Friday 19 June 2020

सफ़र : नब्बे रुपये (दूसरा भाग)

सफ़र : नब्बे रुपये



ट्रेन अपनी टॉप स्‍पीड में पटरियों पर धड़ धड़... करते हुए दौड रही थी। खिडकी से हवा उतनी तेजी से अन्‍दर आ रही थी। अक्षय इसका आनन्‍द ले रहा था। थोड़ी देर बैठने के बाद उसने जूता उतारकर सीट के नीचे रख दिया। मोजे और जूते से स्‍वतंत्रता मिलने के बाद उसके पंजों को बहुत सुकून.... मिल रहा था। अक्षय ने पैर की अंगुलियों को बैठे बैठे ही कई बार ऊपर नीचे किया। जिससे पैरों को भी आराम मिला। वह पैरों को ऊपर करके बैठ गया ताकि खिड़की से आ रही हवा पैरों को सीधे लगे। अभी कुछ ही समय हुआ था कि सामने की सीट पर बैठे आदमी की आवाज सुनाई दी। वह पूछ रहा था कि भाईसाहब!! आपकी टिकट टीटी ने बनाई है की नहीं ? उसका प्रश्‍न सुनकर अक्षय थोड़ा सशंकित हुआ।
....उसने उसकी तरफ देखा वह जल्‍दी जल्‍दी.. अपना खाना खा रहा था। अक्षय ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, नहीं भाईसाहब!! टिकट तो नहीं बनाई। लेकिन हाँ ! उनके पास जो लिस्ट थी उसमें वह कुछ लिख रहे थे। 
उस आदमी ने संदेह जताते हुए कहा तब तो टीटी ने सारा पैसा खुद रख लिया होगा। उसकी इस बात पर अक्षय थोड़ा वि‍चलित हुआ।  अक्षय उस आदमी से कुछ कहना चाहता था। लेकिन उसने देखा कि वह आदमी खाना खा चुका था। वह अब सोने की तैयारी कर रहा था। उसके सामने बैठा आदमी पहले ही सो गया था। अक्षय फिर कुछ सोच कर चुप.. रहा।अक्षय ने घड़ी देखी साढ़े नौ बज चुके थे। उसने खाना खाकर सोने का फैसला किया। वह बैग से खाना निकाल कर खाने लगा। खाना खाते खाते ...उसके दिमाग में आदमी की बात घूम रही थी। वह सोच....रहा था कि टीटी ने अगर रूपये अपने जेब में रख लिए होंगे तो इसमें उसका कौन सा घाटा है। उसे तो जनरल से कम पैसे में सोने के लिए बर्थ मिल गई  है। फिर भी इस आदमी का टीटी पर शक करना भी सही है। टिकट के नाम पर टीटी कमाते भी बहुत हैं। आम आदमी ज्‍यादातर ट्रेनों में ही सफर करता है। वह बखूबी जानता है कि ट्रेन में टिकट के नाम पर कितना भ्रष्‍टाचार है। ये धारणा हर आम आदमी के अंदर बन गई है। सही भी है मेरे अंदर भी तो यही धारणा बनी हुई थी। आज की घटना ने मेरी धारणा को थोड़ा कम किया है। यही सब सोचते...सोचते खाना कब खत्‍म हो गया अक्षय को पता ही नहीं चला। 
..अक्षय हाथ मुँह धोकर सात नंबर सीट जो कि मिडिल बर्थ होती है उस पर लेट गया। रात में 1 बजे ट्रेन लखनऊ स्‍टेशन पर पहुंची। प्‍लेटफार्म पर और ट्रेनों को लेकर एनाउसमेंट लगातार हो रही थी। आवाज सुनकर अधकचरी नींद में सोया अक्षय उठ गया। उसने लेटे लेटे ही खिड़की से बाहर मुआयना किया। उसने बाहर जा रहे आदमी से पूछा कौन सा स्‍टेशन है। उसने बताया कि 'लखनऊ' है। वह तुरंत बर्थ से उतरा दोनों कंधों पर बैग टांग कर वह ट्रेन से बाहर आया। 
