Friday 12 June 2020

सफर : नब्‍बे रूपये



नब्‍बे रूपये


होली का दिन था। शाम के पांच बज रहे थे। माँ ने अक्षय को आवाज लगाई। बेटा! उठ जाओ। तुम्‍हारी सात बजे ट्रेन हैं ना। अक्षय आँख मीजते हुए उठा। उसकी आँख में चुभन हो रही थी। उसने शीशे में देखा उसकी आँखें लाल थी। चेहरे पर अभी भी लाल और हरे रंग के निशान थे। होली खेलने के बाद नहाते समय मुंह को कई बार साबुन से धोया था। बेसन दूध का उबटन भी रंग उतारने के लिए लगाया था। लेकिन रंग उतरा नहीं था। शायद रंग आंखों मे भी चला गया था। इसलिए आंखों में चुभन हो रही है।शीशे के सामने अक्षय यही सब सोच रहा था। तभी माँ की दुबारा आवाज आई अक्षय! उठे कि नहीं।  अक्षय ने कहा हां, माँ उठ गया हूं । उसने हाथ मुंह धोया। फिर अपने कपडे बैग में रखकर तैयार होने लगा। मां ने पूछा कितने बजे ट्रेन है। अक्षय ने जवाब में कहा माँ सात बजे देहरादून एक्‍सप्रेस से जाना है। माँ को थोड़ा संशय हुआ। उसने झिझकते हुए पूछा यह ट्रेन लुधियाना जाएगी ? अक्षय ने माँ के संदेह को दूर करते हुए कहा माँ! इस ट्रेन से लखनऊ तक जाउंगा। वहां से रात में लुधियाना के लिए दूसरी ट्रेन है। मैं 6 बजे घर से निकलूंगा क्‍योंकि मुझे टिकट भी लेना है। माँ ने जल्‍दी से चाय बनाई। होली का दिन था तो कई तरह का पकवान भी बना था। माँ ने उसमे से अक्षय को जो पसंद था खाने को दिया और रात में खाने के लिए कुछ पैक कर दिया। ठीक 6 बजे अक्षय माँ और पिताजी का चरण स्‍पर्श कर पैदल ही घर से ऑटो पकड़ने के लिए निकल पड़ा। उसके एक कंधे पर कपड़ों का और एक कंधे पर लैपटाप का बैग‍ टंगा था। घर से पचास कदम की दूरी पर तिराहा था वहां से रेलवे स्‍टेशन जाने के लिए ऑटो मिलती थी। वह तेज कदमों से चल रहा था क्‍योंकि उसे एटीएम से रुपये भी निकालते थे। वह तिराहे पर पहुंचते ही पहले एटीएम पर गया। एटीएम खुला था पर मानीटर पर उसके क्‍लोज्‍ड लिखा था । उसने सड़क के उस पार वाले एटीएम की ओर देखा उसका भी शटर गिरा हुआ था। वह जेब टटोलने लगा तो उसे बीस रुपये मिले। उसने लैपटाप के आगे की पाकेट में हाथ डाल कर टटोला कुछ नोट और सिक्‍के उसमें थे। उसने ऑटो के लिए इधर उधर नजर दौडाई। सडक पर कहीं ऑटो नजर नहीं आ रही थी। तभी उसे एक खाली रिक्‍शा वाला आता दिखा। उसने उसे रेलवे स्‍टेशन चलने के लिए कहा। वह झट से तैयार हो गया। कपडे वाले बैग को जहां पांव रखते है वहां रखकर अक्षय सीट पर बैठ गया। रिक्‍शा वाला उसे स्‍टेशन की तरफ लेकर चल पडा। अक्षय, रास्‍ते के सारे एटीएम का खाका मन ही मन बना रहा था। उसे रास्‍ते का अच्‍छी तरह से ज्ञान था। उसे उम्‍मीद थी कि किसी न किसी एटीएम पर पैसे मिल जाएंगे। वह लैपटाप के पाकेट से सारे सिक्‍के और नोट निकालकर गिनने लगा। कुल एक सौ तीन रूपये थे। उसने उसे वापस लैपटाप के बैग में रख दिया और सडक के दोनों तरफ देखने लगा। रिक्‍शा एक चौराहा पार हुआ दूसरा चौराहा पार हुआ। लेकिन कोई एटीएम नहीं खुला था। अब क्‍या होगा यही वह सोच रहा था। स्‍टेशन के थोड़ा पहले रिजर्वेशन का ऑफिस था। उसके गेट के अन्‍दर भी एक एटीएम था। बाहर से उसका शटर उठा देखकर अक्षय की उम्‍मीद बंधी। उसने रिक्‍शे वाले को थोडी देर रूकने को कहकर दौड कर एटीएम की तरफ भागा। दरवाजे के अन्‍दर झांका तो देखा कि मानीटर पर दफ़्ती लगी थी उस पर क्‍लोज्‍ड लिखा हुआ था। अब वह काफी निराश हो गया था। वह मुँह लटकाए