Sunday 5 July 2020

ईमानदार सच




अप्रैल का आंतिम सप्‍ताह का शनिवार था। सुबह हुई बारिश से मौसम खुशगवार हो गया था। शाम को भी हल्‍की हल्की बारिश हो रही थी। बिरजू सड़क के बाईं तरफ टैक्‍सी खड़ा करके सवारी का इंतजार.. कर रहा था। उसने घड़ी देखी सात बजने में पांच मिनट बाकी थे। उसने सोचा चलो जब तक सवारी नहीं मिलती है...चाय ही पी लेता हूं । वहीं खड़े खड़े उसने आसपास नजर दौड़ाई...। बाईं तरफ बीस कदम की दूरी पर ठेले पर एक आदमी चाय छान रहा था। वह चाय वाले के पास गया। उसने चाय वाले से अलग से एक स्‍पेशल कड़क चाय बना के लिए कहा। और चाय बनने का इंतजार करने लगा। थोड़ी देर में उसे चाय मिल गई। वह चाय पीने लगा। साथ ही वह टैक्‍सी की तरफ भी देख रहा था। 
अभी उसने आधी चाय ही ...पी थी कि उसने देखा कि एक महिला उसकी टैक्‍सी की तरफ आ रही है। वह करीब 34- 35 साल की रही होगी। वह टैक्‍सी के पास आकर रूक गई। वह आसपास टैक्‍सी के ड्राईवर को खोज.. रही थी। बिरजू ने अभी आधी चाय खत्‍म की थी। महिला को देखते ही झट से आधी चाय फेंक दी। जेब से पांच का सिक्‍का निकाल कर चायवाले को दिया। वह यह सोच कर टैक्‍सी की तरफ लपका... कहीं सवारी चली न जाए। वह टैक्‍सी के पास पहुंच कर महिला से पूछा, मैम!...आपको कहीं जाना है। मैडम ने उसे उपर से नीचे तक देखा फिर सशंकित नजरों से देखते हुए.. पूछा.. यह तुम्‍हारी टैक्‍सी है?
बिरजू ने हाँ, में सिर हिलाते हुए कहा, जी मैम ! महिला ने आश्वस्त होकर कहा, मुझे रेलवे स्‍टेशन जाना है। 
चलिए बैठिए मैम !... कहकर बिरजू ने टैक्‍सी का पिछला दरवाजा खोलकर मैडम को टैक्‍सी में बिठाया।
महिला के बैठने के बाद वह टैक्‍सी को स्‍टार्ट करके रेलवे स्‍टेशन की ओर चल दिया। कुछ दूर चलते ही महिला ने बिरजू से कहा कि जरा जल्‍दी करो मेरी 7: 40 की ट्रेन है। कहीं छूट न जाए?
इतना सुनते ही.... बिरजू ने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ा दी और बोला मैम... आप चिंता ना करे मैं आपको समय से पहले पहुंचा दूंगा...। 
यह सुनते ही महिला थोड़ी निश्चिन्त...हो गई। उसने कंधे पर टंगे पर्स को उतार कर अपने बगल में सीट पर रख दिया। वह आराम से बैठ कर कुछ सोचने लगी। तभी उसका फोन बजने लगा और वह फोन पर बात करने लगी।
बिरजू बारिश के कारण सड़क पर आंख गड़ाकर... ध्‍यान से गाड़ी चला रहा था। 
तभी....उसे पीछे से सुबकने की आवाज आई। उसने सामने के मिरर में देखा। महिला रो रही थी। उसकी आँखों से आंसू निकल रहे थे। वह कह रही थी कि बेटे के एडमिशन फीस जमा करना है। मंडे को लास्‍ट डेट है। आज बहुत कहने पर उसे आफिस से एक महीने की सैलरी एडवांस मिली है। मंडे को वह बच्‍चे की फीस जमा करा देगी। शायद वह अपनी बहन से बात कर रही थी। बात करने के बाद फोन रख दिया। रुमाल निकाल कर उसने अपने आंसुओं को पोछा। वह कोशिश कर रही थी की अपने आपको स्थिर रखे। वह खामोश आंखों से शीशे से बाहर रोड के दूसरी तरफ लगे स्ट्रीट लाइट को देखने लगी। उसकी नजरें... लाइटों को देख रही है लेकिन वह मन ही मन कुछ सोच रही थी। बिरजू ये सब देख रहा था लेकिन... वह कुछ बोला नहीं। 
बिरजू फ़ोन पर महिला के एडमिशन की बात को सुनकर मन ही मन सोचने लगा। उसने भी तो आज ही अपने दोनों बच्‍चों का एडमिशन एक छोटे इंग्लिश मीडियम स्‍कूल में करवाया है। स्कूल भले ही छोटा है लेकिन फ़ीस हम जैसे लोगों के लिए तब भी अधिक है। उसके पास भी उतने पैसे नहीं थे। अपने कई जानने वालों से उधार माँगा। लेकिन सबने मना कर दिया। वो भी कहाँ से देते सबको अपने बच्चों का एडमिशन कराना है। थक हारकर उसने फीस के लिए पांच प्रतिशत ब्‍याज पर पैसे एक सूदखोर से लिया। तब जाकर उसने फ़ीस जमा किया..।
इस मंहगाई के जमाने में घर का खर्चा चलाना कितना मुश्किल है। वह यही सब सोच रहा था कि स्‍टेशन आ गया। उसने गेट के पहले सड़क के किनारे टैक्‍सी रोककर बोला मैडम!.. स्‍टेशन आ गया। महिला फोन पर फिर किसी से बात कर रही थी। वह फोन पर बात करते करते उतरी। उसने बिरजू को किराया दिया और स्‍टेशन के अंदर चली गई। 
मैडम के जाने के बाद बिरजू ने देखा कि एक पुलिस वाला आ रहा है। वह समझ गया कि पुलिस वाला गाड़ी हटाने के लिए बोलेगा। वह हटाने के लिए बोले इससे पहले उसने गाड़ी.... स्‍टार्ट करके दूसरे गेट के सामने सड़क के किनारे लगा दिया। 
वहीं वह गाड़ी से उतरकर दूसरी सवारी का इंतजार करने लगा। इस दौरान वह कपड़ा निकाल कर शीशा साफ करने लगा। बारिश  के कारण शीशा धुंधला हो गया था। वह शीशा साफ कर रहा था कि उसने देखा कि पिछली सीट पर महिला का पर्स छूट गया है। उसने पर्स उठाया। पर्स खोला उसमें सौ-सौ के नोटों की दो गड्डियां यानी बीस हजार रुपये थे।
उसने घड़ी देखी 7 : 45 हो रहा था। उसने सोचा.... ट्रेन तो अब तक चली गई होगी। पता नहीं उसने क्या सोचा ? बिना देरी किये उसने अपनी गाड़ी का दरवाजा लॉक किया और प्‍लेटफार्म की तरफ भागा। उसने सोचा हो सकता है ट्रेन पांच दस मिनट लेट हो। वह प्‍लेटफार्म तक पहुंचा। लेकिन ट्रेन जा चुकी थी। उसने दिमाग में आया....हो सकता हो उसे पर्स के बारे में याद आ गया हो। वह महिला मुझे खोज रही हो। उसने प्‍लेटफार्म पर खोजा पर वह नहीं मिली। फिर उसे खोजते हुए वापस गेट तक आया। लेकिन उसे वह महिला कहीं नहीं दिखी। उसने सोचा...पर्स में हो सकता है कोई मोबाइल नंबर या....उसका पता लिखा कोई कार्ड हो। पर्स में रूपये के अलावा एक सफेद मोटे सीट का प्‍लास्टिक कार्ड था। उसपर एक कंपनी का नाम और नीचे एक कोड के रूप में नंबर लिखा था। बाकी मेकअप का समान जो लगभग सभी महिलाओं के पर्स में होता है, वह था। बिरजू कार्ड को हाथ में लेकर उलट पलट कर देखने लगा। उस पर और कुछ नहीं लिखा था। पर्स में और कोई कागज़ नहीं था। वह सोचने लगा अब वह क्या करे ? वह पर्स लेकर आधे घंटे तक गेट के पास खड़ा रहा। सोचा शायद महिला उसे खोजते हुए आये। लेकिन जब कोई नहीं आया तो वह अपनी गाड़ी के पास आया। ....कैसे ? यह पर्स महिला के पास पहुँच जाए उसके दिमाग में यही चल रहा था। 