वह सीढियाँ चढ़ते हुए मेन प्‍लेटफार्म पर आ गया। उसने प्रवेश द्वार की तरफ लगे एटीएम की ओर देखा। एक आदमी एटीएम के अंदर था और एक आदमी बाहर। वह तुरंत वहां पहुंचा। उसने बैग को फर्श पर रखा और देखा कि जो आदमी अंदर था। वह एटीएम से निकले रुपये गिन रहा था। अक्षय के जान में जान आ गई। उसके चेहरे पर खुशी के भाव थे।  तभी दूसरा आदमी एटीएम के अंदर से निकला। अक्षय झट से एटीएम के अंदर गया। उसने कार्ड अंदर डाला। रूपये निकाले। बाहर आया। उसे प्‍यास.. लगी थी। उसने पहले एक बोतल पानी खरीदा। पानी पीने के बाद वह थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा....l वह मन ही मन कुछ सोच रहा था। उसने बैग उठाया।
ट्रेन सवा दो बजे थी। उसने घड़ी देखी डेढ़ बज रहे थे। कुछ देर ठहरने के बाद वह पास के टिकट काउंटर पर गया। काउंटर पर भीड़ नहीं थी। उसने सोचा जनरल का टिकट ले लेता हूं। फिर आगे ट्रेन में खाली सीट के बारे में पता करता हूं। जनरल का टिकट लेने के बाद वह खोजते.. खोजते उस कमरे तक पहुंचा जहां चार्ट फाइनल होती है। खैर चार्ट तो पहले फाइनल हो जाती है। लेकिन अक्षय को उम्‍मीद थी हो सकता है एकआध बर्थ खाली मिल जाए। उसने वहां बैठे एक स्‍टाफ से पूछा। स्‍टाफ ने सामने बैठे रेलवे के दूसरे स्‍टाफ की ओर इशारा करके कहा आप उनसे बात कर ली‍जिए। अक्षय उनके पास गया। पूछने पर चार्ट देखकर उन्‍होंने बताया कि एसी 3 में सीट खाली है। अक्षय ने टिकट बनाने की बात की। तभी पहला वाला स्‍टाफ जो उनकी बातें सुन रहा था वह भी वहां आ गया। दोनों आपस में सीट को लेकर बात कर रहे थे। तभी पहला वाला स्‍टाफ बोला इस ट्रेन में तो शर्मा जी की डयूटी है। दूसरे स्‍टाफ ने कहा, हाँ!...वह तो बहुत सज्‍जन आदमी है। ऐसा करिये आप! परेशान मत होइए। आप ट्रेन में ही उनसे मिल लीजिएगा। वह वहीं आपका टिकट बना देंगे। 
अक्षय ने बहुत निवेदन किया कि यहीं से बना देते तो अच्‍छा होता। कोई तकनीकी दिक्‍कत बता कर उन्‍होंन निश्‍चिंत किया कि आप ट्रेन में शर्मा जी से मिल लीजियेगा। उनके बार बार कहने पर अक्षय ने कहा, ठीक है! उसने दोनों स्‍टाफ का नाम पूछा। पहले वाले स्‍टाफ ने नाम बताने के साथ अपना मोबाइल नंबर दिया और कहा अगर दिक्‍कत होगी तो मुझसे बात करा दीजियेगा। अक्षय मोबाइल नंबर के सही होने को लेकर आश्‍वस्‍त होना चाहता था। उसने मोबाइल में नंबर सेव करके तुरंत काल कर चेक किया कि नंबर सही है कि नहीं? बगल में खड़े स्‍टाफ के मोबाइल का रिंग बज रहा था। अक्षय ने उससे कहा कि मैंने ही काल‍ किया है..देख रहा था कि नंबर सही सेव किया है कि नहीं ? और उसने काल काट दिया। बात करते करते अक्षय ने घड़ी देखी। रात के एक पचास हो रहे थे। तभी पहला वाला स्‍टाफ बोला ट्रेन राइट टाइम है। आप प्‍लेटफार्म पर जाइए। 