रिक्‍शेे पर आकर बैठ गया। रिक्‍शे वाले ने अपनी सीट से थोड़ा उचक कर पैडिल पर जोर लगाया। रिक्‍शा सरकने लगा। जब रिक्शे ने स्पीड पकड ली तो वह सीट पर बैठकर पैडल मारने लगा। रिक्‍शे वाले की मेहनत को अक्षय ध्‍यान से देख रहा था। उसने निश्चय किया की वह हार नहीं मानेगा। उसके लिए अब स्‍टेशन के अंदर के एटीएम अंतिम आसरा था। अपनी अंतिम उम्‍मीद को पुख्‍ता करने के लिए वह रिक्‍शे वाले से पूछा भइया स्‍टेशन वाला एटीएम तो खुला होगा। रिक्‍शे वाले ने हां में हां मिलाई और बोला, खुला होना चाहिए। होली के नाते शहर के सारे एटीएम बंद हैं। अक्षय को उसकी बात से थोड़ी आशा बंधी। बाते करते करते स्‍टेशन का पहला गेट आया। अक्षय ने इसके बाद वाले गेट से अन्‍दर ले चलने को कहा। उसे पता था कि उस गेट से अंदर जाने पर जहां रिक्‍शा रूकता है वहीं पर एक एटीएम है। रिक्‍शे वाले ने वही किया उसने रिक्‍शा वही ले जाकर रोका। अक्षय ने रिक्‍शे वाले को पैसे देने से पहले एटीएम की तरफ देखा। शटर उठा हुआ था बहुत सारी छोटी छोटी पर्चियॉ दरवाजे पर गिरी थी। वह थोड़ा आगे बढ़कर दरवाजे तक गया। बाहर से ही स्‍क्रीन दिख रही थी। स्‍क्रीन पर पैसे नहीं होने का मैसेज लिखा हुआ था। वह मुंह लटकाए हुए रिक्‍शे वाले की तरफ मुड़ा। रिक्शावाला अक्षय के निराशा से भरे चहरे को देख रहा था। वह मायूस था और सशंकित भी था कि पता नहीं उसे पैसे मिलेंगे की नहीं। अक्षय रिक्शे वाले के चेहरे को देख कर समझ गया। उसने पास आकर रिक्‍शे वाले से कहा तुम चिंता मत करो तुम्‍हें देने के लिए उतने पैसे है मेरे पास। यह कहकर उसने तय किराए के हिसाब से लैपटाप में से तीस रूपये के सिक्‍के उसे दे दिए। उसने सोचा कि टिकट काउंटर पर सिक्‍के ज्‍यादा न देने पड़े इसलिए उसने रिक्‍शे वाले को सिक्‍के ही दिए। इसके बाद वह जल्‍दी जल्‍दी स्‍टेशन की सीढ़ियों तरफ भागा। एटीएम की आपाधापी में उसने समय का ध्‍यान ही नहीं रखा था। उसने देखा कि सात बजने में तीन चार मिनट ही बाकी हैं। वह काउंटर की भागा। ज्‍यों ही वह पहुंचा एनाउंसमेंट होने लगा कि देहरादून एक्‍सप्रेस अपने सही समय पर प्‍लेटफार्म नंबर 1 से चलने वाली है। उसने काउंटर की लाइन देखी, ज्‍यादा लोग नहीं थे। वह चार लोगों के बाद लाइन में खड़ा था। उसने लैपटॉप और जेब के पैसे निकाल लिए। रिक्शे वाले को देने के बाद उसके पास 93 रूपए बचे थे। वह पैसों को हाथों में लेकर लाइन में खड़ा था। तभी गाड़ी चलने की फिर एनाउंसमेंट हुई। वह घर गया। वह कुछ आँखे बंद की और समय और पैसे को कैलकुलेट किया। उसने तय किया की लखनऊ किसी तरह पहुँच जाऊँ वहाँ एटीएम से पैसे निकल लूँगा। लाईन में खड़े खड़े उसने निश्चय किया की वह टिकट नहीं कटाएगा। वह बैग कंधे पर लाद कर प्‍लेटफार्म नंबर 1 की तरफ भागा। प्लेटफार्म दूर नहीं था वह जल्दी जल्दी चलने लगा। ज्यों ही वह पहुँचा ट्रेन धीरे धीरे सरकने लगी थी। वह चाहता था कि जनरल डिब्‍बे में बैठे। लेकिन उसके पास अब समय नहीं था। वह दौडकर एक एसी डिब्‍बे में चढ़ गया। वह दरवाजे के अन्‍दर गैलरी में खड़ा हो गया। वह थोडा भयभीत था। उसने सोचा कि डिब्‍बे इंटरकनेक्‍टेड होते हैं। उसने वॉश बेसिन से अंदर गैलरी में उस दरवाजे की तरफ झांक कर देखा। लेकिन वह बंद था। वह वहीं दरवाजे पर खड़ा होकर अगले स्‍टेशन का इंतजार करने लगा। ताकि वह स्‍टापेज के दौरान उतरकर जनरल डिब्‍बे में जा सके। एक घंटे