह नंबर की बर्थ पर लेट जाइए। एसी 3 के टिकट के हिसाब से करीब सवा तीन सौ का अंतर आया था। अक्षय ने उन्‍हें पांच सौ रूपये दिए। उन्‍होंने खुशी खुशी.. उसे रख लिया। अक्षय ने उन्हें धन्‍यवाद किया और अपनी सीट पर पहुंचा। उसने देखा कि सीट पर एक तकिया, दो चादर, एक कंबल और एक तौलिया पहले से रखा हुआ है। उसने बैग सीट के नीचे रखकर चादर बिछाई। कंबल और तौलिए के ऊपर तकिया रखकर सिराहना थोड़ा उंचा किया और लेट गया। लेटे...लेटे वह आश्‍वस्‍त दिख रहा था कि वह सही समय पर कल ऑफिस पहुंच जाएगा। वह सोचने लगा की उसने होली के पहले कैसे बॉस से छुट्टी ली थी। होली के चार दिन पहले उसने आप्लीकेशन लिखा था। तभी??... ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। किसी ने लाईट जलाई। अक्षय ने देखा की एक संभ्रांत बुजुर्ग महिला बैग लिए खड़ी थी। उसने अक्षय की तरफ देखा तो वह थोड़ी सहम गयी। अक्षय के चेहरे पर अभी भी रंग लगा था। अक्षय भी नींद में था। लाईट सीधे आँखों पर पड़ रही थी। वह करवट हो गया। महिला भी समझ गई की होली का रंग है। वह बैग सीट के नीचे रखकर चादर बिछाने लगी। 
अक्षय फिर लेटे लेटे होली के चार दिन पहले के बारे में सोचने लगा।
(इसके आगे की कहानी अगले भाग में।)