दोनों स्‍टाफ को धन्‍यवाद करके अक्षय प्‍लेटफार्म की ओर चल दिया। सीढ़ियों से होकर वह प्लेटफॉर्म पर पहुँचा जिस पर ट्रेन आने वाली थी। उसने प्‍लेटफार्म  पर लगी घड़ी को देखा। अभी ट्रेन आने में दस मिनट शेष था। वह सीढ़ियों के पास एक बेंच पर बैठ गया। पानी की बोतल निकाल कर पानी पिया। उसने आगे के सफर के लिए एक और पानी का बोतल खरीदकर बैग में रख लिया। आगे के सफर को लेकर वह थोड़ा चिंतित था। तभी हार्न ने प्‍लेटफार्म पर ट्रेन के आने का आगाज किया। अक्षय ने उठ कर देखा कि ट्रेन दूसरे छोर से प्‍लेटफार्म से चपककर आ रही है। 
उसने दोनों बैग कंधे पर लाद लिए। ट्रेन धीरे....धीरे प्‍लेटफार्म पर रूक रही थी। अक्षय  की आंखे एसी 3 की बोगी को खोज रही थी।  होली का दिन होने के कारण प्‍लेटफार्म पर आपाधापी नहीं थी। वह आराम से चलकर बोगी तक पहुंचा। बोगी के बाहर ही माथे पर टीका लगाए एक टीटी साहब दिखाई दिए। उनके सामने एक यात्री खड़ा था। टीटी साहब हाथ में लिए लिस्‍ट को देख रहे थे। अक्षय ने कन्‍फर्म करने के लिए कि टीटी साहब शर्मा जी हैं कि नहीं। उनसे पूछा आप ! शर्मा जी हैं। उन्‍होंने जी हाँ ! ..... बताइए ! कहकर सर हिलाया। अक्षय ने एक सीट देने का उनसे निवेदन किया। साथ ही दोनों स्‍टाफ का नाम बताकर अपने निवेदन को और पुख्‍ता करने का प्रयास किया। शर्मा जी पर अक्षय के निवेदन का प्रयास सफल रहा। उन्‍होंने तुरंत कहा, आप! डिब्‍बे में अंदर जाकर बैठिए..... मैं अभी आ रहा हूं। अक्षय आश्‍वस्‍त हो गया। वह डिब्‍बे में जाकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद ट्रेन चलने लगी। शर्मा जी भी आ गए। अक्षय ने उन्‍हें जनरल का टिकट दिया। उन्‍होंने एसी 3 के किराए में से जनरल के किराए को घटाकर मेरा टिकट बना दिया। उन्‍होंने कहा आप जाइए बारह नंबर की बर्थ पर लेट जाइए। एसी 3 के टिकट के हिसाब से करीब सवा तीन सौ का अंतर आया था। अक्षय ने उन्‍हें पांच सौ रूपये दिए। उन्‍होंने खुशी खुशी.. उसे रख लिया। अक्षय ने उन्हें धन्‍यवाद किया और अपनी सीट पर पहुंचा। उसने देखा कि सीट पर एक तकिया, दो चादर, एक कंबल और एक तौलिया पहले से रखा हुआ है। उसने बैग सीट के नीचे रखकर चादर बिछाई। कंबल और तौलिए के ऊपर तकिया रखकर सिराहना थोड़ा उंचा किया और लेट गया। लेटे...लेटे वह आश्‍वस्‍त दिख रहा था कि वह सही समय पर कल ऑफिस पहुंच जाएगा। वह सोचने लगा की उसने होली के पहले कैसे बॉस से छुट्टी ली थी। होली के चार दिन पहले उसने आप्लीकेशन लिखा था। तभी??... ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। किसी ने लाईट जलाई। अक्षय ने देखा की एक संभ्रांत बुजुर्ग महिला बैग लिए खड़ी थी। उसने अक्षय की तरफ देखा तो वह थोड़ी सहम गयी। अक्षय के चेहरे पर अभी भी रंग लगा था। अक्षय भी नींद में था। लाईट सीधे आँखों पर पड़ रही थी। वह करवट हो गया। महिला भी समझ गई की होली का रंग है। वह बैग सीट के नीचे रखकर चादर बिछाने लगी। 
अक्षय फिर लेटे लेटे होली के चार दिन पहले के बारे में सोचने लगा।
(इसके आगे की कहानी अगले भाग में।)



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