उसने फ़ोन निकाला। 
उसने अपने एक दोस्‍त प्रवीन को फोन किया जो एक कम्‍यूनिकेशन कंपनी में काम करता था। उसने प्रवीन को फोन पर सारी बात बताई। तो प्रवीन ने कहा, अरे यार!... तेरी तो आज लाटरी निकल आई। इतना क्यों परेशान है। पैसे अपने पास रख ले। किसी को क्या पता चलेगा। लेकिन बिरजू भी एक आम आदमी ही था। वह इस रूपये का महत्‍व समझता था। उसे महिला की पीड़ा याद आ रही थी। उसने प्रवीन से कहा कहो तो... पर्स को थाने में दे दूं। हो सकता है महिला खोजते खोजते थाने तक पहुंचे और उसे पर्स मिल जाए। 
प्रवीन ने कहा थाने में तू रहने दे......पर्स लेकर अभी घर जा। सुबह पर्स लेकर घर आना फिर देखते हैं क्‍या करना है। फोन काटने के बाद बिरजू, थोड़ी देर वहीं रुका रहा। फिर उसने फैसला किया....कि वह घर चलता है।
अगली सुबह 10 बजे बिरजू पर्स लेकर प्रवीन के घर पर पहुंचा। बिरजू ने पर्स में से कार्ड निकाल कर प्रवीन को देते हुए कहा इस कार्ड पर केवल कंपनी का नाम और कोड की तरह एक नंबर लिखा है। प्रवीन ने कार्ड देखा!
कार्ड पर कंपनी का नाम और नीचे नंबर लिखा था। उसने कार्ड देखकर बोला ये कैसा... कार्ड है ? न नाम है न पता और न तो कोई फ़ोटो लगी है ? ...इस कार्ड से उस महिला को कैसे...खोजेंगे ?
तभी उसके दिमाग में आया कि गूगल में कंपनी का नाम डालकर देखता हूं। शायद !... कुछ पता चल जाय। उसने कंप्‍यूटर आन किया। गूगल खोलकर उसने सर्च बॉक्स में कंपनी का नाम डाला। पेज खुलने पर तीसरे नंबर पर कंपनी की वेबसाइट दिखी। उसपर क्लिक करते ही कंपनी का पेज खुल गया। पेज के एक किनारे पर कंपनी का एड्रेस लिखा था और नीचे दो फोन नंबर थे।
प्रवीन ने अपने फोन से पहले लिखे नंबर पर काल किया। रिंग पूरी गई... लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। उसने दूसरे नंबर पर काल किया। दो बार रिंग बजने के बाद किसी ने फोन उठाया। प्रवीन ने कार्ड पर लिखे कंपनी का नाम लिया और पूछा क्या आप इस कंपनी से बोल रहे हैं। उसने अपने आपको कंपनी का मैनेजर बताया। उसके कंफर्म करते ही प्रवीन ने उसे कार्ड के बारे में बताया। उधर से मैनेजर ने कहा हाँ, हमारे यहां के इंप्‍लाई का कार्ड ऐसा ही होता है। उसने कार्ड का नंबर पूछा। फिर कन्‍फर्म किया कि यह हमारे यहां की एक महिला सुपरवाईजर का कार्ड है। 
प्रवीन ने उसे पर्स के बारे में सारी बात बताई। उसने कहा ठीक है। मैं उनको फोन कर देता हूं। आपने जिस नंबर से फोन किया है वह नंबर उन्‍हें दे दूंगा। वह आपसे कांटेक्‍ट कर लेंगी। यदि नहीं कांटेक्‍ट हो पाता है तो आप दुबारा फोन करिएगा....मैं किसी आदमी को भेज कर पर्स कलेक्‍ट कर लूंगा। प्रवीन ने कहा ठीक है सर।
बिरजू प्रवीन की सारी बातें सुन रहा था। प्रवीन ने फिर भी उसे पूरी बात बताई और कहा फोन का इंतजार करते हैं। 
करीब एक घंटे बाद उस महिला का फोन आया। वह बहुत खुश थी। उसने प्रवीन के घर का एड्रेस नोट किया और बोली अभी 12 : 30 की ट्रेन पकड़ के दो बजे के करीब आउंगी। प्रवीन ने बिरजू से बताया कि वह करीब दो बजे आएगी। बिरजू बोला ठीक है....।
दो बजे के करीब महिला का फोन आया कि मैं ट्रेन से आ गई हूं। दस मिनट में पहुंच जाउंगी। प्रवीन ने बिरजू को फोन पर बताया कि महिला दस मिनट में आ रही है। बिरजू ने कहा ठीक है मैं आ रहा हूं। बिरजू का घर प्रवीन के घर से करीब 1 किमी दूर था। वह पर्स लेकर वहां पहुंच गया। महिला भी थोड़ी देर बाद पहुंची। वह बिरजू को पहचान गई। उसकी आंखों में आंसू थे। महिला कमरे में आकर बैठ गई। बिरजू ने उसका पर्स उसको पकड़ाया और बोला देख लीजिए आपका सारा पैसा और सामान सुरक्षित हैं ना ? महिला ने पर्स हाथ में लेकर उसे खोल कर चेक किया। सब ठीक ठाक देख कर उसने कहा सब कुछ है। उसने  धन्‍यवाद किया। वह शायद जल्‍दी में थी उसने कहा कि उसे वापस जाना है चार बजे की ट्रेन है। प्रवीन ने कहा अभी तो टाइम है। चाय पीकर चले जाइएगा। महिला ने चाय के लिए मना किया। लेकिन प्रवीन के बार बार आग्रह करने पर वह चाय पीने के लिए रूक गई। अभी चाय आने में देरी थी। 
प्रवीन ने उसके परिवार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके पति की दो साल पहले एक हादसे में मत्‍यु हो गई थी। उसके परिवार में एक बूढ़ी सास है। मेरा एक ग्‍यारह साल का बेटा है। वह पांचवी कक्षा में पढ़ता है। घर की सारी जिम्‍मेदारी मुझे ही उठानी... पड़ती है। 
उसने बच्‍च्‍ो के फीस के लिए अपने रिश्‍तेदारों से उधार मांगा था। लेकिन सबने न होने की बात कहकर मना कर दिया। मैं काफी दिनों से परेशान... थी।
बहुत ही मिन्नत करने के बाद एक महीने की सैलरी एडवांस में मिली थी। कल शाम को मैं पता नहीं कैसे अपना पर्स टैक्सी में भूल गई। जब मैं ट्रेन में बैठ गई तब मुझे पर्स का याद आया। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ ? मैं रात भर सोई नहीं। सुबह जब मैनेजर का फोन आया तब मेरी जान में जान आई। आप लोगों का बहुत उपकार रहेगा मुझ पर.... इतना कहते ही उसके आंसू फिर गिरने लगे। तभी प्रवीन की पत्‍नी चाय लेकर आ गई। उसने कहा, रोइये मत दीदी! अभी भी बिरजू भाईसाहब! जैसे लोग इस दुनिया में है। जिससे मानवता बची है। अब इन्‍हीं को देख लीजिए इन्‍होंने भी अपने दोनों बच्‍चों का एडमिशन कराने के लिए ब्‍याज पर पैसा उठाया है। अगर चाहते तो यह आपका पैसा रख लेते। अपना उधार चुका देते। लेकिन उन्‍होंने ऐसा नहीं किया। तभी बिरजू बोल पड़ा अरे नहीं भाभी!...अब मेरी इतनी तारीफ मत करो। मैंने भी अपने बच्‍चों का एडमिशन कैसे कराया है। मैं अच्‍छी तरह जानता हूं। मैम के दुख को मैं जनता हूँ। बिरजू की बात सुनकर फिर  महिला के आंसू मिकलने लगे। प्रवीन की पत्‍नी ने उसे चुप कराया और बिस्किट का प्‍लेट उसकी तरफ बढ़ाया। महिला ने बहुत कहने पर एक बिस्किट लिया। उसने रूमाल निकाल कर अपने आंसूओं को पोछा। वह बिरजू की तरफ कृतज्ञता के भाव से देखने लगी। फिर...उसने अपना पर्स उठाया और सबको धन्यवाद कहा और वह.... वहां से चली गई।