Friday 12 June 2020

सफर : नब्‍बे रूपये



नब्‍बे रूपये


होली का दिन था। शाम के पांच बज रहे थे। माँ ने अक्षय को आवाज लगाई। बेटा! उठ जाओ। तुम्‍हारी सात बजे ट्रेन हैं ना। अक्षय आँख मीजते हुए उठा। उसकी आँख में चुभन हो रही थी। उसने शीशे में देखा उसकी आँखें लाल थी। चेहरे पर अभी भी लाल और हरे रंग के निशान थे। होली खेलने के बाद नहाते समय मुंह को कई बार साबुन से धोया था। बेसन दूध का उबटन भी रंग उतारने के लिए लगाया था। लेकिन रंग उतरा नहीं था। शायद रंग आंखों मे भी चला गया था। इसलिए आंखों में चुभन हो रही है।शीशे के सामने अक्षय यही सब सोच रहा था। तभी माँ की दुबारा आवाज आई अक्षय! उठे कि नहीं।  अक्षय ने कहा हां, माँ उठ गया हूं । उसने हाथ मुंह धोया। फिर अपने कपडे बैग में रखकर तैयार होने लगा। मां ने पूछा कितने बजे ट्रेन है। अक्षय ने जवाब में कहा माँ सात बजे देहरादून एक्‍सप्रेस से जाना है। माँ को थोड़ा संशय हुआ। उसने झिझकते हुए पूछा यह ट्रेन लुधियाना जाएगी ? अक्षय ने माँ के संदेह को दूर करते हुए कहा माँ! इस ट्रेन से लखनऊ तक जाउंगा। वहां से रात में लुधियाना के लिए दूसरी ट्रेन है। मैं 6 बजे घर से निकलूंगा क्‍योंकि मुझे टिकट भी लेना है। माँ ने जल्‍दी से चाय बनाई। होली का दिन था तो कई तरह का पकवान भी बना था। माँ ने उसमे से अक्षय को जो पसंद था खाने को दिया और रात में खाने के लिए कुछ पैक कर दिया। ठीक 6 बजे अक्षय माँ और पिताजी का चरण स्‍पर्श कर पैदल ही घर से ऑटो पकड़ने के लिए निकल पड़ा। उसके एक कंधे पर कपड़ों का और एक कंधे पर लैपटाप का बैग‍ टंगा था। घर से पचास कदम की दूरी पर तिराहा था वहां से रेलवे स्‍टेशन जाने के लिए ऑटो मिलती थी। वह तेज कदमों से चल रहा था क्‍योंकि उसे एटीएम से रुपये भी निकालते थे। वह तिराहे पर पहुंचते ही पहले एटीएम पर गया। एटीएम खुला था पर मानीटर पर उसके क्‍लोज्‍ड लिखा था । उसने सड़क के उस पार वाले एटीएम की ओर देखा उसका भी शटर गिरा हुआ था। वह जेब टटोलने लगा तो उसे बीस रुपये मिले। उसने लैपटाप के आगे की पाकेट में हाथ डाल कर टटोला कुछ नोट और सिक्‍के उसमें थे। उसने ऑटो के लिए इधर उधर नजर दौडाई। सडक पर कहीं ऑटो नजर नहीं आ रही थी। तभी उसे एक खाली रिक्‍शा वाला आता दिखा। उसने उसे रेलवे स्‍टेशन चलने के लिए कहा। वह झट से तैयार हो गया। कपडे वाले बैग को जहां पांव रखते है वहां रखकर अक्षय सीट पर बैठ गया। रिक्‍शा वाला उसे स्‍टेशन की तरफ लेकर चल पडा। अक्षय, रास्‍ते के सारे एटीएम का खाका मन ही मन बना रहा था। उसे रास्‍ते का अच्‍छी तरह से ज्ञान था। उसे उम्‍मीद थी कि किसी न किसी एटीएम पर पैसे मिल जाएंगे। वह लैपटाप के पाकेट से सारे सिक्‍के और नोट निकालकर गिनने लगा। कुल एक सौ तीन रूपये थे। उसने उसे वापस लैपटाप के बैग में रख दिया और सडक के दोनों तरफ देखने लगा। रिक्‍शा एक चौराहा पार हुआ दूसरा चौराहा पार हुआ। लेकिन कोई एटीएम नहीं खुला था। अब क्‍या होगा यही वह सोच रहा था। स्‍टेशन के थोड़ा पहले रिजर्वेशन का ऑफिस था। उसके गेट के अन्‍दर भी एक एटीएम था। बाहर से उसका शटर उठा देखकर अक्षय की उम्‍मीद बंधी। उसने रिक्‍शे वाले को थोडी देर रूकने को कहकर दौड कर एटीएम की तरफ भागा। दरवाजे के अन्‍दर झांका तो देखा कि मानीटर पर दफ़्ती लगी थी उस पर क्‍लोज्‍ड लिखा हुआ था। अब वह काफी निराश हो गया था। वह मुँह लटकाए रिक्‍शेे पर आकर बैठ गया। रिक्‍शे वाले ने अपनी सीट से थोड़ा उचक कर पैडिल पर जोर लगाया। रिक्‍शा सरकने लगा। जब रिक्शे ने स्पीड पकड ली