Friday 19 June 2020

शायद, कोई..शिव आये



भ्रम के फैले मकड़जाल से
शायद, कोई.. सच निकले !
परिस्थिति बन गयी है ऐसी
शायद, कोई..सच बोले !

अदृश्य अंधेरों के भय से
शायद, कोई.. सच चमके!
झूठ के इस काले मेघों से
शायद, कोई.. सच बरसे !

टूट रहा है शिखर हिम का
शायद, कोई.. गंगा निकले !
उफन रहा समुद्र ह्रदय का
शायद, कोई..मोती निकले !

नेत्रों से बह रहे अश्रुओं की
शायद, कोई.. पीड़ा समझे !
दुःख के हलाहल को पीने
शायद, कोई.. शिव आये !...

शायद, कोई.. शिव आये !

--राहुल

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