Saturday 27 June 2020

सफ़र : नब्बे रूपये (तीसरा और अंतिम भाग)

सफ़र : नब्बे रुपये 
तीसरा और अंतिम भाग


लखनऊ से ट्रेन निकल पड़ी थी। ट्रेन की एसी 3 बोगी में लेटे लेटे अक्षय होली के चार दिन पहले की बात सोच रहा था। उसने कैसे छुट्टी ली थी। वह चार दिन पहले की बात याद करने लगा।...
वह घर पर ही छुट्टी का आप्लीकेशन लिख कर ऑफिस के लिए दोस्‍त के साथ निकला था। दोनों ऑटो के लिए चौराहे पर इंतजार कर रहे थे। अक्षय के अंदर होली पर घर जाने को लेकर उथल पुथल मची हुई थी। पिछली होली पर छुट्टी नहीं मिलने के कारण वह जा नहीं पाया था। उसने अपने भीतर चल रहे सवालों से थोड़ी सांत्वना पाने के लिए बगल में खड़े आदेश से पूछा ! 
आदेश ! छुटटी मिल जाएगी की नहीं ? 
मैंने आप्‍लीकेशन लिख लिया है। आज बास के पास से बात करूँगा। 
आदेश ने दिलासा देते हुए कहा, मिल जायेगी यार ! ज्यादा चिंता मत करो।
अक्षय को उसकी बात से थोड़ी सांत्वना मिली। अभी अक्षय कुछ और बोलने जा रहा था कि एक ऑटो आ गया। दोनों उसमें बैठ गए। 
बैठने के बाद अक्षय बोला छुट्टी मिल जाए तो टिकट करूँगा। आदेश ने फिर.. अक्षय को निश्चिन्त करने के लिए कहा, यार ! इस बार होली की छुटटी पर ज्‍यादा लोग नहीं जा रहे हैं। उम्मीद है बॉस तुम्हे छुट्टी दे देंगे।
अक्षय उसकी बात सुनकर बोला भगवान करे!... मिल जाए। 
ऑटो वाले ने 15 से 20 मिनट में ऑफिस पहुँचा दिया। ऑफिस पहुंचकर दोनों अपने अपने कंप्‍यूटर के सामने बैठ गए। कंप्‍यूटर खोलकर अक्षय ने बगल में बैठे साथी से पूछा बॉस आ गए हैं कि नहीं। उसने बताया कि बॉस अभी नहीं आए आए हैं थोड़ा लेट में आएंगे। अक्षय यह सुनने के बाद अपने काम में लग गया। लेकिन उसके मन में छुट्टी को ही लेकर प्रश्न घुमड़ रहे थे। मन में शंका हो रही थी वह सोच रहा था कि बॉस से किस तरह बोलू कि छुट्टी मिल जाए। वह मन ही मन निश्‍चय भी कर रहा था कि नहीं मिली तो भी घर तो जरूर जायेगा। फिर सोचता बास तो विनम्र हदय हैं और मेरे काम से खुश भी रहते हैं। मुझे छुट्टी मिल जानी चाहिए। 
वह यही सब सोच रहा था कि एक साथी ने कहा बास आ गए हैं सबको मीटिंग पर बुलाया है। यह सुनते ही अक्षय ने निश्‍चय किया मीटिंग के बाद जाकर इस बारे में बात करूंगा।
अक्षय बॉस से बात करने को इतना व्‍याकुल था... कि वह बास के केबिन के दरवाजे की तरफ सिर उठाकर हर पांच मिनट में देख लेता था। आखिरकर उसका इंतजार खत्‍म हुआ। आधे घंटे बाद मीटिंग खत्‍म हो गई। सब लोग बास के केबिन से बाहर आ रहे थे। 
....पांच मिनट बाद अक्षय आप्‍लीकेशन लेकर बॉस के के‍बिन का दरवाजे पर पहुंचा। उसने दरवाजे को थोड़ा खोलकर सकुचाते हुए पूछा सर ! क्‍या मैं अन्‍दर आ सकता हूं ?
बॉस ने अक्षय की तरफ देखते हुए कहा, अरे.. अक्षय ! आओ ...आओ। अक्षय कुर्सी खींचकर बास के सामने मेज पर बैठ गया। उस समय बॉस दा‍हिने तरफ कम्‍प्‍यूटर स्‍क्रीन पर कुछ देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वह मेरी तरफ मुड़े और बोले बताओ क्‍या बात है अक्षय ! ?
अक्षय ने बॉस को अप्‍लीकेशन देकर सकुचाते हुए कहा, सर ! होली पर घर जाना है छुटटी चाहिए थी। पिछली बार छुट्टी नहीं मिलने के कारण नहीं जा पाया था। 
बॉस ने पूछा.. कितने दिन की छुट्टी चाहिए ? अक्षय ने निवेदन करते हुए कहा, सर ! पांच दिन की...। बॉस ने बीच में रोकते हुए कहा, अक्षय ! तुम जानते हो.. कि त्‍योहार में कई लोग छुट्टी पर जा  रहे हैं। एक दो दिन की बात होती तो मैं मैनेज कर लेता। 
अक्षय को तो होली पर घर जाना था। उसने फिर निवेदन किया ..प्‍लीज....सर ! देख लीजिए। मुझे तीन दिन की छुट्टी दे दीजिए। बॉस ने कुछ सोचने के बाद कहा, ठीक है... मैं तीन दिन की छुट्टी दे रहा हू। साथ में हिदायत देते हुए कहा, लेकिन हाँ...समय पर आ जाना। फिर बॉस ने अक्षय के आप्‍लीकेशन पर कुछ लिखा और नीचे साइन कर दिया। आप्‍लीकेशन अक्षय को देते हुए बॉस ने विनम्रता से पूछा होली तो चार दिन बाद है। रिजर्वेशन करा लिए हो। अक्षय ने से कहा, सर छुट्टी कन्‍फर्म नहीं थी इसलिए अभी नहीं कराया था। मैं टिकट करा लूंगा। नहीं होगा तो तत्काल में करा लूंगा।
अक्षय खुशी...खुशी केबिन के बाहर निकला और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। तभी आदेश उसके पास आया। उसने अक्षय को बॉस के केबिन से निकलते हुए देख लिया था। उसने अक्षय के मुसकुराते हुए चेहरे को देखकर समझ गया कि उसे छुटटी मिल गई है। उसने अक्षय से पूछा? छुट्टी मिल गई। अक्षय ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा मिल गई। केवल तीन दिन की। बस तीन दिन आदेश ने हैरानी जताते हुए कहा ! हाँ, केवल तीन दिन । आदेश ने कहा, यार ! दो दिन तो आने और जाने में लग जाएंगे। अक्षय ने लंबी सांस लेते हुए कहा, कोई बात नहीं इस बार होली अपनों के साथ तो मना लूंगा। तभी आदेश को किसी ने आवाज़ लगाई। उसने आ रहा हूँ कहकर चला गया। 
इसके बाद अक्षय अपने कम में लग गया । जब काफी कम निपट गया तो उसने अपने एक दोस्‍त को फोन किया जो रेलवे में था। उसने उससे रिजर्वेशन कराने के लिए कहा। उसने फोन पर ही अक्षय को आश्‍वासन दिया कि तत्‍काल में वह रिजर्वेशन करा देगा। 
अक्षय को जब तसल्‍ली हो गई तो वह कंप्‍यूटर पर अपने काम में तल्‍लीन हो गया। 
दो दिन बाद उसके दोस्‍त का फोन आया कि जाने का रिजर्वेशन हो गया है लेकिन वापसी का अभी नहीं हो पाया है। अगले दिन रात में उसकी ट्रेन थी। यही सब सोचते सोचते अक्षय को नींद आ गयी। ट्रेन लुधियाना की तरफ धड़ धड़ करती चली जा रही थी।
सुबह के आठ बज गए थे तभी चाय..चाय की आवाज उसके कानों में पड़ी। वह मुँह से चादर हटा कर देखा। दिन निकल आया था। उसने घड़ी देखी। आठ बज रहे थे। उसने चाय वाले से एक चाय देने को बोला। फिर, उसने चाय वाले से पूछा कौन सा स्टेशन है। उसने बताया अम्बाला !....
अक्षय उठ के बैठ गया और चाय पीने लगा। वह निश्चिंत था कि वह समय पर ऑफिस पहुँच जायेगा। वह नब्बे रुपये के बारे में सोच रहा था। उसने दस रुपये का फटा नोट जेब से निकाला। थोड़ी देर देखता रहा। फिर उसने नोट को अपने पर्स में सहेज़ कर रख लिया।