तो वह सीट पर बैठकर पैडल मारने लगा। रिक्‍शे वाले की मेहनत को अक्षय ध्‍यान से देख रहा था। उसने निश्चय किया की वह हार नहीं मानेगा। उसके लिए अब स्‍टेशन के अंदर के एटीएम अंतिम आसरा था। अपनी अंतिम उम्‍मीद को पुख्‍ता करने के लिए वह रिक्‍शे वाले से पूछा भइया स्‍टेशन वाला एटीएम तो खुला होगा। रिक्‍शे वाले ने हां में हां मिलाई और बोला, खुला होना चाहिए। होली के नाते शहर के सारे एटीएम बंद हैं। अक्षय को उसकी बात से थोड़ी आशा बंधी। बाते करते करते स्‍टेशन का पहला गेट आया। अक्षय ने इसके बाद वाले गेट से अन्‍दर ले चलने को कहा। उसे पता था कि उस गेट से अंदर जाने पर जहां रिक्‍शा रूकता है वहीं पर एक एटीएम है। रिक्‍शे वाले ने वही किया उसने रिक्‍शा वही ले जाकर रोका। अक्षय ने रिक्‍शे वाले को पैसे देने से पहले एटीएम की तरफ देखा। शटर उठा हुआ था बहुत सारी छोटी छोटी पर्चियॉ दरवाजे पर गिरी थी। वह थोड़ा आगे बढ़कर दरवाजे तक गया। बाहर से ही स्‍क्रीन दिख रही थी। स्‍क्रीन पर पैसे नहीं होने का मैसेज लिखा हुआ था। वह मुंह लटकाए हुए रिक्‍शे वाले की तरफ मुड़ा। रिक्शावाला अक्षय के निराशा से भरे चहरे को देख रहा था। वह मायूस था और सशंकित भी था कि पता नहीं उसे पैसे मिलेंगे की नहीं। अक्षय रिक्शे वाले के चेहरे को देख कर समझ गया। उसने पास आकर रिक्‍शे वाले से कहा तुम चिंता मत करो तुम्‍हें देने के लिए उतने पैसे है मेरे पास। यह कहकर उसने तय किराए के हिसाब से लैपटाप में से तीस रूपये के सिक्‍के उसे दे दिए। उसने सोचा कि टिकट काउंटर पर सिक्‍के ज्‍यादा न देने पड़े इसलिए उसने रिक्‍शे वाले को सिक्‍के ही दिए। इसके बाद वह जल्‍दी जल्‍दी स्‍टेशन की सीढ़ियों तरफ भागा। एटीएम की आपाधापी में उसने समय का ध्‍यान ही नहीं रखा था। उसने देखा कि सात बजने में तीन चार मिनट ही बाकी हैं। वह काउंटर की भागा। ज्‍यों ही वह पहुंचा एनाउंसमेंट होने लगा कि देहरादून एक्‍सप्रेस अपने सही समय पर प्‍लेटफार्म नंबर 1 से चलने वाली है। उसने काउंटर की लाइन देखी, ज्‍यादा लोग नहीं थे। वह चार लोगों के बाद लाइन में खड़ा था। उसने लैपटॉप और जेब के पैसे निकाल लिए। रिक्शे वाले को देने के बाद उसके पास 93 रूपए बचे थे। वह पैसों को हाथों में लेकर लाइन में खड़ा था। तभी गाड़ी चलने की फिर एनाउंसमेंट हुई। वह घर गया। वह कुछ आँखे बंद की और समय और पैसे को कैलकुलेट किया। उसने तय किया की लखनऊ किसी तरह पहुँच जाऊँ वहाँ एटीएम से पैसे निकल लूँगा। लाईन में खड़े खड़े उसने निश्चय किया की वह टिकट नहीं कटाएगा। वह बैग कंधे पर लाद कर प्‍लेटफार्म नंबर 1 की तरफ भागा। प्लेटफार्म दूर नहीं था वह जल्दी जल्दी चलने लगा। ज्यों ही वह पहुँचा ट्रेन धीरे धीरे सरकने लगी थी। वह चाहता था कि जनरल डिब्‍बे में बैठे। लेकिन उसके पास अब समय नहीं था। वह दौडकर एक एसी डिब्‍बे में चढ़ गया। वह दरवाजे के अन्‍दर गैलरी में खड़ा हो गया। वह थोडा भयभीत था। उसने सोचा कि डिब्‍बे इंटरकनेक्‍टेड होते हैं। उसने वॉश बेसिन से अंदर गैलरी में उस दरवाजे की तरफ झांक कर देखा। लेकिन वह बंद था। वह वहीं दरवाजे पर खड़ा होकर अगले स्‍टेशन का इंतजार करने लगा। ताकि वह स्‍टापेज के दौरान उतरकर जनरल डिब्‍बे में जा सके। एक घंटे बाद अगला स्‍टेशन आ गया। ट्रेन रूकते ही अक्षय बैग कंधे पर लाद कर अंदाज लगाने लगा कि जनरल डिब्बा आगे होगा की पीछे? एक बार उसने आगे की तरफ देखा फिर पीछे। फिर कुछ सोचकर वह पीछे की तरफ चलने लगा। वह तेज कदमों से चल रहा था। अभी वह पांच छह डिब्‍बे ही पार कर पाया