बाद अगला स्‍टेशन आ गया। ट्रेन रूकते ही अक्षय बैग कंधे पर लाद कर अंदाज लगाने लगा कि जनरल डिब्बा आगे होगा की पीछे? एक बार उसने आगे की तरफ देखा फिर पीछे। फिर कुछ सोचकर वह पीछे की तरफ चलने लगा। वह तेज कदमों से चल रहा था। अभी वह पांच छह डिब्‍बे ही पार कर पाया था कि तभी ट्रेन फिर चलने लगी। अक्षय घबरा गया। कंधे पर बैग होने की वजह से वह बहुत तेज नहीं चल पा रहा था। वह जल्‍दी से एक स्‍लीपर डिब्‍बे में चढ़ गया। उसने दरवाजे से थोड़ा अंदर होकर बैग को नीचे रखा। डिब्‍बे में बहुत ज्‍यादा भीड़ नहीं थी। उसने देखा कि बगल की निचे वाली सात नंबर की सीट खाली थी। पिछले एक घंटे से खड़े खड़े उसके पैर दर्द कर रहे थे। अक्षय ने कपड़ो का बैग सीट पर रख दिया और बैग के बगल में बैठ गया। उसने गहरी सांस ली। खिड़की पहले से खुली थी। खिड़की से आ रही ठंडी हवा की तरफ चेहरा करके बैठ गया। ठंडी हवा से उसे सुकून मिल रहा था। वहीं बैठे बैठे वह गर्दन घुमाकर डिब्बे का मुआयना करने लगा। उसने देखा कि सामने की नीचे की दोनों सीटों पर दो लोग बैठे है। एक खिडकी के बाहर देखते हुए अपने में मगन था। दूसरा उसकी कभी अक्षय की तरफ तो कभी खिडकी की तरफ देख रहा था। उसने अक्षय से पूछ लिया कहाँ जाना है भाई साहब! अक्षय टिकट नहीं होने के कारण डरा हुआ था। उसने एक शब्द में उसे जवाब दिया 'लखनऊ'!  उस आदमी ने सर हिलाकर 'अच्छा' !  कहा और खिड़की की तरफ देखने लगा। अक्षय ने वहीं बैठे बैठे एक बार फिर पूरे डिब्‍बे  का मुआयना किया। मन ही मन दृढ़ निश्‍चय किया कि जो होगा देखा जाएगा। वह भी खिड़की की तरफ मुँह करके बाहर देखने लगा। अभी पांच मिनट ही हुए थे उसके कानों ने टिकट टिकट की आवाज सुनी। उसने डरते हुए अन्‍दर की तरफ देखा। टीटी टिकट चेक करते हुए इधर ही आ रहा था। अब वह क्‍या करे उसके दिमाग में कई तरह के विचार आ रहे थे। मन ही मन उसने ठान लिया कि डरना नहीं है। वह टीटी को एटीएम के बंद होने की कहानी सुना देगा। यही सब वह मंथन कर रहा था कि टीटी जो कि करीब 6 फुट का रहा होगा उसके पास पहुंच गया। उसने अक्षय से टिकट मांगा। अक्षय ने उससे एक निरीह प्राणी की तरह सारी बात संक्षेप में बता डाली। इसके बाद अक्षय ने लैपटाप के बैग से नब्‍बे रूपये निकाल कर टीटी को पकड़ा दिए। टीटी ने पैसे गिने जो नब्‍बे रूपये थे। उन्‍होंने मुझे उसमें जो फटा वाला दस का नोट था मेरी तरफ बढ़ा कर कहा जाओ पांच नंबर सीट पर आराम करो। अक्षय को विश्‍वास नहीं हुआ। उसने डर के मारे कुछ पूछा नहीं। उसका गला जैसे सूख गया हो। बहुत मुश्किल से 'धन्यवाद'! बस इतना ही कह पाया। वह खुश था। ऐसा हो जाएगां इसके बारे में उसने सोचा भी नहीं था। उसने सामने पांच नंबर की बर्थ देखी। उसने बर्थ खोलकर सिकड़  लगाया। कपडों वाले बैग को तकिया बनाने के लिए उसने खिड़की की तरफ रखा। लैपटाप के बैग को उसके सहारे रख कर वह फिर वहीं सात नंबर की सीट पर बैठ गया। सीट पर बैठने के बाद वह बाहर देखकर सोचने लगा। कौन कहता है की भगवान मदद नहीं करते। अगर आदमी निश्चय कर ले तो सफलता जरूर मिलती है। अगर वह एटीएम से पैसे नहीं मिलने के बाद घर वापस लौट जाता तो  एक दिन की छुट्टी और लेनी पड़ती। शायद वह अपने बॉस का विश्वास भी खो देता। वह फिर डिब्बे के अंदर जाते हुए काले कोट पहने हुए आदमी को एकटक देखते रहा। 


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