Friday 19 June 2020

शायद, कोई..शिव आये



भ्रम के फैले मकड़जाल से
शायद, कोई.. सच निकले !
परिस्थिति बन गयी है ऐसी
शायद, कोई..सच बोले !

अदृश्य अंधेरों के भय से
शायद, कोई.. सच चमके!
झूठ के इस काले मेघों से
शायद, कोई.. सच बरसे !

टूट रहा है शिखर हिम का
शायद, कोई.. गंगा निकले !
उफन रहा समुद्र ह्रदय का
शायद, कोई..मोती निकले !

नेत्रों से बह रहे अश्रुओं की
शायद, कोई.. पीड़ा समझे !
दुःख के हलाहल को पीने
शायद, कोई.. शिव आये !...

शायद, कोई.. शिव आये !

--राहुल

सफ़र : नब्बे रुपये (दूसरा भाग)

सफ़र : नब्बे रुपये



ट्रेन अपनी टॉप स्‍पीड में पटरियों पर धड़ धड़... करते हुए दौड रही थी। खिडकी से हवा उतनी तेजी से अन्‍दर आ रही थी। अक्षय इसका आनन्‍द ले रहा था। थोड़ी देर बैठने के बाद उसने जूता उतारकर सीट के नीचे रख दिया। मोजे और जूते से स्‍वतंत्रता मिलने के बाद उसके पंजों को बहुत सुकून.... मिल रहा था। अक्षय ने पैर की अंगुलियों को बैठे बैठे ही कई बार ऊपर नीचे किया। जिससे पैरों को भी आराम मिला। वह पैरों को ऊपर करके बैठ गया ताकि खिड़की से आ रही हवा पैरों को सीधे लगे। अभी कुछ ही समय हुआ था कि सामने की सीट पर बैठे आदमी की आवाज सुनाई दी। वह पूछ रहा था कि भाईसाहब!! आपकी टिकट टीटी ने बनाई है की नहीं ? उसका प्रश्‍न सुनकर अक्षय थोड़ा सशंकित हुआ।
....उसने उसकी तरफ देखा वह जल्‍दी जल्‍दी.. अपना खाना खा रहा था। अक्षय ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, नहीं भाईसाहब!! टिकट तो नहीं बनाई। लेकिन हाँ ! उनके पास जो लिस्ट थी उसमें वह कुछ लिख रहे थे। 
उस आदमी ने संदेह जताते हुए कहा तब तो टीटी ने सारा पैसा खुद रख लिया होगा। उसकी इस बात पर अक्षय थोड़ा वि‍चलित हुआ।  अक्षय उस आदमी से कुछ कहना चाहता था। लेकिन उसने देखा कि वह आदमी खाना खा चुका था। वह अब सोने की तैयारी कर रहा था। उसके सामने बैठा आदमी पहले ही सो गया था। अक्षय फिर कुछ सोच कर चुप.. रहा।अक्षय ने घड़ी देखी साढ़े नौ बज चुके थे। उसने खाना खाकर सोने का फैसला किया। वह बैग से खाना निकाल कर खाने लगा। खाना खाते खाते ...उसके दिमाग में आदमी की बात घूम रही थी। वह सोच....रहा था कि टीटी ने अगर रूपये अपने जेब में रख लिए होंगे तो इसमें उसका कौन सा घाटा है। उसे तो जनरल से कम पैसे में सोने के लिए बर्थ मिल गई  है। फिर भी इस आदमी का टीटी पर शक करना भी सही है। टिकट के नाम पर टीटी कमाते भी बहुत हैं। आम आदमी ज्‍यादातर ट्रेनों में ही सफर करता है। वह बखूबी जानता है कि ट्रेन में टिकट के नाम पर कितना भ्रष्‍टाचार है। ये धारणा हर आम आदमी के अंदर बन गई है। सही भी है मेरे अंदर भी तो यही धारणा बनी हुई थी। आज की घटना ने मेरी धारणा को थोड़ा कम किया है। यही सब सोचते...सोचते खाना कब खत्‍म हो गया अक्षय को पता ही नहीं चला। 
..अक्षय हाथ मुँह धोकर सात नंबर सीट जो कि मिडिल बर्थ होती है उस पर लेट गया। रात में 1 बजे ट्रेन लखनऊ स्‍टेशन पर पहुंची। प्‍लेटफार्म पर और ट्रेनों को लेकर एनाउसमेंट लगातार हो रही थी। आवाज सुनकर अधकचरी नींद में सोया अक्षय उठ गया। उसने लेटे लेटे ही खिड़की से बाहर मुआयना किया। उसने बाहर जा रहे आदमी से पूछा कौन सा स्‍टेशन है। उसने बताया कि 'लखनऊ' है। वह तुरंत बर्थ से उतरा दोनों कंधों पर बैग टांग कर वह ट्रेन से बाहर आया। 
वह सीढियाँ चढ़ते हुए मेन प्‍लेटफार्म पर आ गया। उसने प्रवेश द्वार की तरफ लगे एटीएम की ओर देखा। एक आदमी एटीएम के अंदर था और एक आदमी बाहर। वह तुरंत वहां पहुंचा। उसने बैग को फर्श पर रखा और देखा कि जो आदमी अंदर था। वह एटीएम से निकले रुपये गिन रहा था। अक्षय के जान में जान आ गई। उसके चेहरे पर खुशी के भाव थे।  तभी दूसरा आदमी एटीएम के अंदर से निकला। अक्षय झट से एटीएम के अंदर गया। उसने कार्ड अंदर डाला। रूपये निकाले। बाहर आया। उसे प्‍यास.. लगी थी। उसने पहले एक बोतल पानी खरीदा। पानी पीने के बाद वह थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा....l वह मन ही मन कुछ सोच रहा था। उसने बैग उठाया।
ट्रेन सवा दो बजे थी। उसने घड़ी देखी डेढ़ बज रहे थे। कुछ देर ठहरने के बाद वह पास के टिकट काउंटर पर गया। काउंटर पर भीड़ नहीं थी। उसने सोचा जनरल का टिकट ले लेता हूं। फिर आगे ट्रेन में खाली सीट के बारे में पता करता हूं। जनरल का टिकट लेने के बाद वह खोजते.. खोजते उस कमरे तक पहुंचा जहां चार्ट फाइनल होती है। खैर चार्ट तो पहले फाइनल हो जाती है। लेकिन अक्षय को उम्‍मीद थी हो सकता है एकआध बर्थ खाली मिल जाए। उसने वहां बैठे एक स्‍टाफ से पूछा। स्‍टाफ ने सामने बैठे रेलवे के दूसरे स्‍टाफ की ओर इशारा करके कहा आप उनसे बात कर ली‍जिए। अक्षय उनके पास गया। पूछने पर चार्ट देखकर उन्‍होंने बताया कि एसी 3 में सीट खाली है। अक्षय ने टिकट बनाने की बात की। तभी पहला वाला स्‍टाफ जो उनकी बातें सुन रहा था वह भी वहां आ गया। दोनों आपस में सीट को लेकर बात कर रहे थे। तभी पहला वाला स्‍टाफ बोला इस ट्रेन में तो शर्मा जी की डयूटी है। दूसरे स्‍टाफ ने कहा, हाँ!...वह तो बहुत सज्‍जन आदमी है। ऐसा करिये आप! परेशान मत होइए। आप ट्रेन में ही उनसे मिल लीजिएगा। वह वहीं आपका टिकट बना देंगे। 
अक्षय ने बहुत निवेदन किया कि यहीं से बना देते तो अच्‍छा होता। कोई तकनीकी दिक्‍कत बता कर उन्‍होंन निश्‍चिंत किया कि आप ट्रेन में शर्मा जी से मिल लीजियेगा। उनके बार बार कहने पर अक्षय ने कहा, ठीक है! उसने दोनों स्‍टाफ का नाम पूछा। पहले वाले स्‍टाफ ने नाम बताने के साथ अपना मोबाइल नंबर दिया और कहा अगर दिक्‍कत होगी तो मुझसे बात करा दीजियेगा। अक्षय मोबाइल नंबर के सही होने को लेकर आश्‍वस्‍त होना चाहता था। उसने मोबाइल में नंबर सेव करके तुरंत काल कर चेक किया कि नंबर सही है कि नहीं? बगल में खड़े स्‍टाफ के मोबाइल का रिंग बज रहा था। अक्षय ने उससे कहा कि मैंने ही काल‍ किया है..देख रहा था कि नंबर सही सेव किया है कि नहीं ? और उसने काल काट दिया। बात करते करते अक्षय ने घड़ी देखी। रात के एक पचास हो रहे थे। तभी पहला वाला स्‍टाफ बोला ट्रेन राइट टाइम है। आप प्‍लेटफार्म पर जाइए। 
दोनों स्‍टाफ को धन्‍यवाद करके अक्षय प्‍लेटफार्म की ओर चल दिया। सीढ़ियों से होकर वह प्लेटफॉर्म पर पहुँचा जिस पर ट्रेन आने वाली थी। उसने प्‍लेटफार्म  पर लगी घड़ी को देखा। अभी ट्रेन आने में दस मिनट शेष था। वह सीढ़ियों के पास एक बेंच पर बैठ गया। पानी की बोतल निकाल कर पानी पिया। उसने आगे के सफर के लिए एक और पानी का बोतल खरीदकर बैग में रख लिया। आगे के सफर को लेकर वह थोड़ा चिंतित था। तभी हार्न ने प्‍लेटफार्म पर ट्रेन के आने का आगाज किया। अक्षय ने उठ कर देखा कि ट्रेन दूसरे छोर से प्‍लेटफार्म से चपककर आ रही है। 
उसने दोनों बैग कंधे पर लाद लिए। ट्रेन धीरे....धीरे प्‍लेटफार्म पर रूक रही थी। अक्षय  की आंखे एसी 3 की बोगी को खोज रही थी।  होली का दिन होने के कारण प्‍लेटफार्म पर आपाधापी नहीं थी। वह आराम से चलकर बोगी तक पहुंचा। बोगी के बाहर ही माथे पर टीका लगाए एक टीटी साहब दिखाई दिए। उनके सामने एक यात्री खड़ा था। टीटी साहब हाथ में लिए लिस्‍ट को देख रहे थे। अक्षय ने कन्‍फर्म करने के लिए कि टीटी साहब शर्मा जी हैं कि नहीं। उनसे पूछा आप ! शर्मा जी हैं। उन्‍होंने जी हाँ ! ..... बताइए ! कहकर सर हिलाया। अक्षय ने एक सीट देने का उनसे निवेदन किया। साथ ही दोनों स्‍टाफ का नाम बताकर अपने निवेदन को और पुख्‍ता करने का प्रयास किया। शर्मा जी पर अक्षय के निवेदन का प्रयास सफल रहा। उन्‍होंने तुरंत कहा, आप! डिब्‍बे में अंदर जाकर बैठिए..... मैं अभी आ रहा हूं। अक्षय आश्‍वस्‍त हो गया। वह डिब्‍बे में जाकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद ट्रेन चलने लगी। शर्मा जी भी आ गए। अक्षय ने उन्‍हें जनरल का टिकट दिया। उन्‍होंने एसी 3 के किराए में से जनरल के किराए को घटाकर मेरा टिकट बना दिया। उन्‍होंने कहा आप जाइए बारह नंबर की बर्थ पर लेट जाइए। एसी 3 के टिकट के हिसाब से करीब सवा तीन सौ का अंतर आया था। अक्षय ने उन्‍हें पांच सौ रूपये दिए। उन्‍होंने खुशी खुशी.. उसे रख लिया। अक्षय ने उन्हें धन्‍यवाद किया और अपनी सीट पर पहुंचा। उसने देखा कि सीट पर एक तकिया, दो चादर, एक कंबल और एक तौलिया पहले से रखा हुआ है। उसने बैग सीट के नीचे रखकर चादर बिछाई। कंबल और तौलिए के ऊपर तकिया रखकर सिराहना थोड़ा उंचा किया और लेट गया। लेटे...लेटे वह आश्‍वस्‍त दिख रहा था कि वह सही समय पर कल ऑफिस पहुंच जाएगा। वह सोचने लगा की उसने होली के पहले कैसे बॉस से छुट्टी ली थी। होली के चार दिन पहले उसने आप्लीकेशन लिखा था। तभी??... ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। किसी ने लाईट जलाई। अक्षय ने देखा की एक संभ्रांत बुजुर्ग महिला बैग लिए खड़ी थी। उसने अक्षय की तरफ देखा तो वह थोड़ी सहम गयी। अक्षय के चेहरे पर अभी भी रंग लगा था। अक्षय भी नींद में था। लाईट सीधे आँखों पर पड़ रही थी। वह करवट हो गया। महिला भी समझ गई की होली का रंग है। वह बैग सीट के नीचे रखकर चादर बिछाने लगी। 
अक्षय फिर लेटे लेटे होली के चार दिन पहले के बारे में सोचने लगा।
(इसके आगे की कहानी अगले भाग में।)