था कि तभी ट्रेन फिर चलने लगी। अक्षय घबरा गया। कंधे पर बैग होने की वजह से वह बहुत तेज नहीं चल पा रहा था। वह जल्‍दी से एक स्‍लीपर डिब्‍बे में चढ़ गया। उसने दरवाजे से थोड़ा अंदर होकर बैग को नीचे रखा। डिब्‍बे में बहुत ज्‍यादा भीड़ नहीं थी। उसने देखा कि बगल की निचे वाली सात नंबर की सीट खाली थी। पिछले एक घंटे से खड़े खड़े उसके पैर दर्द कर रहे थे। अक्षय ने कपड़ो का बैग सीट पर रख दिया और बैग के बगल में बैठ गया। उसने गहरी सांस ली। खिड़की पहले से खुली थी। खिड़की से आ रही ठंडी हवा की तरफ चेहरा करके बैठ गया। ठंडी हवा से उसे सुकून मिल रहा था। वहीं बैठे बैठे वह गर्दन घुमाकर डिब्बे का मुआयना करने लगा। उसने देखा कि सामने की नीचे की दोनों सीटों पर दो लोग बैठे है। एक खिडकी के बाहर देखते हुए अपने में मगन था। दूसरा उसकी कभी अक्षय की तरफ तो कभी खिडकी की तरफ देख रहा था। उसने अक्षय से पूछ लिया कहाँ जाना है भाई साहब! अक्षय टिकट नहीं होने के कारण डरा हुआ था। उसने एक शब्द में उसे जवाब दिया 'लखनऊ'!  उस आदमी ने सर हिलाकर 'अच्छा' !  कहा और खिड़की की तरफ देखने लगा। अक्षय ने वहीं बैठे बैठे एक बार फिर पूरे डिब्‍बे  का मुआयना किया। मन ही मन दृढ़ निश्‍चय किया कि जो होगा देखा जाएगा। वह भी खिड़की की तरफ मुँह करके बाहर देखने लगा। अभी पांच मिनट ही हुए थे उसके कानों ने टिकट टिकट की आवाज सुनी। उसने डरते हुए अन्‍दर की तरफ देखा। टीटी टिकट चेक करते हुए इधर ही आ रहा था। अब वह क्‍या करे उसके दिमाग में कई तरह के विचार आ रहे थे। मन ही मन उसने ठान लिया कि डरना नहीं है। वह टीटी को एटीएम के बंद होने की कहानी सुना देगा। यही सब वह मंथन कर रहा था कि टीटी जो कि करीब 6 फुट का रहा होगा उसके पास पहुंच गया। उसने अक्षय से टिकट मांगा। अक्षय ने उससे एक निरीह प्राणी की तरह सारी बात संक्षेप में बता डाली। इसके बाद अक्षय ने लैपटाप के बैग से नब्‍बे रूपये निकाल कर टीटी को पकड़ा दिए। टीटी ने पैसे गिने जो नब्‍बे रूपये थे। उन्‍होंने मुझे उसमें जो फटा वाला दस का नोट था मेरी तरफ बढ़ा कर कहा जाओ पांच नंबर सीट पर आराम करो। अक्षय को विश्‍वास नहीं हुआ। उसने डर के मारे कुछ पूछा नहीं। उसका गला जैसे सूख गया हो। बहुत मुश्किल से 'धन्यवाद'! बस इतना ही कह पाया। वह खुश था। ऐसा हो जाएगां इसके बारे में उसने सोचा भी नहीं था। उसने सामने पांच नंबर की बर्थ देखी। उसने बर्थ खोलकर सिकड़  लगाया। कपडों वाले बैग को तकिया बनाने के लिए उसने खिड़की की तरफ रखा। लैपटाप के बैग को उसके सहारे रख कर वह फिर वहीं सात नंबर की सीट पर बैठ गया। सीट पर बैठने के बाद वह बाहर देखकर सोचने लगा। कौन कहता है की भगवान मदद नहीं करते। अगर आदमी निश्चय कर ले तो सफलता जरूर मिलती है। अगर वह एटीएम से पैसे नहीं मिलने के बाद घर वापस लौट जाता तो  एक दिन की छुट्टी और लेनी पड़ती। शायद वह अपने बॉस का विश्वास भी खो देता। वह फिर डिब्बे के अंदर जाते हुए काले कोट पहने हुए आदमी को एकटक देखते रहा। 


Thursday 4 June 2020

सृजन और प्रेम




गमले में दो चार फूल खिले,
मन प्रफुल्लित तन पुलकित
रक्‍तों में नव संचार हुआ।

पीली और सुर्ख पंखुड़ियों से
अनुपम यह सौंदर्य हुआ।
फूलों का देख चटक रंग
तितलियों का आगमन हुआ।

निकट तरू की शाखाओं से
जब कोयल ने छेडी तान
गुंजर करते भौरे दौड़े,
मधुर सुरमयी प्रेम हुआ।

रोम रोम पुलकित हुआ,
देख फूलों की चंचलता
मंद पवन की मधुर ताल से
सुर‍भित देखो छत हुआ।

इक बूँद गिरा चक्षु से मेरे
यह सौंदर्य अप्रतिम हुआ I