Friday 12 June 2020

सफर : नब्‍बे रूपये



नब्‍बे रूपये


होली का दिन था। शाम के पांच बज रहे थे। माँ ने अक्षय को आवाज लगाई। बेटा! उठ जाओ। तुम्‍हारी सात बजे ट्रेन हैं ना। अक्षय आँख मीजते हुए उठा। उसकी आँख में चुभन हो रही थी। उसने शीशे में देखा उसकी आँखें लाल थी। चेहरे पर अभी भी लाल और हरे रंग के निशान थे। होली खेलने के बाद नहाते समय मुंह को कई बार साबुन से धोया था। बेसन दूध का उबटन भी रंग उतारने के लिए लगाया था। लेकिन रंग उतरा नहीं था। शायद रंग आंखों मे भी चला गया था। इसलिए आंखों में चुभन हो रही है।शीशे के सामने अक्षय यही सब सोच रहा था। तभी माँ की दुबारा आवाज आई अक्षय! उठे कि नहीं।  अक्षय ने कहा हां, माँ उठ गया हूं । उसने हाथ मुंह धोया। फिर अपने कपडे बैग में रखकर तैयार होने लगा। मां ने पूछा कितने बजे ट्रेन है। अक्षय ने जवाब में कहा माँ सात बजे देहरादून एक्‍सप्रेस से जाना है। माँ को थोड़ा संशय हुआ। उसने झिझकते हुए पूछा यह ट्रेन लुधियाना जाएगी ? अक्षय ने माँ के संदेह को दूर करते हुए कहा माँ! इस ट्रेन से लखनऊ तक जाउंगा। वहां से रात में लुधियाना के लिए दूसरी ट्रेन है। मैं 6 बजे घर से निकलूंगा क्‍योंकि मुझे टिकट भी लेना है। माँ ने जल्‍दी से चाय बनाई। होली का दिन था तो कई तरह का पकवान भी बना था। माँ ने उसमे से अक्षय को जो पसंद था खाने को दिया और रात में खाने के लिए कुछ पैक कर दिया। ठीक 6 बजे अक्षय माँ और पिताजी का चरण स्‍पर्श कर पैदल ही घर से ऑटो पकड़ने के लिए निकल पड़ा। उसके एक कंधे पर कपड़ों का और एक कंधे पर लैपटाप का बैग‍ टंगा था। घर से पचास कदम की दूरी पर तिराहा था वहां से रेलवे स्‍टेशन जाने के लिए ऑटो मिलती थी। वह तेज कदमों से चल रहा था क्‍योंकि उसे एटीएम से रुपये भी निकालते थे। वह तिराहे पर पहुंचते ही पहले एटीएम पर गया। एटीएम खुला था पर मानीटर पर उसके क्‍लोज्‍ड लिखा था । उसने सड़क के उस पार वाले एटीएम की ओर देखा उसका भी शटर गिरा हुआ था। वह जेब टटोलने लगा तो उसे बीस रुपये मिले। उसने लैपटाप के आगे की पाकेट में हाथ डाल कर टटोला कुछ नोट और सिक्‍के उसमें थे। उसने ऑटो के लिए इधर उधर नजर दौडाई। सडक पर कहीं ऑटो नजर नहीं आ रही थी। तभी उसे एक खाली रिक्‍शा वाला आता दिखा। उसने उसे रेलवे स्‍टेशन चलने के लिए कहा। वह झट से तैयार हो गया। कपडे वाले बैग को जहां पांव रखते है वहां रखकर अक्षय सीट पर बैठ गया। रिक्‍शा वाला उसे स्‍टेशन की तरफ लेकर चल पडा। अक्षय, रास्‍ते के सारे एटीएम का खाका मन ही मन बना रहा था। उसे रास्‍ते का अच्‍छी तरह से ज्ञान था। उसे उम्‍मीद थी कि किसी न किसी एटीएम पर पैसे मिल जाएंगे। वह लैपटाप के पाकेट से सारे सिक्‍के और नोट निकालकर गिनने लगा। कुल एक सौ तीन रूपये थे। उसने उसे वापस लैपटाप के बैग में रख दिया और सडक के दोनों तरफ देखने लगा। रिक्‍शा एक चौराहा पार हुआ दूसरा चौराहा पार हुआ। लेकिन कोई एटीएम नहीं खुला था। अब क्‍या होगा यही वह सोच रहा था। स्‍टेशन के थोड़ा पहले रिजर्वेशन का ऑफिस था। उसके गेट के अन्‍दर भी एक एटीएम था। बाहर से उसका शटर उठा देखकर अक्षय की उम्‍मीद बंधी। उसने रिक्‍शे वाले को थोडी देर रूकने को कहकर दौड कर एटीएम की तरफ भागा। दरवाजे के अन्‍दर झांका तो देखा कि मानीटर पर दफ़्ती लगी थी उस पर क्‍लोज्‍ड लिखा हुआ था। अब वह काफी निराश हो गया था। वह मुँह लटकाए रिक्‍शेे पर आकर बैठ गया। रिक्‍शे वाले ने अपनी सीट से थोड़ा उचक कर पैडिल पर जोर लगाया। रिक्‍शा सरकने लगा। जब रिक्शे ने स्पीड पकड ली तो वह सीट पर बैठकर पैडल मारने लगा। रिक्‍शे वाले की मेहनत को अक्षय ध्‍यान से देख रहा था। उसने निश्चय किया की वह हार नहीं मानेगा। उसके लिए अब स्‍टेशन के अंदर के एटीएम अंतिम आसरा था। अपनी अंतिम उम्‍मीद को पुख्‍ता करने के लिए वह रिक्‍शे वाले से पूछा भइया स्‍टेशन वाला एटीएम तो खुला होगा। रिक्‍शे वाले ने हां में हां मिलाई और बोला, खुला होना चाहिए। होली के नाते शहर के सारे एटीएम बंद हैं। अक्षय को उसकी बात से थोड़ी आशा बंधी। बाते करते करते स्‍टेशन का पहला गेट आया। अक्षय ने इसके बाद वाले गेट से अन्‍दर ले चलने को कहा। उसे पता था कि उस गेट से अंदर जाने पर जहां रिक्‍शा रूकता है वहीं पर एक एटीएम है। रिक्‍शे वाले ने वही किया उसने रिक्‍शा वही ले जाकर रोका। अक्षय ने रिक्‍शे वाले को पैसे देने से पहले एटीएम की तरफ देखा। शटर उठा हुआ था बहुत सारी छोटी छोटी पर्चियॉ दरवाजे पर गिरी थी। वह थोड़ा आगे बढ़कर दरवाजे तक गया। बाहर से ही स्‍क्रीन दिख रही थी। स्‍क्रीन पर पैसे नहीं होने का मैसेज लिखा हुआ था। वह मुंह लटकाए हुए रिक्‍शे वाले की तरफ मुड़ा। रिक्शावाला अक्षय के निराशा से भरे चहरे को देख रहा था। वह मायूस था और सशंकित भी था कि पता नहीं उसे पैसे मिलेंगे की नहीं। अक्षय रिक्शे वाले के चेहरे को देख कर समझ गया। उसने पास आकर रिक्‍शे वाले से कहा तुम चिंता मत करो तुम्‍हें देने के लिए उतने पैसे है मेरे पास। यह कहकर उसने तय किराए के हिसाब से लैपटाप में से तीस रूपये के सिक्‍के उसे दे दिए। उसने सोचा कि टिकट काउंटर पर सिक्‍के ज्‍यादा न देने पड़े इसलिए उसने रिक्‍शे वाले को सिक्‍के ही दिए। इसके बाद वह जल्‍दी जल्‍दी स्‍टेशन की सीढ़ियों तरफ भागा। एटीएम की आपाधापी में उसने समय का ध्‍यान ही नहीं रखा था। उसने देखा कि सात बजने में तीन चार मिनट ही बाकी हैं। वह काउंटर की भागा। ज्‍यों ही वह पहुंचा एनाउंसमेंट होने लगा कि देहरादून एक्‍सप्रेस अपने सही समय पर प्‍लेटफार्म नंबर 1 से चलने वाली है। उसने काउंटर की लाइन देखी, ज्‍यादा लोग नहीं थे। वह चार लोगों के बाद लाइन में खड़ा था। उसने लैपटॉप और जेब के पैसे निकाल लिए। रिक्शे वाले को देने के बाद उसके पास 93 रूपए बचे थे। वह पैसों को हाथों में लेकर लाइन में खड़ा था। तभी गाड़ी चलने की फिर एनाउंसमेंट हुई। वह घर गया। वह कुछ आँखे बंद की और समय और पैसे को कैलकुलेट किया। उसने तय किया की लखनऊ किसी तरह पहुँच जाऊँ वहाँ एटीएम से पैसे निकल लूँगा। लाईन में खड़े खड़े उसने निश्चय किया की वह टिकट नहीं कटाएगा। वह बैग कंधे पर लाद कर प्‍लेटफार्म नंबर 1 की तरफ भागा। प्लेटफार्म दूर नहीं था वह जल्दी जल्दी चलने लगा। ज्यों ही वह पहुँचा ट्रेन धीरे धीरे सरकने लगी थी। वह चाहता था कि जनरल डिब्‍बे में बैठे। लेकिन उसके पास अब समय नहीं था। वह दौडकर एक एसी डिब्‍बे में चढ़ गया। वह दरवाजे के अन्‍दर गैलरी में खड़ा हो गया। वह थोडा भयभीत था। उसने सोचा कि डिब्‍बे इंटरकनेक्‍टेड होते हैं। उसने वॉश बेसिन से अंदर गैलरी में उस दरवाजे की तरफ झांक कर देखा। लेकिन वह बंद था। वह वहीं दरवाजे पर खड़ा होकर अगले स्‍टेशन का इंतजार करने लगा। ताकि वह स्‍टापेज के दौरान उतरकर जनरल डिब्‍बे में जा सके। एक घंटे बाद अगला स्‍टेशन आ गया। ट्रेन रूकते ही अक्षय बैग कंधे पर लाद कर अंदाज लगाने लगा कि जनरल डिब्बा आगे होगा की पीछे? एक बार उसने आगे की तरफ देखा फिर पीछे। फिर कुछ सोचकर वह पीछे की तरफ चलने लगा। वह तेज कदमों से चल रहा था। अभी वह पांच छह डिब्‍बे ही पार कर पाया था कि तभी ट्रेन फिर चलने लगी। अक्षय घबरा गया। कंधे पर बैग होने की वजह से वह बहुत तेज नहीं चल पा रहा था। वह जल्‍दी से एक स्‍लीपर डिब्‍बे में चढ़ गया। उसने दरवाजे से थोड़ा अंदर होकर बैग को नीचे रखा। डिब्‍बे में बहुत ज्‍यादा भीड़ नहीं थी। उसने देखा कि बगल की निचे वाली सात नंबर की सीट खाली थी। पिछले एक घंटे से खड़े खड़े उसके पैर दर्द कर रहे थे। अक्षय ने कपड़ो का बैग सीट पर रख दिया और बैग के बगल में बैठ गया। उसने गहरी सांस ली। खिड़की पहले से खुली थी। खिड़की से आ रही ठंडी हवा की तरफ चेहरा करके बैठ गया। ठंडी हवा से उसे सुकून मिल रहा था। वहीं बैठे बैठे वह गर्दन घुमाकर डिब्बे का मुआयना करने लगा। उसने देखा कि सामने की नीचे की दोनों सीटों पर दो लोग बैठे है। एक खिडकी के बाहर देखते हुए अपने में मगन था। दूसरा उसकी कभी अक्षय की तरफ तो कभी खिडकी की तरफ देख रहा था। उसने अक्षय से पूछ लिया कहाँ जाना है भाई साहब! अक्षय टिकट नहीं होने के कारण डरा हुआ था। उसने एक शब्द में उसे जवाब दिया 'लखनऊ'!  उस आदमी ने सर हिलाकर 'अच्छा' !  कहा और खिड़की की तरफ देखने लगा। अक्षय ने वहीं बैठे बैठे एक बार फिर पूरे डिब्‍बे  का मुआयना किया। मन ही मन दृढ़ निश्‍चय किया कि जो होगा देखा जाएगा। वह भी खिड़की की तरफ मुँह करके बाहर देखने लगा। अभी पांच मिनट ही हुए थे उसके कानों ने टिकट टिकट की आवाज सुनी। उसने डरते हुए अन्‍दर की तरफ देखा। टीटी टिकट चेक करते हुए इधर ही आ रहा था। अब वह क्‍या करे उसके दिमाग में कई तरह के विचार आ रहे थे। मन ही मन उसने ठान लिया कि डरना नहीं है। वह टीटी को एटीएम के बंद होने की कहानी सुना देगा। यही सब वह मंथन कर रहा था कि टीटी जो कि करीब 6 फुट का रहा होगा उसके पास पहुंच गया। उसने अक्षय से टिकट मांगा। अक्षय ने उससे एक निरीह प्राणी की तरह सारी बात संक्षेप में बता डाली। इसके बाद अक्षय ने लैपटाप के बैग से नब्‍बे रूपये निकाल कर टीटी को पकड़ा दिए। टीटी ने पैसे गिने जो नब्‍बे रूपये थे। उन्‍होंने मुझे उसमें जो फटा वाला दस का नोट था मेरी तरफ बढ़ा कर कहा जाओ पांच नंबर सीट पर आराम करो। अक्षय को विश्‍वास नहीं हुआ। उसने डर के मारे कुछ पूछा नहीं। उसका गला जैसे सूख गया हो। बहुत मुश्किल से 'धन्यवाद'! बस इतना ही कह पाया। वह खुश था। ऐसा हो जाएगां इसके बारे में उसने सोचा भी नहीं था। उसने सामने पांच नंबर की बर्थ देखी। उसने बर्थ खोलकर सिकड़  लगाया। कपडों वाले बैग को तकिया बनाने के लिए उसने खिड़की की तरफ रखा। लैपटाप के बैग को उसके सहारे रख कर वह फिर वहीं सात नंबर की सीट पर बैठ गया। सीट पर बैठने के बाद वह बाहर देखकर सोचने लगा। कौन कहता है की भगवान मदद नहीं करते। अगर आदमी निश्चय कर ले तो सफलता जरूर मिलती है। अगर वह एटीएम से पैसे नहीं मिलने के बाद घर वापस लौट जाता तो  एक दिन की छुट्टी और लेनी पड़ती। शायद वह अपने बॉस का विश्वास भी खो देता। वह फिर डिब्बे के अंदर जाते हुए काले कोट पहने हुए आदमी को एकटक देखते रहा। 


Thursday 4 June 2020

सृजन और प्रेम




गमले में दो चार फूल खिले,
मन प्रफुल्लित तन पुलकित
रक्‍तों में नव संचार हुआ।

पीली और सुर्ख पंखुड़ियों से
अनुपम यह सौंदर्य हुआ।
फूलों का देख चटक रंग
तितलियों का आगमन हुआ।

निकट तरू की शाखाओं से
जब कोयल ने छेडी तान
गुंजर करते भौरे दौड़े,
मधुर सुरमयी प्रेम हुआ।

रोम रोम पुलकित हुआ,
देख फूलों की चंचलता
मंद पवन की मधुर ताल से
सुर‍भित देखो छत हुआ।

इक बूँद गिरा चक्षु से मेरे
यह सौंदर्य अप्रतिम हुआ I

 

Wednesday 20 May 2020

तन्हाई


हुनर बुलंदियों पर पहुँचने का
बार-बार परखता हूँ!
पर 'परछाइयां' बदकिस्मती का
साथ नहीं छोड़तीं।
मुझे पता है 'परछाइयों, तुम अँधेरे में
साथ छोड़ देती हो,
अब मैंने 'रात' को अपना हमसफ़र
बनाया है।

By- राहुल

Hope

We hope,
Life's will come on the way,
Coockoos are singing
with their soul,
Clouds carry water to spray
on the way,
Nature looks like better from
the past,
We pray,
Life's will come on the way.

By- rahul srivastava

भय


पिछले कुछ दिनों से परिंदे भी
ख़ामोश नहीं हैं,
अज़ीब सा मंज़र जो छा गया
है आसमान में।
बादल भी गर्मियों में बिना मौसम
बरस रहें रहे हैं,
जैसे साजिश सी चल रही हो कोई
हवाओं में।

By- राहुल

शायरी

लगता है खौफ़ पैदा हो गई है,
शातिरों के सीने मैं।
फ़िजा में फ़िर दौर चल पड़ा है,
बेफ़िजूल हवाओं का।

By- राहुल

इश्क़


ढूढ़ने चला वो 'इश्क़' कायनात के आयतों में
उसे क्या पता कमख्त ने,
रेत की चादरें बिछा रखी थीं।
कागज़ में लिखी हर दिशाओं में उसे ढूढ़ा
कमबख्त ने,
खुद को परदानशीं कर रखा था।
हारा नहीं, ढूढ़ने निकला फ़िर किताबों में
कमबख्त ने,
किताबों को भी लिहाफ़ पहना रखा था।
गया जब हर गली, हर चौक-चौराहे पर
कमबख्त ने,
वहाँ उजालों को रोक अँधेरा कर रखा था।
आख़िर जब गिरा रब की चौखट पर तब
पता चला कमबख्त ने,
सितारों की भीड़ में घर बना रखा था।
By- राहुल

मय शरीफ हो गई

मय भी अब शरीफ़ हो गई,
दिल के और करीब हो गई।
सुना है ये मुल्क बचाने की,
अब नई तरकीब हो गई ।
मय भी अब.....
कहते हैं डूब रहे बाजारों की,
फिर से नई आमदनी हो गई।
मय भी अब....
ये तो हुक्मरानों के साख की,
असल में नई तक़दीर हो गई।
मय भी अब शरीफ़ हो गई
दिल के और करीब हो गई ।

By- राहुल


मौत की वजह


(संवाद- उस्ताद और शागिर्द के बीच


शागिर्द : मजदूर मर गए उस्ताद।
उस्ताद : कितने?
शागिर्द : 19 में 16 या 17 मर गए बाकी घायल हैं।
उस्ताद : कैसे?
शागिर्द : सोते समय रेल के पहियों से कटकर।
उस्ताद : कब?
शागिर्द : सुबह पांच साढ़े पांच के बीच।
उस्ताद : क्यों?
शागिर्द : करोना के कारण हुए लॉकडाउन में पैदल अपने घर जा रहे थे।
उस्ताद : पटरियों पर सो रहे थे! ठीक-ठीक समझाओ?
शागिर्द : ऐसा है उस्ताद, आप तो जानते हैं कि लॉकडाउन की वजह से करीब डेढ़ महीने से यातायात बंद है। सारे प्रवासी मजदूरों पर रोज़ी- रोटी का संकट आ गया है।...
उस्ताद : एक मिनट रुको (बीच में बात काटते हुए) मजदूर तो एक ही होता है ये प्रवासी मजदूर कहाँ से आ गए?
शागिर्द : ऐसा है उस्ताद मजदूरों को भी कई श्रेणियों में रख दिया गया है। जैसे की संगठित, दिहाड़ी, प्रवासी आदि। इसमें दूसरे राज्यों से आने वाले मजदरों को प्रवासी मजदूर कहते हैं।
उस्ताद : ऐसा क्यों हुआ?
शागिर्द : आप तो जानते हैं उस्ताद जबसे राजनीति में क्षेत्रवाद की टोपी नेताओं ने पहन ली है तब से ये प्रवासी शब्द भी पैदा हो गया है।
उस्ताद : मैंने बीच मैं तुम्हारी बात काट दी थी अब बताओ ये पटरियों के रास्ते क्यों जा रहे थे?
शागिर्द : क्योंकि उस्ताद, ट्रेनें और बसें लॉकडाउन में बंद हैं। सड़क से जाने पर पुलिस डंडे मारकर भगा रही है। इसलिए मजदूर रेल की पटरियों के रास्ते सैकड़ों किलोमीटर पैदल ही अपने घर जा रहे थे।
उस्ताद : तो क्या इन्होंने ख़ुदकुशी कर ली?
शागिर्द : ख़ुदकुशी तो नहीं लगती। कहते हैं उस समय ये चलते-चलते थक गए थे और पटरियों पर सो रहे थे।
उस्ताद : तो क्या हत्या कर दी गई?
ऐसा भी नहीं लगता! वो खुद लॉकडाउन से परेशान होकर घर जा रहे थे। अब ट्रेन को क्या पता की पटरियों पर ये सो रहें हैं। वो तो रौंदते हुए निकल गई।
उस्ताद : फिर तो ये प्राकृतिक मौत है?
शागिर्द : नहीं उस्ताद, इनमे से किसी को भी करोना पॉजिटिव होने की अब तक खबर नहीं आई है।
उस्ताद : फिर क्या इच्छा मृत्यु?
शागिर्द : इसमें संशय है। क्योकि मजदूर सदैव कफ़न में लिपटा रहता है। वह रोजाना अपने और अपने परिवार के लिए कुआँ खोदता है और पानी पीता है।
उस्ताद : इसमें संशय क्यों?
शागिर्द : संशय इसलिए क्योकि व्यवस्था ही ऐसी बनाई गयी है।
उस्ताद : व्यवस्था ?
शागिर्द : हाँ उस्ताद! व्यवस्था , हमें संविधान ने मत देने का अधिकार दिया। अधिकार तो और भी मिले हैं। लेकिन न तो मजदूरों के पास पैसा है और न तो वे जागरूक हैं। व्यवस्था केवल चुनाव के दौरान घर-घर जाकर मतदान का महत्व बताती है। बाकी अधिकार आप पढ़े लिखें हैं तो किताबों मैं लिखा है खुद पढ़ लें। मतदान के दिन जिस लाईन में खड़े होकर यह मत देते हैं। उस दिन कोई भेदभाव (ऊँच- नीच, अमीर-गरीब, जात-पात) नहीं होता। मतदान के कुछ दिनों बाद व्यवस्था को पांच साल चलाने के लिए नई सरकार शपथ लेती है। यहीं से शुरुआत होती है "अवसर" की।
उस्ताद : ये अवसर क्या बला है ?
शागिर्द : हाँ उस्ताद! अवसर। हम व्यवस्था के लिए नई सरकार चुन तो लेते हैं। फिर यही सरकार व्यवस्था के माध्यम से पूंजीपतियो और धन्ना सेठों के लिए अवसर बनाती है। उनके आलिशान महलों और बंगलों को खड़ा करने के लिए। उनकी तिजोरियों में अकूत धन भरने के लिए। उनकी फैक्टरियों की चिमनियों को गरम रखने के लिए।
उस्ताद : अच्छा?
शागिर्द : यही नहीं, चुने हुए लोग अपने लिए भी अवसर बनाकर महल और जमीं ज़ायदाद इकठ्ठा करते हैं।
उस्ताद : इससे मजदूर का क्या वास्ता?
शागिर्द : उस्ताद! यही मजदूर फैक्टरियों की चिमनियों को जलाये रखते हैं। तभी ये उद्यमी चिमनियों की गर्माहट से अपनी जेबें गरम रखते हैं। सड़क, पुल, अस्पताल, स्कूल, ओवरबब्रिज आदि की ईटों को यही तो जोड़ते हैं। बदले में क्या मिलता है बस इतना कि अपना और परिवार का एक दिन पेट भर सकें।
उस्ताद : ये तो नाइंसाफी है? कोई आवाज़ नहीं उठाता?
शागिर्द : उठाते हैं उस्ताद! कुछ बुद्धजीवी अख़बारों के एडिटोरियल पन्नों पर आवाज़ उठातें हैं। कुछ समाजसेवी मजदूरों के वेल्फेयर के नाम पर चन्दा बटोरतें हैं। और ये पीड़ित परिवार को कपडा-लत्ता बांटते हुए अखबारों में फ़ोटो के साथ चिपक जाते हैं। मजदूरों के संगठन भी इनकी आवाज़ बनने का दम्भ भरते हैं। लेकिन ये अपने विचारों के संक्रमण से संक्रमित हैं।
उस्ताद : अच्छा बताओ तब ये हादसा है?
शागिर्द : हादसा कहकर व्यवस्था पल्ला झाड़ सकती है। साथ ही सांत्वना के लिए व्यवस्था कुछ मुआवजा दे देगी। अदालतें भी हादसे पर सहमत हो सकती हैं।
उस्ताद : अंत में ये बताओ कि मजदूर यमराज के पास जायेंगे तो क्या होगा?
शागिर्द : उस्ताद! यमराज भी आदिकाल से इन मौतों का रहस्य नहीं समझ पाये। चित्रगुप्त जी भी अपने बहीखातों में संतुलन नहीं बना पा रहे हैं। ये भी अदालतों की तारीखों पर नज़र बनाये रखतें हैं और फैसले का इंतजार करते हैं।

By- राहुल श्रीवास्त